किसान आंदोलन इस वक्त पूरे देश में हड़कंप मचाये हुए हैं। सरकार से लेकर जनता तक किसान आंदोलन को लेकर परेशान है, कुछ लोग किसानों के साथ हो रहे गलत व्यवहार के लिए परेशान है, तो कुछ लोग सरकार की आलोचना से परेशान है। लेकिन सरकार पूरी तरह से घिरी हुई है और बहुत से बड़े नेताओं की नींदें उड़ी हुई है। सरकार 6-7 बार किसानों से बात कर चुकी है, लेकिन हर बार कोई नतीजा नहीं निकला। पुलिसबल का इस्तेमाल कर लिया, समझाने की कोशिश कर ली, धमकाने की कोशिश कर ली, बदनाम भी कर लिया, लेकिन किसी भी तरीके से किसान माने नहीं और अपनी मांगें लेकर अड़े है।
देखते हैं कौन झुकता है पहले
मामला इतना बड़ गया है कि पद्म पुरस्कारों को लौटाने का सिलसिला शुरु हो गया है। खिलाड़ियों ने अपने खेल रत्न वापिस देने शुरु कर दिए हैं। तो अभिनेता, सिंगर समेत कई कलाकार भी सड़कों पर उतर गए हैं। इस तरह के विरोध प्रदर्शन बहुत कम नजर आते हैं। जिसमें इरादें इतने मजबूत होते हैं कि सरकार को घुटने टेकने पड़ते हैं, हालांकि अभी तक सरकार तो नहीं झुकी है और किसान भी झुकते नजर नहीं आ रहे हैं। देखते हैं इनमें से पहले कौन झुकता है।
कुछ महीनों पहले संसद में पास हुए 3 कृषि कानूनों को लेकर किसानों में जहां भारी रोष है, तो वहीं अब ये बात भारत बंद से भी आगे निकल गई है। लेकिन इस सबमें लोगों की जान जाने का सिलसिला भी शुरु हो गया है। कई रोज से खबरें आ रही है कि किसान की मौत हो गई है। सर्द मौसम में भी आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे तो हुए हैं, लेकिन ये मौसम अब हानिकारक होता जा रहा है और इसकी वजह से ही सोनीपत के सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में एक किसान की मौत भी हो गई है। किसान आंदोलन में टीडीआई सिटी के सामने किसान की मौत हुई है। किसान का नाम अजय है और उनकी उम्र सिर्फ 32 साल थी।
5 किसानों की हो चुकी है मौत
पंजाब के खोटे गांव के रहने वाले मेवा सिंह की भी इसी वजह से मौत हो गई है। मेवा सिंह टीकरी बॉर्डर पर विरोध कर रहे थे। बताया जा रहा है कि मेवा सिंह की मौत दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई है। कृषि कानून का विरोध करने की वजह से अब तक 5 किसानों की मौत हो चुकी है। जिसमें से 1 किसान की मौत तो खड़ी गाड़ी में आग लगने की वजह से हुई थी, जबकि 5 किसान बीमारी की वजह से मर गए। इन बीमारियों का सबसे बड़ा कारण तो ठंड को ही बताया जा रहा है। 50 साल के गज्जन सिंह की मौत भी 29 नवंबर को हुई थी। परिजनों का कहना है कि वो वॉटर कैनन की वजह से बीमार हो गया था।
कब तक अहम में रहेगी सरकार?
ऐसे में सरकार से सवाल जरूर होना चाहिए कि इन किसानों की मौत का जिम्मेदार कौन है? क्या सरकार की जिद्द या यूं कहें कि अहम इतना बड़ा है कि वो देश के अन्नदाता के सामने झुकने तो तैयार नहीं है। सरकार अपनी राजनीति चमकाने के लिए इन किसानों को बलि का बकरा क्यों बना रही है? जब किसान अपने लिए लाए कानून से खुश नहीं है तो इन्हें वापिस लेना ही अकलमंदी कहलाई जा सकती है। हालांकि इस सरकार का कानूनों को लेकर जो रवैया रहा है वो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और तानाशाही से भरा हुआ रहा है।