हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में राजाओं द्वारा बनवाए गए महलों और किलों की आज भी खूब चर्चा होती है. हर किला अपने आप में अद्भुत है और इसकी एक अलग ही कहानी है. अपनी अनोखी कहानी और मजबूती के लिए मशहूर एक ऐसा ही किला है raisen fort. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित रायसेन किले को जीतने के लिए मुगल राजा शेरशाह सूरी ने सिक्कों को गलवाकर तोपें बनवाई थीं. आइए जानते हैं raisen fort (रायसेन क़िले) की रोचक कहानी।
शेरशाह के लिए किला जीतना था मुश्किल-
1200 ईस्वी में बने इस किले में कई सारी ख़ास बातें हैं. इसका निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है. किले के चारों तरफ बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारे हैं और इन दीवारों में 9 द्वार और 11 बुर्ज हैं. शेरशाह सूरी ने इस किले में कई बार आक्रमण किया लेकिन उसे जीत हासिल नहीं हुई. यह किला अभेद था. इसके बाद उसने तांबे के सिक्कों को गलवाकर तोपें बनवाई और उनसे हमला किया। हालाँकि कहा जाता है कि इस बार भी शेरशाह ने धोखे से ही इस किले को जीता था. जब शेरशाह ने इसे जीता था तब यहाँ पर राजा पूरणमल का शासन था.
राजा ने खुद काटी थी रानी की गर्दन–
बात लगभग 1543 ईस्वी की है जब राजा पूरनमल यहाँ राज किया करते थे. शेरशाह ने सिक्कों को गलवाकर तोपें बनवाई और किले पर हमला कर दिया। किला शेरशाह के हाँथ में चला गया. राजा पूरणमल को पता लगा कि अब किला उनके हाँथ में नहीं रहा तो उन्होंने खुद अपनी रानी की गर्दन तलवार से काट दी थी. दरअसल राजा अपनी रानी से बहुत प्रेम करते थे और वो नहीं चाहते थे कि रानी मुगलों के हाँथ लगे ऐसे में खुद ही अपनी रानी की गर्दन काट दी थी.
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राजा के पास था पारस का पत्थर–
ये बड़ी रोचक कहानी इस किले से जुडी हुई है. कहा जाता है कि यहाँ राज करने वाले राजा पूरनमल के पास एक पारस का पत्थर था. वही पत्थर जो किसी भी चीज को सोना बना सकता था. इस पत्थर को हासिल करने के लिए कई युद्ध हुए और अंत में जब राजा पूरनमल हार गए तो उन्होंने पारस के पत्थर को किले में ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया। इसके बाद आज तक उस पत्थर का रहस्य किसी को पता नहीं चला.
पूरनमल के बाद राज करने वाले कई सारे राजाओं ने किले में खुदाई करवाई लेकिन आजतक उस पत्थर का पता नहीं चला. आज भी कई सारे लोग पत्थर की तलाश में किले में जाते हैं. कहा ये भी जाता है कि पत्थर ढूंढने गए कई सारे लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं और आज पागलों की जिंदगी जी रहे हैं. लोगों का कहना है कि इस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है. हालाँकि पुरात्तव विभाग आजतक इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे पाया है लेकिन लोग आज भी पत्थर खोजने के लिए किले में जाते हैं.