सरकार द्वारा जारी किए गए कीमतों के नए आंकड़ों से पता चलता है कि लोग इन दिनों किस तरह की महंगाई का सामना कर रहे हैं। रोज की जरूरत की चीजों ने बाजार में आग लगाई हुई है उनकी महंगाई इतनी बढ़ गई है कि लोगों के लिए जरूरी चीजें लेना भी बहुत मुश्किल होता जा रहा है। ये महंगाई न सिर्फ बजट हिला रही है बल्कि पोषण को भी खराब कर रही है। जैसा कि बुंदेलखंड क्षेत्र से सैयतन बेरा की चौंकाने वाली रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि लोग रोटी, नमक और मिर्च पर ही सिर्फ जिंदा हैं और कुछ चने के नाजुक पत्तों का भी सेवन कर रहे हैं हालांकि सर्दियों में सब्जियां और फल काफी मात्रा में होते हैं और इसलिए भोजन की सामाग्री की कीमतें कम होनी चाहिए।
इसके पीछे का कारण हम बढ़ती बेरोजगारी भी कह सकते हैं क्योंकि बेरोजगारी के कारण लोगों के पास आर्थिक संकट ज्यादा हो गया है। जिसकी वजह से ये संकट ज्यादा तेज हो गया है कि जिस पर सरकार ने महीनों से ध्यान ही नहीं दिया है और अब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई हैं। वो लोग जिनकी कोई आय नहीं है या फिर बहुत काम आय हैं वो बढ़ती खाद्य कीमतों को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। मामला तो अब आत्महत्या तक पहुंच गया है।
खाने की कीमतों में जारी है महंगाई
दिसंबर 2019 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के अनुसार एक वर्ष में मूल्य वृद्धि सब्जियों के मामले में 60.5 प्रतिशत, दालों में 15.4 प्रतिशत, मसालों में 5.8 प्रतिशत दर्ज की गई है। इस तरह से केवल दाल के अलावा एक आम भारतीय के खाने की थाली में शामिल होने वाले खाद्य पदार्थो की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हुई हैं। अंडे की कीमत में 8.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। मांसाहारी लोगों का दर्द भी कुछ ऐसा ही है और मांस और मछली में 9.6 प्रतिशत का उछाल है। किसी के बचने का कोई रास्ता नहीं है और समाज के निचले पायदान वाले लोगों लिए तो ये जीने -मरने का मुद्दा बन गया है। लेकिन हमारे प्रधान सेवक इस पर निश्चिंत नजर आते हैं।
सामान्य खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति जिसमें परिवारों द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें भी शामिल हैं, दिसंबर में 7.35 प्रतिशत के उछाल के साथ बढ़ गई थी, कीमतों में इतना बड़ा उछाल मोदी शासन के साढ़े पांच साल के दौरान कभी नहीं देखा गया था। लेकिन आज खाने की कीमतों में उछाल है जो सामान्य दर से बहुत आगे बढ़ गया है। एक साल पहले जनवरी 2019 में खाद्य मुद्रास्फीति काफी नकारात्मक चल रही थी और सामान्य मुद्रास्फीति केवल 1.97 प्रतिशत थी।
बढ़ती बेरोजगारी
इस बीच बेरोजगारी दर पिछले 12 महीनों में लगभग 7 प्रतिशत या उससे अधिक रही है और दिसंबर में ये 7.6 प्रतिशत थी जिसका खुलासा सीएमआईई की रिपोर्ट ने किया था। ये 13 जनवरी, 2020 तक उसी स्तर पर रही है। ये बढ़ती बेरोजगारी का अब तक का निरंतर चलने वाला और सबसे खराब स्तर है जिसे भारत काफी लंबे समय से देख रहा है और झेल भी रहा है। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार लगभग 7.3 करोड़ लोग पूरी तरह से बेरोजगार हैं जिसे भारत और दुनिया में बेरोजगारों की सबसे बड़ी सेना कहा जा सकता है। ये न केवल परिवारों के जीवन पर घातक प्रभाव डाल रही है बल्कि मौजूदा मंदी भी उन्हे इससे बचाने से रोक रही है क्योंकि ये स्थिति लोगों की खरीदने की शक्ति को खत्म कर दे रही है। जिस वजह से बाजार में मांग ही कम हो गई है।
नतीजतन उत्पादन इससे ग्रस्त हो रहा है और निवेश ठंडे बस्ते में जा रहा है। दुर्भाग्य से भारत में सत्तारूढ़ सरकार इस पर कोई जवाब देती नजर नहीं आ रही है। सरकार इसके लिए कॉरपोरेटों को बड़ी रियायतें देकर और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को बेचकर निवेश को बढ़ावा देने के अपने ख्याली पुलाव पकाने में लगी हुई है। लेकिन ऐसा कभी होने वाला नहीं है क्योंकि कॉरपोरेट्स अपने लाभ मार्जिन को बनाए रखने के लिए उन सभी रियायतों का उपयोग कर रहे हैं जो उन्हें सरकार ने बांटा है।
नरेंद्र मोदी सरकार जिसने 2014 में अच्छे दिन और हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था। वो अब वर्तमान में अपने पसंदीदा संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडा यानी की हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए काम कर रही है। अब तक मोदी सरकार ने बढ़ती कीमतों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है और बेरोजगारी के मुद्दे को भी नकली आंकड़ों के बस्ते में डाल दिया है। और भक्त उस पर ताली पीट रहे हैं।