स्टील की थाली हाथ में लिए बच्चे, जवान और बूढ़े कतार में लगे हुए हैं। वो लोग बेसब्री से रसोई में तैयार गरमागरम रोटी, दाल, चावल, कढ़ी और सब्जियों के इंतजार में हैं। कुछ लोग बेरोजगार हैं तो कुछ पास में ही छोटी-छोटी फैक्ट्रियों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदुर हैं।
प्रवीण गोयल ने एक रूपये में जरूरतमंदों को पेट भर खाना खिलाने का बीड़ा उठाया हुआ है। 51 साल के प्रवीण गोयल ने इस रसोई के लिए अपना बिजनेस छोड़ दिया और घर का पैसा भी लगा दिया। उन्हें इस काम के लिए परिवार का भरपूर समर्थन मिलता है।
हर रोज तड़के रसोई में काम करने वाले कर्मचारी दिन के हिसाब से भोजन तैयार करने के काम में जुट जाते हैं। बड़े-बड़े भगोनों में दाल, चावल, तरी वाली सब्जी और हलवा तैयार किया जाता है। कतार में लगे लोग अपनी जेब से एक रुपया का सिक्का एक डिब्बे में डालकर भोजन लेने आते है । वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके पास पैसे नहीं है लेकिन उन्हें भी भोजन दिया जा रहा है। 2020 लॉकडाउन के दौरान बेरोज गार हुए कमला कांत पाठक भी पिछले छह महीने से यहां खाना खाने आते हैं।
हालाँकि कुछ लोगों का पेट एक बार खाना लेने के बाद भर जाता है लेकिन कुछ लोग दोबारा रोटी या चावल की मांग करते हैं तो उन्हें मना नहीं किया जाता है। यहाँ साल के 365 दिन रसोई चलती है और रोजाना खाना बनता है। उन लोगो के लिए किसी दिन छुट्टी नहीं है। ये किसी को खाना खाने से नहीं रोकते हैं, ये लोगों को भरपेट खाना खिलाते हैं। जिनके पास पैसे होते हैं वो देते हैं जिनके पास नहीं होते उन्हें भी खाना खिलाते हैं।
प्रवीण की तरह ही कई लोग इस कोरोना काल में जरुरतमंदो के काम आते है और अपनी क्षमता के अनुसार मदद के लिए आगे आते है।