पंडित जवाहरलाल नेहरु की मुखालफत करने वाले नेताओं की कोई कमी नहीं थी। राम मनोहर लोहिया भी उन्हीं में से एक थे। पंडित नेहरू का विरोध करने की तो जैसे उन्होंने ठान रखी थी। फिर भी जवानी के दिनों में नेहरू लोहिया को बहुत पसंद थे। जी हां, नेहरू विरोधी लोहिया उन दिनों नेहरू के बड़े दीवाने हुआ करते थे। नेहरू से लोहिया की पहली मुलाकात भी कमाल की रही थी। पसंद नेहरू को वे इतना करते थे कि उन्होंने उनके पैर छू लिए थे।
लोहिया के घर में नेहरू
यह तब हुआ था जब देश को आजादी नहीं मिली थी। लोहिया के घर पंडित नेहरू पहुंचे थे। उस दौरान नेता ज्यादातर अपने परिचितों के यहां रुका करते थे। फैजाबाद में लोहिया का घर था। नेहरू के पिता से लोहिया के पिता की दोस्ती थी। इसलिए नेहरू उनके यहां रुक गए थे।
यह वह दौर था जब नेहरू बड़ी सुर्खियां बटोर रहे थे। उनके भाषण सुने जाते थे। उनके लेख प्रकाशित होते थे। उनकी कई किताबें सामने आ चुकी थीं। इस तरीके से नेहरू को लोहिया जान रहे थे। इतनी बड़ी शख्सियत अचानक से एक दिन उनके घर पहुंच गई। उन्हें अपने सामने देख राम मनोहर लोहिया को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ।
बड़े प्रभावित हुए नेहरू
सम्मान से नेहरू के पांव पर उनके हाथ पहुंच गए। नेहरू और लोहिया की बातचीत भी हुई। लोहिया के पास जानकारी का भंडार था। लोहिया ने बड़े ही प्रभावी तरीके से अपनी बातें रखीं। उनकी जानकारी देखकर नेहरू दंग रह गए। नेहरू राम मनोहर लोहिया से तब बड़े प्रभावित हुए थे।
लोहिया के घर तब बहुत से लोग नेहरू जी से मिलने के लिए आए थे। रात लोहिया के घर में ही नेहरू की बीत गई। अगली सुबह उन्होंने स्नान कर लिया। उसके बाद उन्होंने लोहिया से कंघा मांगा।
अचरज में पड़ गए लोहिया
लोहिया बड़े चकित थे। उन्होंने देखा कि नेहरू के सिर पर तो बाल ही नहीं हैं। फिर भी नेहरू ने उनसे कंघा मांगा था। अब वे घर के मेहमान थे। ऐसे में लोहिया ने बिना सवाल किए उन्हें कंघा दे दिया। फिर भी उनके मन में एक सवाल तो चलता ही रहा। नेहरू ने आखिरकार कंधा क्यों मांगा था?
अपनी जीवनी में इसके बारे में लोहिया ने लिखा है। उन्होंने बताया है कि नेहरू के कुछ बाल बचे हुए थे। इस कंघे से उन्होंने उन बालों को संवारा था। राम मनोहर लोहिया इससे बड़े प्रभावित हुए थे। यही वजह रही कि उन्होंने इसका जिक्र किया।
शुरुआत कांग्रेस से
लोहिया के पिता कांग्रेस में थे। लोहिया ने भी राजनीति शुरू की तो कांग्रेस में ही थे। कांग्रेस में समाजवादी धारा से उनका जुड़ाव था। नेहरू भी इन विचारों को पसंद करते थे। फिर भी लोहिया इतने से संतुष्ट होने वालों में से नहीं थे। विरोध अधिवेशनों में सतह पर आ ही जाता था।
मुखर हुआ विरोध
विरोध धीरे-धीरे गहराने लगा। इलाहाबाद अधिवेशन में यह खुलकर सामने आ गया। इसके बाद तो लोहिया ने अलग राह ही पकड़ ली। फिर भी नेहरू और लोहिया के बीच बातचीत जारी रही। हालांकि, फूलपुर सीट से लोहिया नेहरू के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गए। इस तरह से उन्होंने एकदम सामने आकर विरोध जता दिया।
लोहिया ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया था। हर ओर इसकी चर्चा हो रही थी। लोहिया का जीत पाना बहुत ही मुश्किल था। इलाहाबाद वे आते-जाते रहते थे। लोगों से बातचीत करते थे। कहा जाता है कि इस चुनाव को लेकर भी उन्होंने कई सारी बातें कही थीं।
डॉ लोहिया ने कहा था
डॉ लोहिया ने कहा था कि मुझे पता है कि मैं क्या करने जा रहा हूं। मेरे सामने बहुत बड़ा चट्टान खड़ा है। हो सकता है कि उसे मैं तोड़ न पाऊं। फिर भी कोशिश तो मैं करूंगा ही। कम-से-कम उस चट्टान में दरार तो मैं डाल ही सकता हूं।
चाय पर मुलाकात
लोहिया ने ऐसा यूं ही नहीं कहा था। उन्होंने बड़ी मेहनत की थी। चुनाव का परिणाम आया तो हर कोई हैरान रह गया। पंडित नेहरू को लगभग एक लाख 10 हजार वोट मिले थे। लोहिया को भी लगभग 50 हजार वोट मिल गए थे। आमने-सामने दोनों चुनाव लड़े थे। फिर भी आनंद भवन लोहिया हमेशा पहुंच जाते थे। नेहरू के साथ वे चाय पीते थे। विरोधी थे, लेकिन एक-दूसरे का सम्मान दोनों खूब करते थे।