अटल बिहारी वाजपेयी जो कि भारत के दसवें प्रधानमंत्री थे, उनकी लोकप्रियता केवल सत्ता पक्ष के बीच ही नहीं, बल्कि विपक्ष के बीच में भी थी। उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था, जिसकी वजह से सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष भी उनका पूरा सम्मान करता था। देशभर में उनकी लोकप्रियता की तूती बोलती थी। ऐसा व्यक्तित्व राजनीति में शायद ही कोई हो पाया है, जिसे हर किसी ने सम्मान की नजरों से देखा था। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वाजपेयी को लेकर एक ऐसी बात कह दी थी जो कि बाद में सच साबित हुई और इसकी वजह से यह कहना गलत नहीं होगा कि नेहरू किसी राजनीतिक ज्योतिषी से कम नहीं थे।
अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के बीच कई बातों को लेकर समानता थी। पहली समानता और सबसे प्रमुख समानता जिसे कह सकते हैं, वह यह रही कि ये दोनों ही अपनी पार्टी की ओर से देश के पहले प्रधानमंत्री बने। पंडित नेहरू जहां कांग्रेस की तरफ से देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर सामने आए, वहीं अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी की ओर से देश के दसवें प्रधानमंत्री के रूप में सामने आए। अटल बिहारी वाजपेयी शुरू से ही जोरदार वक्ता रहे। पंडित नेहरू की नीतियों का तो वे खूब विरोध किया करते थे। विशेषकर उनकी कश्मीर की नीतियों का तो विरोध वे हर हाल में करते थे। अटल बिहारी वाजपेयी के तो वे कायल हो गए थे। उन्होंने तो उसी वक्त कह दिया था कि एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे।
वाजपेयी की पहली जीत
वाजपेयी की लोकप्रियता भारतीय जनसंघ में शुरू से ही बढ़ने लगी थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में भी उन्होंने काम किया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित ने जब लखनऊ सीट से इस्तीफा दे दिया था तो उसके बाद जब 1955 में उपचुनाव हुए तो अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव मैदान में उतरे थे। इस वक्त उन्हें तीसरा स्थान हासिल हुआ था। वाजपेयी ने हिम्मत नहीं हारी और वर्ष 1957 में वे उत्तर प्रदेश के लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर तीन सीटों से लोकसभा चुनाव में उतरे। इस बार बलरामपुर सीट से उन्हें विजय मिल गई। लखनऊ सीट पर वे दूसरे स्थान पर रहे, जबकि मथुरा में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
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जब नेहरू ने कराया परिचय
भारतीय जनसंघ उस वक्त कोई बहुत बड़ी पार्टी नहीं हुआ करती थी। इसके बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अटल बिहारी वाजपेयी की बातों को तवज्जो दिया करते थे। जब वाजपेयी भाषण दिया करते थे, विशेषकर अंतरराष्ट्रीय मसलों पर एवं देश के आंतरिक मामलों पर तो नेहरू उनकी बातों को बहुत ही ध्यान से सुनते थे। बहुत हद तक वें नेहरू से प्रभावित थे। यही वजह थी कि वर्ष 1957 में नेहरू ने वाजपेयी के एक दिन प्रधानमंत्री बनने तक की भविष्यवाणी कर दी थी। एक विदेशी प्रतिनिधिमंडल उस दौरान भारत आया हुआ था। यहां इसके सामने वाजपेयी का परिचय नेहरू ने कराया था और कहा था कि एक दिन यह युवक पक्का इस देश का प्रधानमंत्री बनने वाला है। बाद में नेहरू की यह बात सही भी साबित हो गई।
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जब वाजपेयी को आया था गुस्सा
देश में आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी के खिलाफ 1977 के चुनाव में जबरदस्त लहर देखने को मिली तो उस दौरान जनता पार्टी की सरकार बन गई और अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। नई सरकार कांग्रेस के सभी प्रतीकों और उनके नेताओं की तस्वीर को हटाने की दिशा में आगे बढ़ रही थी। नौकरशाह इसलिए ऐसा कर रहे थे, क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि यह सरकार इंदिरा विरोध की लहर पर सवार होकर आई है। संभव है कि इसकी वजह से सत्ता पक्ष के नेता नाराज हो जाएं। इसी क्रम में एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी जब अपने ऑफिस पहुंचे तो दीवार के एक हिस्से को उन्होंने खाली पाया। उन्होंने बताया कि यहां नेहरू की तस्वीर हुआ करती थी। उन्होंने कहा कि मुझे तुरंत यह तस्वीर से यहीं पर वापस चाहिए। नेहरू का जब निधन हो गया था, तब भी अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत ही भावुक भाषण दिया था। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि भारत माता ने अपनी सबसे चहेते राजकुमार को खो दिया है। निश्चित तौर पर भारत माता आज बहुत ही दुखी महसूस कर रही होगी।