70 दिनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं, कृषि कानूनों के विरोध में ये किसान आंदोलन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी तक ही सीमित था, लेकिन 26 जनवरी के बाद ये और ज्यादा फैल गया है। इसमें कई राजनीतिक पार्टियां भी कूद गई है। जिस कारण किसान आंदोलन का दायरा बढ़ गया है। अब इसमें राजनीतिक दल भी किसानों का समर्थन कर रहे हैं और आंदोलन दूसरे राज्यों में भी फैल रहा है। ऐसे में इस आंदोलन का असर चुनावों पर जरूर पड़ेगा। साल 2024 लोकसभा चुनाव से पहले देश में 20 विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
हाल ही में पश्चिम बंगाल समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन किसान आंदोलन के बाद स्थितियां भाजपा के लिए पूरी तरह से बदल गई है। किसान आंदोलन का असर भाजपा की राजनीति पर पड़ रहा है। सीधे तौर पर कहें तो किसान आंदोलन की नियति पर ही भाजपा का भविष्य टिका हुआ है। किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार इन तीनों कानूनों को रद्द करे और एमएसपी को कानूनी रूप दे। लेकिन अगर मोदी सरकार इसी तरह से अड़ी रही तो उसे सीधे तौर पर तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में नुकसान होगा। अगर किसान आंदोलन देश व्यापक हो गया तो भाजपा के लिए आने वाले सभी चुनाव काफी मुश्किल होने वाले हैं।
आने वाले चुनावों में किसान आंदोलन का दिखेगा असर
फिलहाल पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी में कुछ महीनों के अंदर चुनाव होने हैं। इन राज्यों में से केवल एक राज्य असम में ही भाजपा सरकार है। जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, केरल में कम्युनिस्ट सरकार, तमिलनाडु में एआईएडीएमके के पलानीस्वामी मुख्यमंत्री हैं। तो पुडुचेरी में कांग्रेस की सरकार है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी राह बना रही है, लेकिन किसान आंदोलन की वजह से एक बड़ा झटका मिल सकता है।
राज्य में ममता बनर्जी पहले से ही भाजपा को लेकर हमलावर रही हैं। किसान आंदोलन के दौरान तो भाजपा को किसान विरोधी बना दिया है। बंगाल में अगर भाजपा विरोधी माहौल बन गया, तो पार्टी का बंगाल विजय का सपना अधूरा रह जाएगा। वहीं केरल में भाजपा के पास कोई खास जनाधार नहीं है। असम में भाजपा के सामने सत्ता में वापसी करने की चुनौती है। कांग्रेस और बाकी दल किसान आंदोलन का पूरी तरह से यहां इस्तेमाल करेंगे।
वहीं तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ भाजपा का गठबंधन है। राज्य में किसान आंदोलन का कुछ खास प्रभाव फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा है। लेकिन जयललिता के निधन के बाद यहां चुनावी तस्वीर बदल चुकी है। तमिलना़डु में डीएमके इस गठबंधन को कड़ी टक्कर देगा। पुडुचेरी में भाजपा का खाता इस बार भी खुलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
2022 में भी दिखेगा असर
इसके अलावा 2022 के शुरुआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं। पंजाब में आंदोलन की वजह से अकाली दल पहले ही एनडीए का साथ छोड़ चुका है। सीएम अमरिंदर सिंह और आम आदमी पार्टी शुरुआत से ही किसानों का समर्थन करती रही हैं। वहीं उत्तराखंड में मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस किसानों का खुलकर साथ दे रही है। गोवा और मणिपुर में भी यही हाल है। इन राज्यों में किसानों की भूमिका उतनी बड़ी नहीं होगी, लेकिन भाजपा को नुकसान जरूर होगा। वहीं उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की भूमिका बहुत बड़ी हो गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 44 विधानसभा सीटों पर भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज रही है। यूपी में एक बड़ी आबादी गांव और किसानी से जुड़ी है।
गुजरात-हिमाचल पर भी होगा असर
2022 के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां भी भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला है। 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को 99 सीटें मिली थी। 2012 में भाजपा ने 115 सीटों पर जीत हासिल की थी। गुजरात में भाजपा की सीटें बीते 2 बार से लगातार घट रही है। किसान आंदोलन का मामला गुजरात की राजनीति में भी बड़ा असर डाल सकता है। वहीं हिमाचल प्रदेश में हर विधानसभा चुनाव में सरकार बदल जाती है। तो ऐसे में जहां भाजपा सरकार के सामने ये चुनौती होगी तो वहीं किसान आंदोलन का असर भी दिखेगा।