राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संक्षेप में आरएसएस (RSS)के नाम से जाना जाता है। दुनिया का यह सबसे बड़ा संगठन है। इसके स्वयंसेवक देशभर में भरे हुए हैं। RSS एक ऐसा संगठन है, जिसकी आलोचना भी खूब हुई है। आलोचनाओं की अपनी वजहें भी हैं। इन वजहों पर वाद-विवाद चलते रहे हैं और आगे भी जारी रहेंगे। फिर भी सेवा कार्य में बाकी संगठनों की तरह आरएसएस भी हमेशा आगे रहा है। देश में कई ऐसे मौके आए हैं, जब संघ ने विशेष योगदान दिया है।
देश के विभाजन के वक्त भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक मुस्तैद थे। उन्होंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था। फिर भी पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर उनकी नजर थी। पाकिस्तानी सेना बार-बार कश्मीर में सीमा पार करने का प्रयास कर रही थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक तब उनसे भिड़ जा रहे थे। बहुत से स्वयंसेवकों ने तब अपनी जान भी गंवा दी थी। विभाजन के वक्त 3000 से ज्यादा राहत शिविर भी संघ की तरफ से लगाए गए थे।
वर्ष 1962 में भारत पर चीन ने धावा बोल दिया था। नेहरु हिंदी चीनी भाई-भाई करने में लगे थे। उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि क्या होने वाला है। चीन के साथ युद्ध चल रहा था। प्रशासन की मदद उस वक्त जरूरी थी। रसद सीमा पर पहुंचाना था। सैनिक आवाजाही के लिए मार्गों पर चौकसी बरतनी थी। देश के कई संगठन तब मदद के लिए आगे आये थे। आरएसएस भी इनमें से एक था।
देशभर से संघ के स्वयंसेवक इस काम में जुट गए थे। सीमा पर भी वे पहुंच गए थे। स्वयंसेवकों ने इस दौरान बहुत मेहनत की। नेहरु भी तब हैरान रह गए। यहां तक कि गणतंत्र दिवस (Republic Day) की परेड में शामिल होने के लिए उन्होंने संघ को निमंत्रण भेज दिया। यह 1963 का गणतंत्र दिवस था।
पाकिस्तान के साथ भी युद्ध के वक्त संघ ने बड़ी भूमिका निभाई थी। दिल्ली में यातायात व्यवस्था नियंत्रण करने में स्वयंसेवक जुट गए थे। इन जवानों को सीमा पर लड़ने जाना था। रक्तदान भी स्वयंसेवक घायल जवानों के लिए खूब कर रहे थे। कश्मीर की हवाई पट्टियों से स्वयंसेवकों ने बर्फ भी हटाया था।
कश्मीर के भारत में विलय में भी आरएसएस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। नेहरु समझ नहीं पा रहे थे कि महाराजा हरि सिंह से विलय के कागजात पर कैसे हस्ताक्षर करवाए जाएं। सरदार पटेल ने रास्ता निकाला था।
उस वक्त माधव सदाशिव राव गोलवलकर संघ के सरसंघचालक थे। उनसे पटेल ने बात की थी। वे गुरुजी के नाम से भी जाने जाते थे। श्रीनगर जाकर उन्होंने महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh) से मुलाकात की थी। इसके कुछ समय के बाद भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव महाराजा हरि सिंह की ओर से दिल्ली पहुंच गया था।
संघ गोवा मुक्ति संग्राम में 1955 में शामिल हो चुका था। दादरा नगर हवेली और गोवा को भारत में मिलाना था। संघ के स्वयंसेवक इसमें जी-जान से जुटे हुए थे। आखिरकार दादरा नगर हवेली 2 अगस्त, 1954 को पुर्तगालियों के कब्जे से आजाद हो गया था। संघ के स्वयंसेवकों ने यहां तिरंगा फहरा दिया था।
इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया था। तब आरएसएस के स्वयंसेवकों ने जनता तक सूचना पहुंचाने का काम किया था। आपातकाल के विरुद्ध वे पोस्टर चिपकाते थे। बहुत से स्वयंसेवक तब गिरफ्तार भी हो गए थे। इंदिरा गांधी ने भी माना था कि उनके लिए सबसे बड़ा खतरा आरएसएस ही था।
गुजरात के भूकंप से लेकर उत्तराखंड की बाढ़ और सुनामी के दौरान भी संघ ने जमकर बचाव कार्य में हिस्सा लिया। उड़ीसा में 1971 के चक्रवात के वक्त भी स्वयंसेवकों ने बड़ी मदद की। नेपाल, सुमात्रा और श्रीलंका तक संघ के स्वयंसेवक कई बार मदद के लिए पहुंच गए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई अनुषांगिक संगठन भी हैं। इनमें विद्या भारती, एकल विद्यालय, शिक्षा भारती, स्वदेशी जागरण मंच, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, भारतीय विद्यार्थी परिषद और वनवासी कल्याण आश्रम आदि शामिल हैं।
देशभर में हजारों की संख्या में सरस्वती शिशु मंदिर और सरस्वती विद्या मंदिर के नाम से स्कूल चल रहे हैं। लगभग 35 लाख स्टूडेंट्स इनमें पढ़ रहे हैं।
उंगलियां RSS पर उठती रही हैं। संघ की कार्यप्रणाली कई बार विवादों से भी गिरी है। विवादों के लिए काफी हद तक संघ खुद भी जिम्मेवार रहा है। फिर भी जो आलोचनाएं संघ की होती रही है, उनका जवाब तो केवल वही दे सकता है। जहां तक सेवा की बात है, तो बाकी कई संगठनों ने भी देश में काफी योगदान दिया है। इनके योगदान को याद करते वक्त RSS के भी योगदान को भी हम याद कर सकते हैं।