आज कांग्रेस और कैप्टन अमरिंदर सिंह खुश तो बहुत होंगे क्योंकि किसान आंदोलन का पूरा फायदा मिला है और पंजाब में हुए निकाय चुनाव के नतीजों में कांग्रेस ने एकतरफा शानदार जीत हासिल कर ली है। पंजाब निकाय चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि कैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा को पूरी तरह हाशिये पर रख दिया है और शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी को भी कांग्रेस के आस पास नहीं आने दिया। ये भी साफ हो गया है कि किसान आंदोलन को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह की सभी राजनीतिक चालें सही निशाने पर लगी हैं।
पंजाब के निकाय चुनावों के ये नतीजे मोदी सरकार की तरफ से लाये गये कृषि कानूनों पर जनमत संग्रह की तरह है। भाजपा नेतृत्व के लिए जमीनी स्तर से महत्वपूर्ण फीडबैक है। चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि केंद्र सरकार से पंजाब का किसान किस हद तक नाराज हैं और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में भी उनको कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। इसका नतीजा यूपी में भी साफ नजर आएगा औप अप्रैल में होने जा रहे पंचायत चुनाव अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों की तस्वीर पेश कर सकते हैं।
पंजाब निकाय चुनाव से क्या संदेश मिलता है
किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद भाजपा सांसद सनी देओल (Sunny Deol )का नाम दोबारा सुर्खियों में आया है और इस बार भी जो वजह है वो सनी देओल की सियासी सेहत के लिए खराब है। 26 जनवरी को हुई दिल्ली हिंसा में जिस दीप सिद्धू का नाम उछला उसने सिर्फ Sunny Deol को ही नहीं बल्कि पूरी भाजपा को कठघरे में खड़ा कर दिया था। नौबत यहां तक आ गई कि सनी देओल को सामने आकर दीप सिद्धू से अपने रिश्ते को लेकर सफाई देनी पड़ी। अब भाजपा की करारी हार के लिए भी Sunny Deol का नाम चर्चा में आ गया है।
भाजपा नेतृत्व को अब किसान आंदोलन को लेकर फिक्र बढ़ने लगी है। भाजपा को लग रहा है कि कम से कम 40 लोक सभा सीटों पर किसान आंदोलन का प्रभाव हो सकता है और इसीलिए जेपी नड्डा चाहते हैं कि भाजपा नेता अपने अपने इलाके में लोगों के बीच जायें और उनको कृषि कानूनों के बारे में सरकार का पक्ष समझायें। असल में केंद्र सरकार और किसानों के बीच हुई बातचीत के 11 दौर के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकल सका है। यहां तक कि नरेंद्र सिंह तोमर के बस एक फोन कॉल दूर वाला बयान प्रधानमंत्री की तरफ से दोहराये जाने के बावजूद किसानों पर कोई असर नहीं हुआ है।
यूपी पर क्या होगा इन नतीजों का असर
भाजपा चाहे तो पंजाब निकाय चुनाव के नतीजों को तीनों कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन पर फीडबैक के तौर पर भी ले सकती है। ये भी हो सकता है कि किसान आंदोलन को लेकर कोई फैसला लेने से पहले भाजपा नेतृत्व इन नतीजों का इंतजार भी कर रहा हो और जैसे ही अहसास हुआ फटाफट आंदोलन प्रभावित क्षेत्रों के बाजपा नेताओं को मीटिंग के लिए बुला लिया गया। अमित शाह, जेपी नड्डा और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ हुआ मीटिंग में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह भी बुलाये गये थे। ये दोनों ही उन इलाकों से आते हैं जहां पर भाजपा को किसानों के गुस्से का अंदाजा हो चुका है।
28 जनवरी को राकेश टिकैत के आंसू नहीं छलके होते तो शायद पंजाब के इन नतीजों का उत्तर प्रदेश की राजनीति पर शायद ही कोई असर देखने को मिलता, लेकिन अब तो लगने लगा है कि यूपी में होने जा रहे पंचायत चुनाव के नतीजे भी मिलते जुलते हो सकते हैं, पूरा उत्तर प्रदेश न सही लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश पर तो खासा प्रभाव पड़ सकता है। मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत ने दो बातें खास तौर पर कही थी। एक आरएलडी नेता अजीत सिंह का साथ छोड़ना उनकी सबसे बड़ी गलती थी और दूसरा भाजपा को आने वाले चुनावों में सबक सिखाना है।
नरेश टिकैत के मुंह से अजीत सिंह का नाम सुन कर ये समझा गया कि वो भाजपा की जगह अब आरएलडी को सपोर्ट करने का मन बना चुके हैं, लेकिन राकेश टिकैत की ताजा गतिविधियों से ऐसा नहीं लगता है। अब ये लगने लगा है जैसे राकेश टिकैत सिर्फ किसानों नहीं बल्कि जाटों के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं और वो पूरा इलाका जिसे जाटलैंड समझा जाता है पर फोकस कर रहे हैं। ये वही इलाका है जिसे लेकर भाजपा नेतृत्व फिलहाल सबसे ज्यादा चिंतित है।