विश्व के सबसे बड़े देश के मुखिया हमारे देश आते हैं और उनके स्वागत में राजधानी दिल्ली जगमगाती है। जी हां दिल्ली जलने लगती है, ये जगमगाहट दीयों की नहीं थी। बल्कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई आगजनी थी, महीनों से सीएए को लेकर दिल्ली में विरोध हो रहा है लेकिन अचानक से सीएए समर्थक भी सड़कों पर आ जाते हैं और वो विरोध करने वाले गुट से भिड़ जाते हैं। इन दोनों गुटों ने शुरुआत तो प्रदर्शन से की थी, लेकिन अब ये प्रदर्शन नहीं बल्कि दंगों में तब्दील हो गया है।
विवाद की शुरुआत उस वक़्त हुई जब पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में कानून के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे एंटी सीएए प्रोटेस्टर्स के सामने वो लोग आए जो सरकार के इस कानून का समर्थन कर रहे थे। दोनों ही पक्षों के आमने सामने आने के बाद हालत बेकाबू हुए और टकराव की स्थिति बनी, जैसे जैसे समय बीता नारेबाजी ने उग्र रूप ले लिया और इसका नतीजा ये हुआ कि दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे पर पथराव करना शुरु कर दिया और ये सब पुलिस के सामने हो रहा था। फिर अचानक से गोली चली, एक पुलिस जवान शहीद हुआ और कुछ लोगों की भी जान गई। जिसके बाद तो मानो पूर्वी दिल्ली में एक अलगही रूप दिखा। पथराव, आगजनी, लूटपाट, घरों, दुकानों, गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। दिल्ली के मौजपुर, जाफराबाद, सीलमपुर, गौतमपुरी, भजनपुरा, चांद बाग, मुस्तफाबाद, वजीराबाद और शिव विहार जैसे हिस्सों में मचे बवाल में दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल समेत कई आम लोगों की मौत हो गई है। वहीं सैंकड़ों की संख्या में लोग घायल भी हुए हैं। हिंसा के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई और इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि कोई भी नेता भड़काऊ बयान न दें।
पूर्वी दिल्ली के मौजपुर, जाफराबाद, सीलमपुर, गौतमपुरी, भजनपुरा, चांद बाग, मुस्तफाबाद, वजीराबाद और शिव विहार में पहले भी कई बार नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं, लेकिन ये इतने उग्र नहीं हुए। वहीं महीनों से शाहीन बाग का प्रदर्शन भी आपके सामने ही है, जो शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा है हालांकि इस प्रदर्शन से लोगों को तकलीफ जरूर हो रही है, क्योंकि सड़कें बंद है। इससे पहले टकराव हुआ है लेकिन वो पुलिस और एंटी सीएए गुट के बीच में होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हालात बदल गए हैं और जैसे स्थिति खराब हो रही है उसमें आम नागरिक शामिल हो गए और ये उग्र हो गया। जिसको देखते हुए हम ये कह सकते हैं कि ये अब प्रदर्शन नहीं बल्कि सांप्रदायिक दंगा बन गया है।
आरोप प्रत्यारोपों के बीच में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कुछ लोग जिम्मेदार मान रहे हैं, तो वहीं एक गुट है जो भाजपा और खासकर कपिल मिश्रा को इसका जिम्मेदार मान रहा है। कपिल मिश्रा ने पुलिस की मौजूदगी में न सिर्फ उग्र भाषण दिया बल्कि ये तक कहा कि अगर पुलिस शाहीनबाग और जाफराबाद में बंद सड़कों को नहीं खोलती हैं तो फिर हमें सड़कों पर आना पड़ेगा। अब ये महज इत्तेफाक है या फिर सोची समझी साजिश कि उस बयान के अगले दिन से ही जाफराबाद में हिंसा शुरु हो गई है। इसके अलावा कुछ लोगों ने इस हिंसा के लिए वारिस पठान के बयान को भी जिम्मेदार बताया है। जिसमें उन्होंने कहा था कि 15 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ पर भारी पड़ेंगे।
इस हिंसक रूप के पीछे हम सोशल मीडियो को भी मान सकते हैं, क्योंकि लगातार लंबे वक्त से ये प्रदर्शन सांप्रदायिक रूप ले रहा था और सोशल मीडिया पर अलग अलग लोगों के द्वारा जहर घोला जा रहा था। कई बार इस प्रोटेस्ट को हिंदू मुसलमान का नजरिया दिया जा रहा था। जो अब पूरे रूप से बनते हुए देखा जा रहा है। ये देखना अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि सोशल मीडिया पर एक अलग ही तरह का एजेंडा चलाया जा रहा है और अपनी सुविधा के हिसाब से इस हिंसा को परिभाषित किया जा रहा है, जिसका नतीजा ये निकल रहा है कि हिंसा की ये आग बढ़ती जा रही है।