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यूपी की सियासत में केजरीवाल और ओवैसी क्या गुल खिलाएंगे?

Logic Taranjeet 20 January 2021
यूपी की सियासत में केजरीवाल और ओवैसी क्या गुल खिलाएंगे?

यूपी की सियासत में आम आदमी पार्टी और ओवैसी की एंट्री हो गई है। लेकिन ये किस काम की है? यकीनन ये किसी काम की पार्टियां नहीं है क्योंकि इनका अभी इतना जोर नहीं है कि यूपी जैसे राज्य में कुर्सी पर कब्जा कर ले। लेकिनी ये किसी को हानि और किसी को लाभ जरूर पहुंचाएंगे। वैसे तो हमेशा से उत्तर प्रदेश देश की सियासत की प्रयोगशाला रहा है। जब देश में पूरी तरह से कांग्रेस का वर्चस्व था तो यूपी में दशकों तक कांग्रेस जमी रही। देश से कांग्रेस का पतन हुआ तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सत्ता का मुंह देखने को तरस गई। करीब तीन दशक से यहां पर क्षेत्रीय दलों और भाजपा की सरकारें बनी है। भाजपा और कांग्रेस के बाद क्षेत्रीय दलों का एक थर्ड फ्रंट बन चुका है और सत्ता भी काफी हासिल की है।

भाजपा को घेरेंगे या फायदा देंगे छोटे दल

एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी के साथ कई छोटे दलों की एकजुटता और साथ में आम आदमी पार्टी का आना कुछ ना कुछ रंग दिखा सकता है। बिना किसी मजबूत संगठन के अपने छोटे-छोटे घरों से निकलकर दूसरों के बड़े-बड़े महलों में कदम रखने वाले ये सियासी दल कुछ खास कर पाने की उम्मीद तो नहीं देते हैं। लेकिन ये भाजपा को या तो घेरेंगे या फिर उसका साथ देंगे। ये जानने की बड़ी जिज्ञासा है।

यूपी में ओवेसी और विभिन्न जातियों के छोटे-छोटे दलों का मोर्चा बसपा गठबंधन का हिस्सा बन सकता है? क्या आम आदमी पार्टी सपा गठबंधन से तीस-पैतीस सीटों के लिए उतरेगी? फिलहाल अभी उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों की जगह पर ओवैसी, आप और अन्य छोटे दलों ने हल्ला बोल दिया है। यूपी की राजनीति में दमखम के साथ दाखिल हो रहे ये नए सियासी अवतार भाजपा के कमल को मुरझाने का काम करेंगे या खाद-पानी देकर उसे और मजबूत करेंगे?

मिल सकती है सियासत को नई दिशा

अलग-अलग संभावनाएं और कयासों की बात की जाए तो कांग्रेस कमजोर और अलग दिख रही है। बसपा अगर ओवैसी को साथ लेती है और इसमे सफल होती है तो ये प्रयोग भारतीय सियासत को एक नई दिशा दे सकता है। यूपी में दलित-मुस्लिम समाज एकजुट हो गया तो ये भाजपा के लिए तो घातक है लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी इसके साथ धराशायी हो जाएंगे। हालांकि ऐसी संभावनाएं इसलिए कम हैं क्योंकि चुनाव में बसपा सुप्रीमों द्वारा अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का बुरा अंजाम हुआ है।

आप कर सकती है विकल्प की राजनीति

वहीं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बयान दे चुके हैं कि वो बड़े दलों से गठबंधन नहीं करेंगे और अगर सपा ने आम आदमी पार्टी के लिए 30-35 सीटें छोड़ दीं तो ये भाजपा के लिए खतरा बन सकती है। क्योंकि फ्री बिजली और बेहतर स्कूल का दिल्ली मॉडल जनता पर असर डालता है ये दिल्ली में देख चुके हैं। भाजपा से नाराज शहरी वोटर आप को विकल्प के तौर पर स्वीकार कर सकता है। यूपी के विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले इन तमाम कयासों और संभावनाओं में ये तो तय है कि करीब 30 साल पुराना यूपी का पारंपरिक पैटर्न बदलता दिख रहा है।

हालांकि पिछले चुनावों में देखा है कि इन छोटे दलों का बहुत मिला जुला रवैया रहा है। जब ओवैसी बिहार लड़ने गए तो उन्हें किसी ने गंभीरता से नहीं लिया लेकिन वो अंत में महागठबंधन का पूरा खेल बिगाड़ गए। हालांकि आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली से बाहर निकलना ज्यादा फायदेमंद नहीं रहा है। पंजाब में कुछ सीटें जीत सके लेकिन बाकि राज्यों में गिर गए। हालांकि अभी से इन दलों का यूपी पर निशाना साधना कुछ खेल पलट सकता है। लेकिन सत्ता में आना इन दलों के लिए मुश्किल होगा ये सिर्फ किसी खास दल का खेल बना और बिगाड़ जरूर सकते हैं। 

Taranjeet

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.