लोकसभा में असदुद्दीन ओवैसी की शपथ होती है, पीछे से वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे गूंज उठते हैं, पूरा सदन इन नारों में गूंज रहा होता है। लेकिन इससे पहले ऐसा नहीं हुआ, इन सांसदों में बीजेपी के ज्यादातर सांसद शामिल थे, इन सांसदों को पहले बंदे मातरम का नारा लगाना याद क्यों नहीं आया। ये नारे तभी क्यों लगे जब असदुद्दीन ओवैसी शपथ लेने के लिए जाते हैं। वैसे कम तो असदुद्दीन ओवैसी भी नहीं है, उन्होंने भी बहुत ही चालाकी से हाथों से और ऊंची आवाज में नारे लगाने का इशारा किया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के सांसद वंदे मातरम और भारत माता की जय नारों से ओवैसी को चिढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, क्या इस बात का सबूत लिया जा रहा था कि ओवैसी भारत माता से चिढ़ते हैं? क्या सदन में मौजूद सांसद ये संदेश देना चाह रहे थे कि वन्दे मातरम और भारत माता की जय से इस देश के अल्पसंख्यकों को परहेज है?
गौरतलब है कि जब असदुद्दीन ओवैसी अपनी शपथ ले रहे थे, तो प्रधानमंत्री सदन में मौजूद नहीं थे, लेकिन अगर वो होते तो क्या वो अपने सांसदों को ऐसी हरकत करने से मना करते, क्या वो उन्हें याद दिलाते कि कुछ रोज पहले ही उन्होंने चुनाव जीतने के बाद अपने पुराने नारे, सबका साथ, सबका विकास के अंदर सबका विश्वास भी जोड़ दिया है? क्या बीजेपी ऐसे ही विश्वास जीतने में भरोसा करती है? इस कदम से बेशक वो ओवैसी की देशभक्ति की भावना को संदिग्ध करना चाहते थे।
असदुद्दीन ओवैसी भी मजे लेने के मूड में लगे, और उन्होंने भी शपथ लेने के बाद अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगाया और साथ ही जय हिन्द भी उन्होंने इसमें जोड़ दिया। इस तरह उनकी तरफ से हिसाब बराबर कर दिया गया। सदन में वन्दे मातरम और भारत माता की जय एक तरफ नजर आया तो दूसरी तरफ अल्लाह-ओ-अकबर और जय हिन्द दिखा। असदुद्दीन ओवैसी को भी ये बंटी हुई राजनीति उतनी ही रास आती है, जितनी संघ और भारतीय जनता पार्टी को, दोनों की राजनीति इसी तरह से चलती है। इसमें बीजेपी के कुछ और सांसद भी पीछे नहीं हटे हेमा मालिनी ने राधे-राधे कर शपथ खत्म की तो वहीं प्रज्ञा ठाकुर ने भी संस्कृत में शपथ लेते हुए अपने गुरु का नाम जोड़ लिया था।
हालांकि ये सब इतनी अहमियत देने वाली बातें नहीं है, इन्हें अनदेखा किया जा सकता है, क्योंकि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी जो है, उसी का ये भी हिस्सा है कि लोग अपनी शपथ में बाकी मर्यादाओं का पालन करते हुए अपनी आस्थाओं को भी अभिव्यक्त कर सकते हैं। हमारी संसद की ख़ूबसूरती ये भी है कि इसमें देश की विविधता दिखती है। तरह-तरह के लोग तरह-तरह की पोशाक और तरह-तरह के ड्रामों के साथ संसद आते हैं और अपनी-अपनी भाषाओं में शपथ लेते हैं।
हालांकि ओवैसी की शपथ ग्रहण के दौरान जब लगातार भारत माता की जय के नारे लगते हैं, तो इससे बीजेपी के सांसद ओवैसी का नहीं बल्कि भारत माता का अपमान करते हैं। वन्दे मातरम से भी भारत माता को जोड़ना भारत माता को छोटा करना है। बेशक वन्दे मातरम हमारे देश की आजादी की लड़ाई में एक अहम गीत था, लेकिन वन्दे मातरम को लेकर एक तबका अपना ऐतराज रखता रहा है। भारत माता की जय के साथ ऐसा कोई ऐतराज नहीं जुड़ा हुआ है।
बीजेपी के नेता ये समझना ही नहीं चाहते हैं कि उनकी इस तरह की राजनीति उन प्रतीकों को छोटा बना रही है। राम से किसी को बैर नहीं है लेकिन जय श्री राम का नारा जब एक आक्रामक राजनीति के साथ इस्तेमाल किया जाता है, तो राम अचानक से दूसरों को डराने लगते हैं। भारत माता सबसे सम्मान का विषय है, लेकिन जब किसी सांसद की शपथ लेते समय एक हथियार की तरह उसका इस्तेमाल होता है, तो वो शायद असहाय देखती रह जाती होगी।
भारत माता एक सम्मान का प्रतीक है, जो कहीं भी इस्तेमाल किया जाए तो बाकी शब्द अर्थहीन रह जाते हैं। जब आप भारत माता का नाम लें, तो सम्मान से लें। कभी नेहरू ने ये नारा लगाते लोगों से पूछा था, क्या वो इसका अर्थ जानते हैं? अब यह सवाल कोई नहीं पूछता है। आज भारत माता एक एक साथ देखे जाने वाले सपने का नाम नहीं है, वो कुछ लोगों का राजनीतिक एजेंडा है जिससे किसी अल्पसंख्यक को पीटा जाना है, उससे उसकी वफादारी का सबूत मांगना है। उससे अपने अपराधों को छिपाया जाना है और उस नाम से एक नकली उन्माद पैदा करना है। ऐसे ही लोगों की वजह से देश प्रेम, गो प्रेम, मानव प्रेम, धर्म प्रेम – सब खूंखार लगने लगता हैं। देश कुछ सिकुड़ जाता है, भारत माता और गाय डराने लगती है, राम छोटे हो जाते हैं और कश्मीर अपना हिस्सा नहीं लगता है।