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ऑपरेशन ब्लू स्टार: जिसके जख्म शायद हमेशा ही हरे रह जाएं

आजादी के बाद भारत में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें बहुत से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इन घटनाओं के दौरान जो हिंसा हुई, उसकी वजह से बहुत से निर्दोष लोगों की भी इसमें जाने गईं। पंजाब में भी एक ऐसी ही घटना घटी थी। यहां तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था। उस वक्त खालिस्तान की मांग बहुत ही तेज हो गई थी। इंदिरा गांधी किसी भी तरीके से इसे दबाना चाह रही थीं। ऐसे में इंदिरा गांधी द्वारा जो ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था, उसकी वजह से स्वर्ण मंदिर में बताया जाता है कि हर ओर केवल खून ही पसरा हुआ नजर आ रहा था। यहां हम आपको ऑपरेशन ब्लू स्टार के बारे में ही बता रहे हैं।

स्तब्ध था समूचा देश

अमृतसर में जो स्वर्ण मंदिर स्थित है, यहां खालिस्तान के समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले के समर्थकों ने कब्जा कर लिया था। यह बात 1984 की है। स्वर्ण मंदिर को इनसे आजाद कराने के लिए ही ऑपरेशन ब्लू स्टार को 3 से 6 जून तक चलाया गया था। एक तो जून में ऑपरेशन ब्लू स्टार वाली घटना अमृतसर में घटी। उसके बाद अक्टूबर में भी एक और बड़ी घटना पंजाब में घटी, जिसकी वजह से पूरा देश उस साल हिल गया था। इन दो घटनाओं ने पूरे देश की जनता को दहला कर रख दिया था। केवल पंजाब ही नहीं, बल्कि पूरा देश इन दो घटनाओं की वजह से एकदम स्तब्ध रह गया था।

झकझोर देने वाली दो बड़ी घटनाएं

उस दौरान पंजाब में आतंकवाद तेजी से अपने पांव फैलाता जा रहा था। आतंकवाद के पांव फैलाने का इल्जाम लगा था भिंडरावाले पर। भिंडरावाले को ही कहा गया कि वह आतंकवाद फैलाने के अभियान का नेतृत्व कर रहा है। ऐसे में उस वक्त कांग्रेस सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया, जिसका बड़ा ही दुखद अंत 31 अक्टूबर को हुआ था। भिंडरावाले को जहां 6 जून, 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान अमृतसर के हरिमंदिर साहिब में मार गिराया गया था, वही 1984 के अक्टूबर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी ही सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों ने गोलियों से भून डाला था।

जब नहीं बचा कोई विकल्प

कांग्रेस सरकार की ओर से 1984 में जिस वक्त स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था, उस वक्त पंजाब में आतंकवाद इतनी तेजी से फैल रहा था कि हालात एकदम बेकाबू हुए जा रहे थे। भिंडरावाला और उनके समर्थक इस तरह से विरोध कर रहे थे कि राज्य में पूरी व्यवस्था पटरी से उतर गई थी। यहां तक कि डीआईजी एसएस ओटवाल की स्वर्ण मंदिर में ही हत्या भी कर दी गई थी। ऐसे में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने स्वर्ण मंदिर परिसर में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाकर इसका अंत करने का फैसला कर लिया। खालिस्तानी चरमपंथी जिस तरीके से पंजाब में अपने पैर पसारते जा रहे थे, वैसे में इन्हें खदेड़ने का कांग्रेस सरकार के सामने अब कोई और विकल्प नहीं बचा था।

सेना को उतारने का फैसला

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने के लिए सेना का भी सहारा लेना पड़ा था। इंदिरा गांधी ने काफी सोच-विचार के बाद यह फैसला किया था। दरअसल, खालिस्तानी समर्थक भिंडरावाले ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रमुख अमरीक सिंह को रिहा किए जाने को लेकर लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहा था और उसके विरोध की आग में धीरे-धीरे पूरा पंजाब जलता हुआ नजर आ रहा था। यहां तक कि अकाली भी उनके समर्थन में उस वक्त उतर आए थे। ऐसे में इंदिरा गांधी ने कोई और चारा न देखते हुए सेना की मदद ली और 5 जून, 1984 को स्वर्ण मंदिर परिसर में 20 स्पेशल कमांडो दाखिल हो गए।

बस मौत-ही-मौत

इंदिरा गांधी द्वारा चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार कामयाब तो रहा, साथ में लोगों को इसकी खुशी भी हुई, लेकिन जितने लोग इस दौरान मारे गए उनका गम इस खुशी से कहीं ज्यादा था। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस ऑपरेशन के दौरान 83 भारतीय सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, जबकि 248 जवान इसमें घायल हो गए थे। यही नहीं, 492 अन्य लोगों को भी ऑपरेशन ब्लू स्टार में अपनी जानें गंवानी पड़ी थीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब इस वक्त अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था। खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के समाप्त होने के बाद यह कहा था कि हे भगवान आखिर यह सब क्या हो गया? इन लोगों ने तो मुझे यही बताया था कि इतनी मौतें यहां नहीं होंगी।

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आगे जो हुआ

ऑपरेशन ब्लू स्टार के समाप्त होने के बाद देशभर में तनाव का माहौल बन गया था। कांग्रेस और सिखों के बीच दूरियां भी बढ़ गई थीं। यहां तक कि सिख अंगरक्षकों ने ही इंदिरा गांधी की इसके बाद हत्या भी कर दी थी। इसके बाद जो देशभर में सिखों के खिलाफ दंगे हुए, उसमें क्या हुआ यह किसी से छिपा नहीं है।