महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू। आजादी की लड़ाई में ये दो नाम प्रमुखता से दिखे थे। महात्मा गांधी राष्ट्रपिता के नाम से लोकप्रिय हुए। पंडित नेहरू चाचा नेहरू के नाम से बुलाए गए। गांधी और नेहरू के बीच के संबंध को भला कौन नहीं जानता।
पंडित नेहरू के गांधी हमेशा ही हिमायती माने गए हैं। नेहरू को गांधी ने अपना राजनीतिक वारिस भी चुना था। क्या यह सब इतनी आसानी से हो गया था? बिल्कुल नहीं। यह बात जरूर है कि नेहरू और गांधी एक-दूसरे के बहुत करीबी रहे, फिर भी शुरुआत में गांधी और नेहरू की दोस्ती में बड़ा वक्त लगा था।
जब पहली बार नेहरू और गांधी मिले थे, तब अलग ही कहानी थी। नेहरू की उम्र तब 27 साल की थी। गांधी तब 47 साल के थे। दोनों के बीच 20 साल का अंतर था। पहली बार दोनों ने एक-दूसरे को प्रभावित नहीं किया। गांधी ने अपनी आत्मकथा लिखी थी, जिसका नाम था सत्य के प्रयोग। उन्होंने इसे वर्ष 1922 से 1924 के बीच लिखा था।
कहीं पर भी पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में इसमें नहीं लिखा है। बस उनके पिता मोतीलाल नेहरू के बारे में पढ़ने को मिलता है। गांधीजी से नेहरू मिले तो थे, लेकिन प्रभावित नहीं हुए थे। गांधी ने बाद में नेहरू के बारे में लिखा था। तब वे थोड़े घमंडी दिखते थे। कोई खास बात उनमें नहीं थी। नेहरू भी गांधी से दूर ही रहते थे, क्योंकि वे आधुनिकतावादी थे। उन्हें लगता था कि महात्मा गांधी मध्य मध्ययुगीन और पुनरुत्थानवादी तरह के हैं।
धीरे-धीरे वक्त बदलने लगा। गांधी, मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू आपस में जुड़ने लगे। इनकी टिकरी बहुत मशहूर होने लगी। इन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा भी कहा जाने लगा। नेहरू से गांधी आत्मीय रूप से जुड़े थे। शुरू में उन्हें बहुत सारा काम भी दिया। नेहरू से कई विवादों में मध्यस्थता भी करवाई।
नेहरू कभी अकेलेपन का शिकार रहे थे। ऐशोआराम की जिंदगी बिताई थी। अब उन्हें अपना खुद का अस्तित्व समझ में आने लगा था। गांधीजी उन्हें अपने-अपने से लगने लगे थे। गांधी जी का त्याग उन्हें बहुत आकर्षित कर रहा था। नेहरू की अपने पिता के साथ दूरियां बढ़ रही थी।पंडित जवाहरलाल नेहरू। एक तरह से विद्रोह कर रहे थे। ऐसा उनके पिता का मानना था।
नेहरू ने गांधी को चिट्ठी लिखकर अपने पैरों पर खड़ा होने की बात भी की थी। गांधी ने भी नेहरू को समझाया था। 15 सितंबर, 1924 को उन्होंने नेहरू को एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने उनसे अपने पिता से खुलकर बात करने के लिए कहा था।
जन्मदिन पर पंडित जवाहरलाल नेहरू को हमेशा महात्मा गांधी शुभकामनाएं भेजते थे। कमला नेहरू की सेहत की भी वे चिंता करते थे। गांधीजी का निर्भय होना उन्हें बहुत प्रभावित कर रहा था। डिस्कवरी ऑफ इंडिया में नेहरू ने एक महत्वपूर्ण बात लिखी है। उन्होंने लिखा है कि अभय-निर्भयता किसी भी देश के लिए सबसे बड़ा उपहार होती है।
गांधीजी से पंडित जवाहरलाल नेहरू ने निर्भय होना सीख लिया था। असहयोग आंदोलन के दौरान उनका विद्रोही तेवर देखने लायक था। अंग्रेजों को गाली देने का उन पर आरोप लगा था। गांधी जी ने स्पष्टीकरण भी मांग लिया था। यंग इंडिया में 17 नवंबर, 1921 को उन्होंने एक पूरा लेख लिखा था। इसमें बताया था कि गाली क्या है।
असहयोग आंदोलन के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू जेल गए थे। उनके पिता मोतीलाल को भी जेल हुई थी। रिहाई मार्च, 1922 में हुई थी। बाहर आने के बाद उन्होंने कहा था कि जेल से बाहर आने का मुझे कोई नैतिक अधिकार नहीं था। लड़ाई जारी रखनी है। भारत की आजादी के लिए काम करते रहना है। महात्मा गांधी के पीछे चलना है। गांधी जी ने 5 अक्टूबर को नेहरू को एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने अपने संबंधों को अटूट बताया था।
महात्मा गांधी ने लिखा था कि हिंदुस्तान की आजादी के लिए ही हम दोनों जिंदा रहते हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए मरना भी अच्छा ही लगेगा। न तो हमें किसी की तारीफ चाहिए। न ही गालियां। मैं तो बूढ़ा हूं और तुम जवान हो। इसलिए मैंने कहा था कि मेरे वारिस तुम ही हो। मैं अपने वारिस को समझना चाहता हूं। मैं भी क्या हूं, यह वारिस को समझ लेना चाहिए। इससे मुझे संतुष्टि मिलेगी।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की 15 जनवरी, 1942 को वर्धा में बैठक हुई थी। यहीं उन्होंने नेहरू को अपना वारिस घोषित किया था। गांधी जी ने कहा था कि मेरा वारिस तो जवाहरलाल है। मैं मर गया तो वही मेरा सब काम करेगा। मेरी भाषा भी वह बोलेगा।