नवरात्री की शुरुआत हो चुकी है। अगले 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की अलग-अलग दिन पूजा की जाएगी। नौवें दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों को पूजे जाने के पीछे एक बड़ी वजह है। दरअसल भगवान राम ने धर्म युद्ध सेहले माता दुर्गा की आराधना की थी। इससे उन्हें युद्ध में विजय भी मिली थी। यही वजह है कि नवरात्री के दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। यहां हम आपको मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की कहानी संक्षेप में बता रहे हैं।
मां शैलपुत्री
भगवान शंकर से अनुरोध करके बिना बुलाए भी माता सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंची थीं। यहां अपने पति के अपमान को न सह सकने पर उन्होंने खुद को जलाकर भस्म कर लिया था। नाराज होकर भगवान शिव ने यज्ञ को खंडित कर दिया था। इसके बाद शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में माता सती का जन्म हुआ। इस तरह से उनका नाम शैलपुत्री पड़ गया। फिर से भगवान शंकर से ही उनका विवाह हुआ।
मां ब्रह्मचारिणी
भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने घनघोर तपस्या की थी। कई हजार वर्षों तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए थे। यहां तक कि उन्होंने भारी बारिश और धूप भी झेला था। बिना कुछ खाए-पिए हजारों वर्षों तक वे तपस्या करती रहीं। देवताओं ने भी मान लिया कि उनकी तपस्या अद्भुत है। आखिरकार देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनकी मनोकामना पूरी होगी। हालांकि, शिव जी के साक्षात दर्शन देने पर ही उन्होंने अपनी तपस्या समाप्त की।
मां चंद्रघंटा
महिषासुर के स्वर्ग का राजा बनाने के बाद देवता भयभीत होकर मदद के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे थे। गुस्से में तीनों के मुख से एक तेज निकला था, जिससे कि देवी के रूप में माता चंद्रघंटा का अवतरण हुआ था। इन्हें भगवान शिव से त्रिशूल और भगवान विष्णु से चक्र, जबकि इंद्र से एक घंटा मिला था। अन्य देवी-देवताओं से भी इन्हें खूब अस्त्र-शस्त्र मिले थे। आखिरकार इन्होंने महिषासुर का अंत कर दिया। इस तरह से सभी देवताओं को मां चंद्रघंटा ने असुरों से बचा लिया।
मां कुष्मांडा
सृष्टि से अंधकार भगाने का काम मां कुष्मांडा ने ही किया था। उन्होंने ही सबसे पहले अपनी हंसी से इस ब्रह्मांड की रचना की थी। सूर्यमंडल के अंदर मां कुष्मांडा रहती हैं। पूरे ब्रह्मांड में चाहे किसी भी तरह के प्राणी हों या कोई भी वस्तु हो, सभी में मां कुष्मांडा का ही तेज मौजूद है।
मां स्कंदमाता
मां स्कंदमाता के रूप में देवी पार्वती ने अवतार लिया था। वे बेटे कार्तिकेय की रक्षा के लिए आई थीं। इंद्र यह देखकर बहुत ही भयभीत हो गए थे। ऐसे में उन्होंने मां स्कंदमाता के नाम से माता पार्वती की आराधना शुरू कर दी। इस तरह से मां दुर्गा मां स्कंदमाता के नाम से भी जानी गईं।
मां कात्यायनी
पौराणिक कथाओं के मुताबिक महर्षि कात्यायन का जन्म कात्य गोत्र में हुआ था। वे पुत्री प्राप्त करने की इच्छा रखते थे। ऐसे में उन्होंने कठिन तपस्या करके भगवती परांबा को प्रसन्न किया था। आखिरकार उनके घर में बेटी के तौर पर मां दुर्गा ने जन्म ले लिया था। इन्हीं का नाम मां कात्यायनी पड़ा।
मां कालरात्रि
शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती को भेजा था। शुंभ और निशुंभ को तो उन्होंने मार दिया था, लेकिन रक्तबीज के खून से लाखों रक्तबीज पैदा हो जा रहे थे। ऐसे में मां पार्वती ने मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। मां दुर्गा के रूप में माता पार्वती रक्तबीज को मारती जा रही थीं और मां कालरात्रि उस खून को पी जा रही थीं। इस तरह से आखिरकार रक्तबीज का अंत हो गया।
मां महागौरी
मां महागौरी भगवान शंकर को अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने बड़ी ही कठिन तपस्या की थी। इस दौरान उनके शरीर का रंग काला पड़ गया था। ऐसे में भगवान शिव ने गंगाजल से धोकर उनके शरीर की कांति लौटा दी थी। उनके शरीर का रंग गोरा हो जाने की वजह से इनका नाम महागौरी पड़ गया।
मां सिद्धिदात्री
देवी पुराण में मां सिद्धिदात्री के बारे में बताया गया है। आधा शरीर देवी का भगवान शिव को इनकी ही कृपा से मिला था। तभी तो उनका नाम अर्धनारीश्वर भी पड़ा था। हर तरह की सिद्धियां प्रदान करने में मां सिद्धिदात्री को समर्थ माना जाता है।
इस तरह से चैत्र नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है।