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PM Cares Fund सरकारी नहीं तो कहीं मोटा भाई की संपत्ति तो नहीं?

मोदी सरकार बीच बीच में ऐसी बातें कह देती है या ऐसे काम कर देती है जिससे लोगों की सोच चक्कर खा जाती है। यहां पर मैंने लोगों में अंधभक्तों को शामिल नहीं किया है, क्योंकि उन्हें आम लोगों में नहीं गिना जा सकता है। वो उच्च-स्तरीय बातों को ही समझ पाते हैं। तो आम लोग कई बार सरकार की बातों में चक्कर खा जाते हैं। जैसे अभी हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय ने हाई कोर्ट में किया है। हाई कोर्ट में पीएमओ की तरफ से कहा गया है कि PM Cares Fund सरकार का फंड नहीं है इसलिए वो आरटीआई के दायरे में नहीं आ सकता है। जैसे ही ये बात लोगों के कानों में पड़ी तो कई सवाल मन में उठने लगे, जैसे कि क्या लोगों के करोड़ों रुपये ठगे गए हैं। अगर ठगे गए हैं तो ठग तो प्रधानमंत्री हुए।

कैसे प्रधानमंत्री के द्वारा शुरु किए गए फंड को गैर सरकारी कहा जा रहा है?

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही पूरे देश को संबोधित करते हुए खास पीएम केयर्स फंड की घोषणा की थी। मतलब की देश की सरकार के सर्वोच्च नेता यानी की प्रधानमंत्री ने ही पूरे देश की जनता को ठगा है। क्योंकि अगर वो किसी फंड की शुरुआत करते हैं वो भी प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए तो वो गैर-सरकारी कैसे हो सकता है। तो क्या प्रधानमंत्री ही चोर जैसा अक्सर राहुल गांधी कहते रहे हैं।

प्रधानमंत्री के द्वारा कही गई हर एक बात सरकारी मानी जाती है क्योंकि वो भारत सरकार के सर्वोच्च नेता है। तो ऐसे में प्रधानमंत्री किसी भी योजना या फंड की शुरुआत करते हैं तो वो सरकारी ही कहलाया जाता है। प्रधानमंत्री एक संवैधानिक पद है और वो अपने पद से ऐसे फैसले नहीं ले सकते हैं जो सरकारी ना हो। अगर वो ऐसा करते हैं तो वो कानून का उल्लंघन होता है और पद का गलत इस्तेमाल करना कहलाया जाता है। इस आधार पर तो तुरंत उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और उन्हें अपने पद से तुरंत इस्तीफा देना चाहिए। 

कहीं पीएम केयर्स से ही तो नहीं लगती विधायकों की सेल?

चलिए मान लेते हैं कि पीएम केयर्स फंड सरकारी नहीं है। तो अगर ऐसा है तो फिर पीएम केयर्स फंड का असली मालिक कौन है? जनता के द्वारा अरबों रुपये पीएम केयर्स फंड में दान किए गए थे, जो कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए था। हालांकि कोरोना वायरस तो काबू में अभी तक नहीं आया और इन पैसों का कहां इस्तेमाल हुआ ये जवाब किसी के पास नहीं है। अभी तक तो सरकार से इस बारे में सवाल पूछा जाता था, लेकिन अब जब पीएमओ की तरफ से कह दिया गया है कि ये सरकारी फंड नहीं है तो अब इस फंड का इस्तेमाल कौन करेगा और इसका हक किस के पास है।

अगर सरकार का फंड नहीं है तो फिर ये माना जाए कि पीएम केयर्स फंड भारतीय जनता पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया गया था। और उसी के तहत मोटा भाई विधायकों की खरीद करते हैं और सेल लगाते हैं सरकार बनाने के लिए? या फिर इस फंड को अंबानी-अडानी के लिए बनाया गया था। कई सारे सवाल लोगों के मन में आ गए हैं क्योंकि लोगों ने दिल खोल कर कोविड-19 से लड़ने के लिए पैसे दान किए थे। अब ये सारा पैसा किसके हिस्से में गया है और इसका जवाबदेह कौन है।

.gov.in डोमेन कैसे मिला?

पीएम केयर्स फंड अगर सरकारी नहीं है तो इसकी वेबसाइट का डोमेन .gov.in कैसे है? .gov.in तो सिर्फ भारत सरकार के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं के लिए होता है। तो इस हिसाब से तो पीएम केयर्स फंड सरकारी हुआ, लेकिन पीएमओ के हाई कोर्ट में दिए इस बयान से काफी लोगों को कंफ्यूजन हो गई है। हैरत की बात तो ये है कि 15 अगस्त 2016 को नरेंद्र मोदी ने बतैर प्रधानमंत्री लाल किले के प्राचीर से पारदर्शिता पर जमकर भाषण दिया था और अब अपने ही द्वारा बनाए गए फंड को गैर सरकारी बता कर आरटीआई से बाहर कर रहे हैं।

शुरुआत से ही ये सवाल उठ रहा है कि जब देश में पहले से ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष मौजूद है तो फिर नए फंड बनाने की जरूरत क्यों पड़ी थी। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में 2019 के अंत तक 3800 करोड़ रुपये मौजूद थे। इस फंड के सारे आंकड़े प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं और किस-किस रूप से कितने पैसे खर्च हुए है इसका भी ब्यौरा मौजूद है। लेकिन पीएम केयर्स को शुरु से ही छुपा कर रखा गया है।