प्रदोष माह शुक्ल और कृष्ण पक्ष की बारस या तेरस को आता है। प्रदोष का व्रत और उपवास भगवान सदाशिव को खुश करने के लिए किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रदोष काल में स्नान के पश्चात् मौन रहना चाहिए, क्योंकि शिव-कर्म में सदैव मौन होकर ही पूर्णता प्राप्त की जाती है। इसमें भगवान सदाशिव का पंचामृतों से संध्या के समय अभिषेक किया जाता है।
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती की पूजा की होती है। इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप किया जाता है। प्रदोष व्रत करने पर भगवान शिव की कृपा भक्तों पर हमेशा बनी रहती है और व्रत करने वाले के सभी दुख समाप्त हो जाते हैं।
आज प्रदोष व्रत की कथा के बारे में हम आप सभी को बताएंगे स्कंद पुराण में वर्णित इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्रम्हाणी अपने पुत्र को लेकर भिख मांगने जाती थी। और शाम होता तो वापस लौटती थी,एक दिन जब वह वापस लौट रहीं थी तो उसे नदी के किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था।
ऋषि शांडिल्य से मुलाकात
शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था उसकी मां की मृत्यु भी अकाल हुई थी ब्राम्हणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन– पोषण किया कुछ समय बाद ब्राम्हणी दोनों बालको के साथ देवयोग से देव मन्दिर(Temple) गई वहां उसकी मुलाकात ऋषि शांडिल्य (Sage Shandilya) से हुईं, उन्होंने उसे बताया कि जो बालक उसे मिला है वह एक राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे,और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था, ऋषि शांडिल्य ने ब्राम्हणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी उनकी बात मानकर दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
एक दिन दोनों बालक घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंदर्भ कन्याएं नज़र आयी, ब्राम्हण बालक तो घर वापस लौट आया लेकिन राजकुमार धर्मगुप्त अशुमती नाम की कन्या से बात करने लगे | धर्मगुप्त और आशुमती एक दुसरे पे मोहित हो गए | कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने माता पिता से मिलवाने के लिए बुलवाया |
दूसरे दिन जब वह वापस कन्या से मिलने वहां आया तो कन्या के पिता ने बताया की वह विदर्भ देश का राजकुमार है | भगवान् शिव की आज्ञा से गन्धर्व राज नेअपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया | इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त गन्धर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त कर लिया।
यह सब ब्राम्हणी और धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था, स्कंदपुराण (Skanda Purana)के अनुसार जो भक़्त प्रदोष व्रत के दिन शिव पूजन के बाद इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती हैं।
प्रदोष व्रत महीने में दो बार होता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह व्रत एक बार शुक्ल पक्ष और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में आता है।
इस व्रत में भगवान शिव जी की पूजा करने से सभी पापो का नाश होता है। इस व्रत को वार के अनुसार करने से ज्यादा लाभ मिलता है। जिस वार को यह व्रत पड़ता है उसी अनुसार कथा पढ़ने से फल भी प्राप्त होते हैं। हिन्दू कैलेंडर (Hindu calendar) के अनुसार शिव जी की पूजा का सही समय शाम का है, जब मंदिरों में प्रदोषम मंत्र का जाप किया जाता है। यदि प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ रहा है तो इस व्रत को करने से पुत्र की प्राप्ती होगी।
व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सूरज उदय होने से पहले उठना चाहिये। फिर नित्य कार्य कर के मन में भगवान शिव का नाम जपते रहना चाहिये। यूँ तो व्रत में किसी भी प्रकार का अन्न खाना वर्जित होता है, लेकिन भगवान् भोलेनाथ की पूजा में जिन स्त्री या पुरुष को शारीरिक तौर पर किसी भी प्रकार की कमजोरी हो वो शाम को पूजा करने के बाद बिना नमक के एक अन्न खा सकते है।
सुबह नहाने के बाद साफ और सफेद रंग के कपड़े पहनें। अपने घर के मंदिर को साफ पानी या गंगा जल से शुद्ध करें । फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। पूजा में ऊँ नम: शिवाय का जाप करें।
शांयकाल (Evening) प्रदोष के समय लगभग ४-५ के बीच भगवान शंकर की पूजा अर्चना, प्रदोष व्रत कथा करके शिव चालीसा का पाठ करना है| पूजा के पश्चात शिव के रुद्राक्ष की १०८ माला का जाप अत्यंत सुखकारी एवं लाभ देने वाला होता है |
प्रदोष व्रत का सबसे बड़ा महत्व है कि सोम चंद्र को कृष्णपक्ष के प्रदोषकाल पर्व के दिन भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण किया था। इसमें चंद्र को प्रदोष के नाम से जाना जाता है। उपासना और प्रदोष करने वाले को सोम (चंद्र) प्रदोष से व्रत एवं उपवास की शुरुआत करनी चाहिए। प्रदोष काल के उपवास में केवल हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग यह पृथ्वी-तत्व है और यह मंदाग्नि (Retard ) को भी शांत रखता है।
सोमवार के दिन जो प्रदोष व्रत पड़ता है वो सोम प्रदोष व्रत कहलाता है। प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मेल होता है। भगवान शिव की पूजा और व्रत के विशेष काल एवं दिन के रुप में पहचाना जाने वाला प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है। इस समय की गई भगवान शिव की पूजा से फल की प्राप्ति होती है।
भौम प्रदोष व्रत को मंगल प्रदोष कहा जाता है। इस दिन जो भक्त प्रदोषव्रत रखता है उसकी सभी कामनाओं पूर्ण होती है, और इससे मंगल दोष शांत होता है और सभी दरिद्रता का नाश होता है। भौम प्रदोष व्रत में भगवान शिव और राम भक्त हनुमान जी की पूजा का होती है।
पौराणिक कथा (mythology ) के अनुसार, एक नगर में एक वृद्ध महिला रहती थी। उसका एक ही पुत्र भी था। वह वृद्ध महिला की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की पूजा अर्चना करती थी। और फिर एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची और हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर पहुंच गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो मेरी इच्छा पूर्ण कर सके ? उनकी पुकार सुनकर वृद्ध महिला घर से बाहर आई और बोली- आज्ञा कीजिए महाराज। हनुमान जी बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा,बेटा तू थोड़ी जमीन लीप दे ।वृद्ध महिला दुविधा में आ गई। उसके बाद भी वो हाथ जोड़कर बोली- महाराज, लीपने और पोतने के अलावा आप कोई भी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूरी करूंगी ।
फिर साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा कि तू अपने बेटे को बुला और फिर मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन पकाऊँगा । यह सुनकर वो वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध (Pledged) थी तो इसलिए उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सौंप दिया। और फिर साधुरूपी हनुमानजी ने वृद्ध के हाथों से ही उसके बेटे को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई।
आग जलाकर दु:खी मन से वो वृद्धा अपने घर में चली गई। यहाँ भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो जिससे कि वह भी आकर भोग लगा ले इस पर वृद्धा बोली कि उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट मत पहुंचाओ। लेकिन साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई और अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर गयी। फिर हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।
बुधवार का प्रदोष व्रत पुरे जीवन की मनोकामनाओं के लिए रखा जाता है।
कथा के अनुसार एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ था। विवाह के दो दिनों बाद उसकी पत्नी मायके अपने चली गई। कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्नी को लेने उसके मायके गया। और जब वो बुधवार को वह पत्नी के साथ लौटने लगा तो लड़की के मायके वालों ने उसे रोक कर काहा कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं मन जाता। लेकिन वह पुरुष नहीं माना और पत्नी के साथ वहां से चल पड़ा। जब नगर के बाहर पहुंचने पर उसकी पत्नी को प्यास लगी तो पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चलने लगा।
उसकी पत्नी वहां एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर बाद जब वो पुरुष पानी लेकर लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के साथ हंसकर बातें कर रही है और उसके व्यक्ति लोटे से पानी भी पी रही है। उसे यह देखकर बहुत ही क्रोध आ गया। और जब वह उसके निकट पहुंचा तो उसे आश्चर्य हुआ क्योंकि उस आदमी की सूरत हूबहू उसी की तरह ही थी। और उसकी पत्नी भी सोच में पड़ गई।
फिर उसके बाद दोनों पुरुष आपस झगड़ने लगे और वहाँ काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। फिर वहाँ सिपाही भी आ गए। हमशक्ल आदमियों को देख वो भी चकित रह गए फिर उन्होंने स्त्री से पूछा ‘उसका पति कौन है?’ वह चुप हो गई। और तब वह पुरुष भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा कि ‘हे भगवान ! मेरी रक्षा करो। मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई कि मैंने अपने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्नी को विदा करके ले आया। मैं भविष्य में ऐसा फिर कभी नहीं करूंगा।’ और जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, वो दूसरा पुरुष अलोप हो गया। वो दोनों पति-पत्नी सकुशल अपने घर गए। उस दिन के बाद से वो दोनों पति-पत्नी नियमित रूप से बुध तेरस प्रदोष का व्रत रखने लगे।
गुरु प्रदोष व्रत शत्रु का विनाश करने वाला भी माना गया। वार मास और तिथि सबसे, व्रत है यह अति ज्येष्ठ ।
कथा के अनुसार एक बार इंद्र देव और वृत्तासुर की सेना के बीच भयानक युद्ध हुआ। देवताओं ने आसुरी सेना को पराजित करके नष्ट कर दिया। इसको देख के वृत्तासुर बहुत क्रोधित हुआ और खुद ही युद्ध लड़ने आया। आसुरी माया से वृत्तासुर ने विकराल रूप धारण कीया। सभी लोगो को मारने लगा तब सभी देवता उससे अपनी जान बचाकर गुरुदेव बृहस्पति की शरण में आ पहूंचे। बृहस्पति महाराज ने कहा कि – पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर के बारे में बता दूं। वृत्तासुर बड़ा ही तपस्वी और कर्मनिष्ठ असुर है।
उसने असुर ने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। पूर्व में वह चित्ररथ नाम का राजा एक था। एक बार वह अपने विमान पे सवार होकर कैलाश पर्वत पर गया। वहां उसने शिवजी के वामांग में माता पार्वती को बैठा देख वह बोला- ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने से हम स्त्रियों के वश में रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा कभी देखने को नहीं मिला कि कोई भी स्त्री के आलिंगनबद्ध होकर सभा में बैठे।’
फिर चित्ररथ की बात सुनकर शिवशंकर ने हंसकर खा कि – ‘हे राजन! मेरी व्यावहारिक दृष्टि अलग है। मैंने महाविष का पान किया- अरे दुष्ट! तूने शिवशंकर के साथ ही मेरा भी मजाक उड़ाया है इसकी मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि फिर कभी तू ऐसे किसी का उपहास का दुस्साहस नहींकर नहीं पायेगा- अब से तू दैत्य स्वरूप धारण करके विमान से नीचे गिर जाये, मैं तुझे ये श्राप देती हूं।’ देवी पार्वती के अभिशाप से चित्ररथ राजा राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और त्वष्टा ऋषि के तप से उत्पन्न हो वो वृत्तासुर बना। गुरुदेव बृहस्पति ने बताया कि – ‘वृत्तासुर बचपन से ही शिव का भक्त रहा है इसलिए हे इंद्र ! तुम गुरु प्रदोष का व्रत करके शंकर भगवान को प्रसन्न करो।’ इसके बाद देवराज ने गुरुदेव के कहे अनुसार गुरु प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के परिणाम स्वरुप इंद्र ने वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक को बचा लिया।
शुक्रवार के दिन यह व्रत पड़ने से इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। हिंदू धर्म (Hindu Religion) में प्रदोष व्रत को काफी फलदायक और सौभाग्य बढ़ाने वाला व्रत माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शुक्र प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से उन दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी बाधाएं और दोष कट जाते हैं।
एक नगर में तीन दोस्त रहते थे। राजकुमार, ब्राह्मण और तीसरा धनिक का पुत्र। उसमे राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। और धनिक पुत्र का विवाह भी हो गया था लेकिन उसका गौना बाकी था। और एक दिन तीनों दोस्त अपनी पत्नियों की चर्चा कर रहे थे। तब ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की तारीफ करते हुए कहा कि – ‘नारी के बिना घर भूतों का डेरा लगता है।’और जब धनिक पुत्र ने ये सुना तो उसने तुरन्त ही अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करके लाना शुभ नहीं होता।
लेकिन धनिक पुत्र ने किसी कि एक नहीं सुनी और अपने ससुराल पहुंच गया। ससुरालवालों ने भी उसे मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं माना और कन्या के माता-पिता को उन दोनों की विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद दोनों शहर से निकले कि रस्ते में बैलगाड़ी का पहिया गिर गया और उस बैल की टांग भी टूट गई। और उन दोनों को भी काफी चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते ही रहे। और कुछ दूर जाने पर उन्हें डाकू मिले,जो उनका सारा धन लूटकर ले गए। उसके बाद दोनों घर पहूंचे। घर पोहचते ही धनिक पुत्र को सांप ने काट लिया। उसके पिता ने वैध को बुलाया तो वैध ने बताया कि वो अगले तीन दिन में मर जाएगा।
जब उसके दोस्त ब्राह्मण कुमार को यह पता चला तो वो धनिक पुत्र के घर गया और उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। और ये भी कहा की उसे पत्नी के साथ ही वापस ससुराल भेज दें। धनिक पुत्र ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल चला गया जहां उसकी हालत धीरे-धीरे ठीक होती गई , और वो स्वस्थ होता गया।
यदि इंसान को सभी प्रकार की पूजा पाठ और व्रत करने के बाद भी सुख शांति और खुशी नहीं मिल पा रही है तो उस व्यक्ति को हर माह पड़ने वाले प्रदोष व्रत पर जप, दान, व्रत आदि करने से पूरा फल मिलता है। यदि व्यक्ति चंद्रमा के कारण परेशान है तो उसे वर्ष भर के सारे प्रदोष व्रत करने चाहिये।प्रदोष व्रत वाले दिन लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, कंबल, जूता और कोयला आदि चीजों का दान करें, जिससे शनि परेशान न कर सके। शनि खराब चलने से इंसान को रोग, दरिद्रता और परेशानी आदि घेर लेती है।
यदि प्रदोष व्रत शनि प्रदोष व्रतके रूप में आया है तो इस दिन शिवजी, हनुमान और भैरव की पूजा करनी चाहिये।
प्राचीन काल में एक नगर था उस नगर में एक सेठ रहते थे। उस सेठजी के घर में हर सुख-सुविधाएं थीं लेकिन उसकी कोई संतान नहीं होने के कारण सेठ और पत्नी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा करने निकल गए। अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधुबाबा मिले, जो ध्यान में बैठे हुए थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधुजी से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा प्रारम्भ की जाए । सेठ और सेठानी साधु के निकट जाकर बैठ गए।
साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें पता चला कि सेठ और सेठानी काफी समय से उनके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। अबसे तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान का सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी को प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शिवजी की पूजा करने को कहा। दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए चल पड़े। वहां से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घरमें एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ और खुशियों से उनका घर भर गया।
रवि प्रदोष व्रत में भगवान शिवशंकर की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और हम पर भगवान शिव का आशीर्वाद रहता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में बहुत ही गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी प्रदोष व्रत करती थी। उसका एक ही बेटा था। एक समय की बात है की उसका बेटा गंगा में स्नान करने गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और वो उससे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं बस तुम अपने पिता के गुप्त धन जानकारी हमें बता दें। बालक ने कहा कि भाइयो! हम बहुत ही दु:खी और गरीब हूँ। हमारे पास धन कहां से होगा? तब चोरों ने उससे कहा कि तेरी इस पोटली में क्या बंधा हुआ है? बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए इसमें रोटियां दी हैं। यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही गरीब है।
इसलिए हम किसी को और लूट लेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को वहां से जाने दिया। बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंच गया। वही नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के पेड़ की छाया में सो गया था। उसी समय उस नगर के सिपाही उन चोरों को खोजते हुए उस बरगद के पेड़ के पास पहुंचे और उस बालक को चोर समझकर बंदी बनाकर राजा के पास ले गए।फिर राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दे दिया। ब्राह्मणी का लड़का जब घर वापस नहीं आया तब उसे अपने बेटे की बड़ी चिंता होने लगी। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना की। भगवान शंकर ने उसकी की प्रार्थना स्वीकार कर ली।
उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि राजा वो बालक चोर नहीं है, उसे सुबह छोड़ दें अन्यथा आपका सारा साम्राज्य नष्ट हो जाएगा प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया। उसके बाद बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारी बात सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया गया। उसके माता-पिता राजा से बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि कृपया आप भयभीत न हो। आपका बेटा निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे वो सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकता है। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा।
जय शिव ओंकारा, ओम जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा
कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका॥
ओम जय शिव ओंकारा
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा।
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा