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बेटी को पढ़ाने की हर कोशिश पर ये रिपोर्ट कालिख पोत रही है

देश की एक प्रमुख एनजीओ चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (CRY) की एक रिपोर्ट – एजुकेटिंग द गर्ल चाइल्ड के मुताबिक घरेलू जिम्मेदारियां एक बच्ची की शिक्षा में बाधा बन रही है। बिहार, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा के 20-20 गांवों में रिसर्च कर के एजुकेटिंग द गर्ल चाइल्ड को चाइल्ड राइट्स एंड यू के द्वारा तैयार किया गया था। इस रिपोर्ट के सामने आने के बात सरकारों के खोखले वादें और शिक्षा का स्तर जो सामने आया वो बेहद ही शर्मिंदा करने वाला है। रिपोर्ट में सामने आया कि देश में जो लड़कियां स्कूल जाती है उनमें से 76 फीसदी और स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों में से 90 फीसदी लड़कियों घरेलू कामों में लगी है। हर 4 में से 1 लड़की स्कूल छोड़ कर घर के लिए पैसा कमाने में लगी है। वहीं 10 में से 1 लड़की घर में छोटे बच्चों का खयाल रखती है। जिसकी वजह से ये लड़कियां मुश्किल से ही प्राथमिक स्कूल तक जा पाती है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक चौदह साल की उम्र से पहले ही दो-तिहाई बच्चियां स्कूल छोड़ देती हैं और आज भी सिर्फ 58 प्रतिशत बच्चियां उच्च प्राथमिक स्तर तक जा पाती हैं। ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि कम उम्र में ही ऐसी जिम्मेदारियों का बोझ बच्चियों के हिस्से में क्यों आ जाता है? आखिर शिक्षित होने और सबल बनने के मोर्चे पर बेटियां कब तक जूझती रहेंगीं? वो भी तब जबकि हमारे देश में लड़कियों के जीवन से जुड़ी कई समस्याओं की वजह उनका शिक्षित न होना ही रहा है।

स्कूल छोड़ने की वजह क्या है

इस बात में कोई शक नहीं है कि शिक्षा जीवन में बदलाव और बेहतरी का सबसे बड़ा माध्यम है। सोच बदलने से लेकर सशक्त व्यक्तित्व तक शिक्षा की अहम भूमिका रहती है। भारत जैसे देश में तो महिलाओं की शिक्षा के आंकड़ों की अहमियत और बढ़ जाती है, जहां पर आधी आबादी को शिक्षित होने का बुनियादी हक पाने के लिए भी अनगिनत उलझनों से जूझना पड़ता है। स्कूल जाने और उच्च शिक्षा पाने तक, कितने ही पड़ावों पर भेदभाव भरा व्यवहार बच्चियों के हिस्से में आता है। घर-परिवार के कामकाज का दायित्व भी उनकी पढ़ाई में बड़ी रुकावट बनता जा रहा है। घर की कमजोर आर्थिक स्थिति, सामाजिक असुरक्षा के चलते कम उम्र में शादी या छोटे भाई-बहनों की देखभाल। ऐसे कई आम कारण बेटियों की शिक्षा की खास अड़चन बनते हैं।

हमारे सामाजिक ढांचे में आज भी ऐसी जिम्मेदारियां और बंधन बिना सोचे-समझे बेटियों के हिस्से में डाल दिए जाते हैं। घर के कमजोर आर्थिक हालात के कारण सबसे पहले बेटियों की ही पढ़ाई क्यों छूटती है। चाइल्ड राइट्स ऐंड यू की रिपोर्ट एजुकेटिंग द गर्ल चाइल्ड के मुताबिक 21 फीसद बच्चियों को पैसे की कमी की वजह से ही स्कूल छोड़ना पड़ा है। वो भी तब जब बड़े पैमाने पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को उठाया जा रहा है। अब ऐसे में समझ ये नहीं आता कि जब स्कूल में शिक्षा मुफ्त है तो फिर क्यों बेटी नहीं पढ़ पाती है। दरअसल हमारे यहां स्कूल जाने वाली बच्चियों में से 49.4 फीसद परिवार ऐसे हैं, जिनकी आय 5 हजार रुपए प्रति माह या उससे कम है।

गुजरात-हरियाणा में काफी खराब हाल

गुजरात में स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों में से 95.4 प्रतिशत, हरियाणा में 81.7, आंध्र प्रदेश में 72.7 और बिहार में 60 फीसदी लड़कियों को उनके परिवार वाले घर के कामों में व्यस्त कर देते हैं। इतना ही नहीं स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों में से 55 प्रतिशत लड़कियों को छोटे बच्चों का खयाल रखना पड़ता है और ये उनके स्कूल छोड़ने की वजह है। आंध्र प्रदेश में 69.7 फीसदी, गुजरात में 67.7 प्रतिशत, हरियाणा में 33.3 प्रतिशत और बिहार में 31.5 प्रतिशत लड़कियां इसी वजह से स्कूल छोड़ती हैं। लड़कियों को बचपन से ही बच्चों को संभालने, घर का काम करने के लिए उन्हें चार दीवारों में बंद कर दिया जाता है। ये बेहद चिंताजनक है कि घर-परिवार के ऐसे हालात बेटियों को स्कूल से दूर कर देते हैं।

गुजरात में 3.9, आंध्र प्रदेश में 21.2 और हरियाणा में 11.7 प्रतिशत माता-पिता बच्चियों की शादी कम उम्र में करना चाहते हैं। दरअसल इसके पीछे की वजह है कि माहौल काफी असुरक्षित है। स्कूल आने जाने वाली लड़कियों पर गलत टिप्पणी की जाती है, उनसे छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाओं के बारे में खबरें आना आम बात हो जाती है। बच्चियों के खिलाफ बर्बर अपराध हुए हैं और इन घटनाओं की बड़ी वजह घर से स्कूल तक पहुंचने के लिए यातायात की उचित और सुरक्षित व्यवस्था का नहीं होना है। देश भर में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों में से 25.2 फीसदी लड़कियां स्कूल दूर होने की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं। कोई अनहोनी होने का भय लड़कियों के स्कूल तक पहुंचने की हिम्मत और जरूरत पर भारी पड़ता है। सामाजिक असुरक्षा और भय के चलते कम उम्र में ही माता पिता उन्हें शादी के बंधन में बांध देते हैं।