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मोदी-शाह पंजाब और पंजाबियों को नहीं समझते… किसान आंदोलन इसका उदाहरण है

अगर आप किसी को कहेंगे कि मोदी सरकार को राजनीति की समझ नहीं है तो हो सकता है वो आप पर जोर जोर से हंसे। क्योंकि वो आपको लोकसभा के आंकड़े दिखाएगा और 2 तंज कस कर चला जाएगा। लेकिन अगर आप उसी इंसान से पूछेंगे की मोदी सरकार को पंजाब की राजनीति की कितनी समझ है तो शायद उसका जवाब कुछ और होगा।

क्योंकि भाजपा को पंजाब की राजनीति की बहुत कम समझ है। मोदी और शाह निश्चित ही न तो पंजाब को समझते हैं, न पंजाबियों को समझते हैं, न उनकी सियासत को समझते हैं और साफ कहें, तो वो सिखों को भी नहीं समझ पाते हैं। वरना वो पंजाब-हरियाणा के किसानों के विरोध प्रदर्शनों से निपटने के मामले में खुद को इस तरह फंसा नहीं लेते। यही नहीं वो कृषि अर्थव्यवस्था के इन नए कानूनों के मामले में खुद को संभाल लेते।

मोदी के मोह से अछूता है पंजाब

उत्तर भारत में पंजाब इस मायने में सबसे अलग दिखता है कि वो मोदी के मोह से खुद को अछूता रखा है। यहां तक कि 2014 और 2019 के आम चुनावों में जब नरेंद्र मोदी खुद मुकाबले में खड़े थे तब भी पंजाबी लोग उनके प्रति आकर्षित नहीं हुए। कुछ जगहों पर तो उन्होंने भाजपा की जगह आप को चुना। बावजूद इसके कि शिरोमणि अकाली दल भाजपा का मजबूत सहयोगी था।

सबूत के लिए देखिए कि दोनों चुनावों में भाजपा अपने दो सितारा उम्मीदवारों अरुण जेटली और हरदीप सिंह पुरी को अमृतसर से चुनाव नहीं जितवा पाई जबकि उन्हें अकाली दल का समर्थन हासिल था। उत्तर भारत में पंजाब ही एकमात्र ऐसा राज्य था, जहां दोनों चुनावों में कथित मोदी लहर बेअसर साबित हुई। और इस लहर को रोकने के लिए पंजाबियों को हाइवे पर न तो कोई खाई खोदने पड़ी, न बड़े-बड़े पत्थर डालने पड़े, और न ही बैरिकेड खड़े करने पड़े।

2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में भी मोदी भगवा साफा बांधे रैलियों को संबोधित करते रहे लेकिन उनका पंजाब में कोई असर नहीं पड़ा, भले ही पड़ोस के हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में उनका जादू चलता रहा। भाजपा अपने आलोचकों को जड़ों से उखड़ा हुआ, अंग्रेजीभाषी, लुटियन्स वाला बताकर खारिज करती है।

इसलिए उसे इस क्षेत्र की इस पुरानी कहावत से कुछ सीख लेनी चाहिए कि किसी जाट किसान से आप उसके खेत में लगा एक भी गन्ना छीन नहीं सकते लेकिन उसे खुश करके आप उससे गुड़ की ईंट जरूर भेंट में हासिल कर सकते हैं। वो भी एक बड़ी मुस्कान, एक झप्पी, और शायद लस्सी के एक गिलास के साथ। बस आपको अपना सिर झुका कर, नरमी और दोस्ताना भाव से शुरुआत करने की जरूरत है। लेकिन कृषि कानूनों के मामले में भाजपा ने ठीक इसका उलटा किया है।

मोदी-शाह के चारों पहिये फेल है

मोदी-शाह की भाजपा की बुनियादी राजनीति चार पहियों पर चलती है- मोदी की अपनी लोकप्रियता, हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण, भ्रष्टाचार मुक्त छवि, और राष्ट्रवाद. लेकिन पंजाब में यह क्यों नाकाम हो गई? कृषि कानूनों को लेकर दूसरे कृषि प्रधान राज्यों में शायद ही कोई हलचल रही हो। लेकिन पंजाब की बात अलग है।

भाजपा के रथ के चार पहियों में एक है ध्रुवीकरण का पहिया। लेकिन पंजाब में पारंपरिक हिंदू-मुस्लिम वाला तत्व गायब है। पंजाब में जो थोड़े-से मुसलमान मलेरकोटला की छोटी-सी बस्ती में रहते हैं उन्हें सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह के समय से सिखों का सदभाव और सुरक्षा मिलती रही है क्योंकि यहां के नवाब ने औरंगजेब से गुरु के बेटों की रक्षा की थी। सिख लोग केवल बदले की भावना को ही नहीं, एहसान को भी लंबे समय तक याद रखते हैं।

अलग वेशभूषा वाले हिंदू नहीं है पंजाबी

पारंपरिक रूप से पहले आरएसएस और फिर भाजपा सिखों को अलग वेशभूषा वाले हिंदू ही मानती रही है। गुरुओं ने हिंदुओं की रक्षा के लिए लड़ाइयां लड़ीं और शहीद हुए, पंजाबी मुहावरा कहता है कि हिंदू और सिख उंगली और नाखून की तरह एक शरीर के ही अंग हैं, पंजाब भारत की तलवार है। ये तमाम बातें सच हैं। फिर भी सिख हिंदू नहीं हैं और वो हिंदुत्व के मुरीद नहीं हैं। अगर होते तो 3 बार अपने उत्कर्ष पर पहुंचे मोदी को उन्होंने खारिज नहीं किया होता। 

सिख किसानों और खासकर जट्टों को आंदोलन करने में मजा आता है। ये 20वीं सदी के शुरू में सरदार अजित सिंह के नेतृत्व में चले ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन के जमाने से ही चला आ रहा है। ये नारा उनके भतीजे शहीद भगत सिंह की शानदार साहसी क्रांति का गान ही बन गया था, जिन भगत सिंह की दुहाई आज वामपंथी, दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी, तीनों देते हैं।

इमरजेंसी के दौरान जेलों में बंद कैदियों में आरएसएस कार्यकर्ताओं के बाद अकालियों की ही संख्या सबसे ज्यादा थी। सिखों को अच्छी लड़ाई बहुत पसंद है, और मोदी सरकार ने उन्हें यही दे दिया है। ये नहीं चलेगा, पंजाबियों के साथ आपको तर्क के साथ पेश आना होगा। वो उद्यमी होते हैं, उन्हें इन सुधारों में तार्किकता नजर आ सकती है लेकिन अगर आप उनके गले पर सवार होकर उनसे बात करेंगे तो फिर आप उनसे बैरीकेडों पर ही मिलिए।

हिंदी या हिंदू पट्टी का हिस्सा नहीं है पंजाब

अंतिम बात ये है कि पंजाब हिंदी या हिंदू पट्टी का हिस्सा नहीं है। यहां पर आपकी हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण वाली चाल नहीं चल पाएगी। हां आप हिंदू-सिख ध्रुवीकरण कर सकते हैं लेकिन ये कोई नहीं चाहेगा। लेकिन, अगर आप ऐसा करते हैं तो आप किसानों पर ये तोहमत भी लगाएंगे कि वो खालिस्तानियों के बहकावे में आ गए हैं। हालांकि आपके कुछ साथी लोग कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उसका कोई असर जनता पर तो नहीं हुआ लेकिन अगर आप इसे मजबूती से पेश करेंगे तो बिना मतलब तिल का ताड़ बनाते रह जाएंगे।