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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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प्लेन उड़ाकर रंगून और इंडोनेशिया गए थे ये मुख्यमंत्री, नाम था बीजू पटनायक

Information Anupam Kumari 8 March 2021
प्लेन उड़ाकर रंगून और इंडोनेशिया गए थे ये मुख्यमंत्री, नाम था बीजू पटनायक

बीजू पटनायक का नाम तो आपने सुना ही होगा। जी हां, वही बीजू पटनायक जो एक वक्त उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने थे। वही बीजू पटनायक, जो मोरारजी देसाई की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी थे। उड़ीसा में बीजू पटनायक की तूती बोलती थी।

बीजू पटनायक की असंभव को संभव बनाने की हिम्मत

उनके बारे में बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। बचपन से ही बीजू पटनायक बड़ी हिम्मत रखते थे। वे असंभव कार्य को संभव बनाने का सपना भी देखते थे। बीजू पटनायक की ख्वाहिश थी कि वे हवाई जहाज उड़ाएं। बाद में उन्होंने अपने इस सपने को पूरा भी किया था।

18 साल में ही हवाई जहाज उड़ाने की ली ट्रेनिंग

बचपन से ही साहसिक काम करने का उन्हें बड़ा शौक रहा था। एक वक्त तो वे कटक से पेशावर तक साइकिल चलाते हुए निकल गए थे। जी हां, उस वक्त वे केवल 14 साल के हुआ करते थे। यही नहीं, प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग भी इन्होंने 18 साल में ही लेनी शुरू कर दी थी। इस तरीके से बीजू पटनायक इस क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे थे।

ट्रेनिंग के दौरान मिल गई ज्ञान देवी जीवनसंगिनी

बीजू पटनायक को ट्रेनिंग के वक्त ही प्यार भी हो गया था। उनकी शादी ज्ञान देवी से हुई थी। वे रावलपिंडी की निवासी थीं। बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक हैं। वर्तमान में वे उड़ीसा के मुख्यमंत्री हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही 

बीजू पटनायक राजनीति का ही एक प्रमुख चेहरा नहीं रहे। बीजू पटनायक ने एक वक्त एक योद्धा की भी भूमिका निभाई थी। जी हां, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। तब रंगून में बहुत से भारतीय फंसे हुए थे। लड़ाई बहुत तेज हो रही थी। ब्रिटेन और मित्र राष्ट्रों की सेना एक ओर मौजूद थी। दूसरी तरफ आजाद हिंद फौज की सेना थी और जापान की सेना।

प्लेन उड़ाया और बचा ली थी हजारों भारतीयों की जान

बीच में भारतीय फंसे हुए थे। ऐसे में बीजू पटनायक ने प्लेन उड़ाया था। वे रंगून पहुंच गए थे। हजारों भारतीयों को उन्होंने वहां से सुरक्षित निकाल लिया था। उनकी जान भी इस दौरान जाते-जाते बची थी।

महाराजा हरि सिंह ने मांगी थी मदद

बीजू पटनायक को एक और साहसिक कारनामा करने का मौका मिला था। यह भारत की आजादी का वक्त था। दो टुकड़े में भारत बंट गया था। कश्मीर को बचाना उस वक्त बड़ा ही महत्वपूर्ण था। कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानियों ने हमला बोल दिया था। नेहरू से तब महाराजा हरि सिंह ने मदद मांगी थी। नेहरू तैयार थे।

कश्मीर लेकर पहुंचे थे सैनिकों को

सेना की पहली टुकड़ी कश्मीर भेजनी थी। एक बार फिर से बीजू पटनायक को याद किया गया था। सबसे पहले वही भारतीय सैनिकों वाले जहाज को लेकर श्रीनगर पहुंचे थे। बाद में बाकी सेना भी पहुंची थी। इस तरह से उनकी वजह से कश्मीर को बचा लिया गया था।

इंडोनेशिया ने लगाई भारत से मदद की गुहार

साहस दिखाने का एक और मौका बीजू पटनायक को मिला था। जी हां, यह तब हुआ था, जब इंडोनेशिया पर डचों ने हमला कर दिया था। इंडोनेशिया ने भारत से मदद मांगी थी। नेहरू प्रधानमंत्री थे। एक बार फिर से बीजू पटनायक को उन्होंने याद किया।

बीजू पटनायक तब प्लेन लेकर इंडोनेशिया गए थे। किसी तरह से उन्होंने इंडोनेशिया के सुल्तान शहरयार को बचा लिया था। साथ में इंडोनेशिया के सर्वमान्य नेता सुकर्णो को भी वे दिल्ली लेकर आए थे।

इंडोनेशिया ने दिया सर्वोच्च नागरिक सम्मान

इंडोनेशिया इसके लिए उनका आभारी रहा। इंडोनेशिया का सबसे बड़ा सम्मान भूमि पुत्र है। यह बीजू पटनायक को प्रदान किया गया था। इतना ही नहीं ‘बिंताग जसा उतान’ पुरस्कार से भी बीजू पटनायक सम्मानित किए गए थे। इंडोनेशिया का यह सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार था।

राजनीति में उत्कर्ष का वक्त

बाद में राजनीति में भी बीजू पटनायक बड़ा नाम बने थे। सबसे पहले वे कांग्रेस में थे। वे उड़ीसा के मुख्यमंत्री भी 1961 में बने थे। बाद में इंदिरा गांधी से उनकी दूरी बढ़ गई थी। एक बार मंच से उन्होंने इंदिरा गांधी को नचाने की भी बात कर दी थी। मोरारजी सरकार में उन्हें मंत्री बनने का मौका मिला था।

जनता पार्टी से जब बनी दूरी

इमरजेंसी में वे जेल भी गए थे। फिर भी संजय गांधी का समर्थन करने की वजह से उन्हें जनता पार्टी से अलग होना पड़ा था। वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही थी। हालांकि, मंडल कमीशन पर इनका उनसे बड़ा मतभेद हो गया था।

बीजू पटनायक ने 17 अप्रैल, 1997 को अंतिम सांस ली थी। उन्हें इसके बाद तीन देशों ने सम्मान दिया था। भारत के साथ इंडोनेशिया और रूस के राष्ट्रीय ध्वज में उनका पार्थिव शरीर लपेटा गया था।

Anupam Kumari

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