प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में जारी कोरोना वायरस की महामारी को लेकर लोगों को सम्बोधित किया और इस बीमारी से परेशान पूरे देश को प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीद थी कि वो कुछ उम्मीद देंगे। लोगों को विश्वास दिलाएंगे कि देश के संसाधनों को इस बीमारी से पार पाने में लगा दिया जाएगा। लोगों की ये उम्मीद इसलिए अहम थी क्योंकि देश के सबसे बड़े नेता जो बड़े बड़े फैसले लेते हैं वो जनता को संबोधित कर रहे थे। लोग हल चाहते थे, भविष्य के लिए एक ऐसी योजना, जो उनके ढीले पड़ते उत्साह में एक उफान ला दे। हालांकि पीएम मोदी ने कोशिश जरूर की, लेकिन उनके विजन की दुर्भाग्यपूर्ण सीमायें साफ रूप से नजर आई। उनके भाषण का मूल आधार ही यही था कि लोगों को अपने व्यवहार में बदलाव लाने की ज़रूरत है, और व्यवहार में आने वाला ये बदलाव भारत को इस महामारी के माध्यम से दिखेगा।
प्रधानमंत्री मोदी को भव्य आयोजन पसंद है, और इसलिए उन्होंने आने वाले रविवार को एक दिन के जनता कर्फ्यू की घोषणा कर दी, इस दिन पूरे देश को अपने घरों में रहने की हिदायत दी गयी। और, ऐसा न हो कि इस पर किसी का ध्यान ही नहीं जाए, इसके लिए उन्होंने लोगों को सेवा देने वालों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए शाम को 5 बजे बाहर निकलने के लिए भी कहा।
जबसे दुनिया भर में ये महामारी फैलने लगी है तबसे एक बात साफ हो गयी है कि इस बीमारी से लड़ने में सरकारों की महत्वपूर्ण और विशिष्ट भूमिका है। अलग-अलग जरिये से होने वाली किसी भी तरह की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने के अलावा, ये सरकार का ही काम है कि वो इस बात पर नजर रखे कि बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग हो रही है या नहीं, संपर्कों को तत्पर तरीके से ट्रेस किया जाए, ये सुनिश्चित किया जाए कि प्रभावित सभी लोगों को तुरंत सबसे अच्छी चिकित्सा सुविधा मिल रही है या नहीं, आर्थिक या भावनात्मक संकट से पीड़ित परिवारों की देखभाल हो रही है या नहीं, आर्थिक गतिविधि को बनाये रखने में मदद की जाय और अन्य कार्यों को अंजाम दिया जाय।
चीन में पहली बार पक्के तौर पर जनवरी में इस महामारी को चिह्नित किया गया था। तब से, इस वायरस को लेकर हमारे पास व्यापक अनुभव है कि क्या किया जाना चाहिए, और क्या नहीं किया जाना चाहिए। चीन और दक्षिण कोरिया ने कोरोना वायरस से लड़ने और उसे नियंत्रित करने के बहुत स्पष्ट सबक दिये हैं। इसके बारे में बहुत कुछ बताया गया है और जैसा कि प्रधानमंत्री के भाषण में भी संकेत दिया गया कि निश्चित रूप से वो खुद इसे लेकर जागरूक हैं। इसके उलट, किसी भी तरह की देरी या गलत प्राथमिकताओं के भयावह परिणाम भी सबके सामने हैं, जैसा कि इटली में देखने को मिला है कि वहां मरने वालों की संख्या चीन में मरने वालों की संख्या से ज्यादा हो गयी है।
इसके बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में सबसे बुनियादी चीजों को अंजाम दिए जाने को लेकर पैसे लगाने के बारे में एक शब्द तक नहीं कहा है। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था को मजबूत करने का उल्लेख तक नहीं किया, उन्होंने संकट में पड़ने वाले परिवारों या व्यवसायों को बचाने के लिए किसी भी तरह के फंड की घोषणा नहीं की, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से भोजन को सुनिश्चित करने आश्वासन को लेकर भी उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। उनके पास लोगों के लिए जो जरूरी शब्द थे, वो ये कि वो खुद की देखभाल करें, जमाखोरी न करें ताकि आपूर्ति व्यवस्था बाधित न हो, इसके अलावा उनके पास कहने को कुछ भी नहीं था।
लोगों को घरों में रहने के लिए कहने के अलावा, प्रधानमंत्री के पास इस वायरस की रोकथाम की कोई योजना नहीं थी। मास स्क्रीनिंग के बारे में कुछ भी नहीं, परीक्षण के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने को लेकर कुछ भी नहीं, ये सुनिश्चित करने को लेकर भी कुछ नहीं था कि लोग दिशा-निर्देशों का पालन कर भी रहे हैं या नहीं। प्रधानमंत्री विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लेकर बेहद उत्साह दिखाते रहते हैं निजी जानकारी और अंतरिक्ष मिशन के ऐप्स और डेटाबेस और उन्नत युद्ध के सामान उनकी पसंदीदा चीजें हैं। इसके बावजूद, इस नये वायरस पर शोध के लिए उनके पास कोई शब्द नहीं था, और न ही इसके लिए कोई योजना थी, धन की तो बात ही जाने दें।