पिछले 6 महीनों में कच्चे तेल की कीमतें विश्व में लगभग 40 फीसदी तक गिरी हैं। 2019 दिसंबर के अंत और मध्य अप्रैल के बीच इसमें करीब 60 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी, लेकिन उसके बाद मूल्य में कुछ सुधार होने लगा था। लेकिन बावजूद इसके भी जून तक दुनिया भर में तेल के दाम में गिरावट काफी नाटकीय रही है। हालांकि, भारत में इस दौरान, पेट्रोल और डीजल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं और अब वो पहले से भी कहीं ज्यादा है। पेट्रोल की कीमतों की तुलना में डीजल की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ गई हैं और अब तो डीजल बड़ा भाई बन गया है और पेट्रोल से ज्यादा दाम हो गया है। ये इतिहास में शायद पहली बार ही होगा कि डीजल की कीमतें पेट्रोल से ज्यादा हो गई है।
सरकार का राजस्व बढ़ाने के लिए बढ़ी तेल की कीमतें
भारत में तेल की कीमतों में ये वृद्धि पूरी तरह से केंद्र सरकार की वजह से हुई जिसने राजस्व बढ़ाने के लिए इन उत्पादों पर टैक्स की दर बढ़ा दी है। तेल को उस वस्तु के रूप में चुनना, जिस पर टैक्स की दरें बढ़ाई गई हैं, न केवल अमानवीय है, बल्कि संवेदनहीन भी है, खासकर इस वक्त में जब पूरी दुनिया एक महामारी से लड़ रही है। भारत में लोगों की नौकरियां चली गई है और कमाने का जरिया खत्म होता जा रहा है। सरकार के प्रवक्ताओं ने इसके पक्ष में जो तर्क दिए हैं वो ये है कि पेट्रोल और डीजल ऐसी वस्तुएं हैं जिन्हे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता हैं। इसलिए उनकी कीमतें बढ़ाना गरीबों को नुकसान पहुंचाए बिना संसाधनों को बढ़ाने का एक सुविधाजनक तरीका है। लेकिन ये पूरी तरह से गलत तर्क है।
गरीबों पर भी होगा असर
गरीब लोग सार्वजनिक परिवहन के व्यक्तिगत उपयोग के माध्यम से पेट्रोल के भारी अप्रत्यक्ष उपभोक्ता हैं। इसके अलावा, वो इस तथ्य से बहुत प्रभावित होते हैं कि तेल की ऊंची कीमतों की वजह से माल भाड़े की लागत भी बढ़ जाती है और वो सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को भी बढ़ा देती हैं, जिसमें सबसे जरूरी सामान भी शामिल होता है। इधर, डीजल की कीमतों की वृद्धि से तो लोगों की जरूरत की चीजों पर काफी असर पड़ती है। तेल एक ऐसी चीज है जिसका महत्व हर क्षेत्र में होता है। राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार ने पहले ही विभिन्न साधनों पर तो टैक्स लगाया हुआ है लेकिन तेल पर टैक्स लगाना साफ रूप से सबसे प्रतिविरोधी कदम है।
भाजपा सरकार बेदिली करने के लिए जानी जाती है
कोयला, तेल और (गैर-कोयला और गैर-तेल-आधारित) बिजली 3 सबसे अहम घटक हैं जो अर्थव्यवस्था के अंदर हर चीज के उत्पादन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से असर डालते हैं। कोई भी सरकार जो लोगों पर महंगाई की मार के कष्ट को नहीं डालना चाहती है, वो इनके दाम बढ़ाने से बचेगी, लेकिन अफसोस की बात तो ये है कि मोदी सरकार ऐसा नहीं कर रही है। ये एक ऐसी सरकार है जो अपनी बेदिली और नासमझी के लिए जानी जाती है। संविधान कहता है कि जब किसी की संपत्ति को सरकार सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी व्यक्ति से छीनती है, तो उस व्यक्ति को संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए, क्योंकि वो उसकी आय का एक स्रोत है।
लेकिन भाजपा सरकार ने कामकाजी लोगों को मुआवजा देने के अपने संवैधानिक दायित्व का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया है, और उन्हे कुछ भी नहीं दिया जिनके आय के स्रोत लॉकडाउन की अचानक घोषणा से बंद हो गए थे। आज तक हमारे देश में लॉकडाउन के कारण श्रमिकों को हुई आय की हानि के मुवावजे के लिए कोई नकद भुगतान नहीं किया गया है। लेकिन, हालत को ओर बदतर बनाने के मामले में, इस अवधि के दौरान टेक्स जरूर बढ़ा दिए गए हैं।
सरकार का संवेदनहीन फैसला
ये उपाय, न केवल लोगों के हितों के खिलाफ है बल्कि ये पूरी तरह से संवेदनहीन फैंसला भी है। सरकार, काफी समय से, अपने राजस्व से अधिक खर्च कर रही है, जिससे इसका वित्तीय घाटा बढ़ गया है। वो इस घाटे को कम करना चाहती है, यही वजह है कि अब वो तेल पर टैक्स लगा रही है। जिसका असर सिर्फ गाड़ी में घूमने वाले संपन्न लोगों पर ही नहीं होगा बल्कि टूटी चप्पल पहनने वालों पर भी होगा।