21वीं सदी में भी भारत में हम सैनिटरी पैड को बेहज छुपा कर खरीदते हैं। लाखों अपीलों के बाद भी लोग पीरियड्स यानी की मासिक धर्म के बारे में खुले में बात करने में हिचकते हैं। लेकिन फिर भी लोग हिम्मत नहीं हार रहे हैं और मासिक धर्म के लिए लोगों को जागरुक कर रहे हैं और सैनिटरी पैड को एक आम जरूरत की चीज बताने की कोशिश कर रहे हैं। जहां एक तरफ महिलाएं इतनी बंदिशों में और शर्म के पीछे छिपी हुई है। उसी दौर में आपको कश्मीर की एक महिला के बारे में जानना चाहिए। इसे अगर आप padwoman कहेंगे तो गलत नहीं होगा।
चुपचाप सैनिटरी पैड पब्लिक टॉयलट में रख आती है
जिस महिला की कहानी हम आपको बता रहे हैं वो मुफ्त में महिलाओं के लिए चुपचाप सेनेटरी पैड पब्लिक टॉयलेट में जा कर रख आती हैं। इस महिला का नाम इरफाना जरगार है जो कि श्रीनगर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के साथ काम करती हैं। जब साल 2013 में पिता का देहांत हो गया तो कुछ महीनों तक इरफाना को माहवारी के समय कपड़े का इस्तेमाल करना पड़ा था। इसके बाद पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए इरफाना ने इस पहल की शुरुआत की थी ताकि वो महिलाओं को पीरीयड्स के बारे में जागरूक कर सकें। इसके लिए वो अपनी सैलरी में से पांच हजार रूपए का इस्तेमाल करती हैं। सच में कभी-कभी छोटी सी की गई मदद भी कितना बड़ा काम कर जाती है।
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— (IRFANA ZARGAR) (@ZargarIrfana) August 31, 2021
हमारे देश में मासिक धर्म पर आज भी लोग बात नहीं करना चाहते हैं। लड़कियां अपनी परेशानी किसी से कह नहीं पाती हैं, क्योंकि उन्हें बचपन से ही इसे एक छिपाने वाली बात के तौर पर बताया गया है। भले ही कुछ लोग पीरियड्स पर खुलने लगे हैं लेकिन काफी लोगों में झिझक अभी भी मौजूद हैं। गांवों की महिलाओं और लड़कियों का तो और भी ज्यादा बुरा हाल है। अभी भी ज्यादातर लड़कियां किसी के सामने खुलकर पीरियड्स नहीं बोल पाती है, इसके लिए वे कोडवर्ड का इस्तेमाल करती हैं। भारत में अभी भी मासिक धर्म को लेकर जागरूकता का काफी अभाव है।
Sanitary Protection: Every Woman’s Health Right नाम से की गई स्टडी में ये बात सामने आई थी कि देश में अभी भी 88 प्रतिशत महिलाएं सेनिटरी नैपकिंस का प्रयोग नहीं करती हैं।
ये महिलाएं आज भी पुराने तरीकों जैसे कपड़े, अखबारों या सूखी पत्तियों का प्रयोग करती हैं। वजह ये है कि वो सैनिटरी पैड नहीं खरीद सकती है। जागरूकता के अभाव के साथ-साथ आर्थिक तंगी भी इसका एक सबसे मुख्य कारण हैं। घरों में जब महिलाओं का खराब स्वास्थ्य कोई बड़ी बात नहीं होता है तो पैड कैसे हो सकता है।
Irfana Zargar अपनी सैलरी के पैसों से करती हैं महिलाओं की मदद
पब्लिक टॉयलेट हो, बस हो, मेट्रो हो, ट्रेन हो या ऑफिस कई जगहों पर महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। जो महिलाएं जागरूक हैं वो तो अपने बैग में एक पैड हमेशा रखकर चलती हैं। उन्हें पता है कि जब इमरजेंसी में जरूरत पड़ेगी तो मुश्किल हो जाएगी और हर जगह सुविधा मौदूज नहीं है। शायद लोगों के लिए ये इतना बड़ा मुद्दा नहीं है। जो हर महीने 2 पैकेट पैड लाकर घर की महिलाओं को दे दें। सरकार क्या सुविधा देती है इसके बारे में भी लोग जागरूक नहीं है। मासिक धर्म को लेकर इस महिला ने अनूठी पहल की शुरूआत की हैं।
बात सिर्फ दाग छिपाने भर की नहीं है जिसे गलती से देख लोग मुंह और नाक सिकोड़ लेते हैं। असल में पीरियड्स को लेकर जागरुकता की कमी महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याओं कारण बनती है।
डॉक्टर्स बताते हैं कि इस वजह से लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं reproductive tract infections से पीड़ित हैं। इतना ही नहीं एक रिपोर्ट कहती है कि गांवों-कस्बों के स्कूलों में कई बच्चियां, पीरियड्स के समय 5 दिन तक स्कूल नहीं जाती हैं। वहीं 23 प्रतिशत बच्चियां माहवारी शुरू होने के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं। इसके बाद ही सरकार ने बड़े स्तर पर स्कूलों में फ्री नैपकिंस बांटने का फैसला किया था। पैड खरीदने की हैसियत अभी हर भारतीय के घर में नहीं है।
Irfana Zargar के पिता लाते थे उनके लिए सैनिटरी पैड
नौशेरा की इरफाना जरगार कहती हैं कि मेरे पिता मेरे लिए बाजार से सैनिटरी पैड्स लाते थे। उनकी मौत के बाद मैंने कुछ समय तक कपड़े का इस्तेमाल किया और फिर सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल शुरू किया। मुझे पता है कि कई महिलाएं सैनिटरी पैड नहीं खरीद सकती हैं। इसलिए मैंने अपनी बचत से महिलाओं को सेनिटरी पैड और अन्य चीजें बांटने का निर्णय लिया है। असल में इरफाना अपनी नौकरी की वजह से उनके लिए सेनिटरी किट खरीद पाती हैं। वो अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा सैनिटरी पैड में लगाती हैं और वो कहती हैं कि मैं ऑफिस के बाद, रविवार को और छुट्टियों के दिन सोशल वर्क करती हूं। मैं टोकरियों में सामान रख कर उन्हें पब्लिक टॉयलेट्स में रख देती हूं।
इरफाना अपनी सैलरी के 5000 रुपए से सैनिटरी किट बनाती हैं और जरूरतमंद महिलाओं की मदद करती हैं। महिलाओं की जिंदगी बनाने के लिए वो अपनी करफ से हर संभव प्रयास कर रही हैं। और हमें उम्मीद है कि इरफाना अपने इस सराहनीय काम से लोगों को प्रेरित करने में सक्षम होंगी।