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ट्रैफिक हवलदार की कमाई देखकर देखकर हैरान हुआ रिज़र्व बैंक, माँगा कर्ज

नए यातायात नियम आते ही अचानक से कुछ खातों में बहुत अधिक पैसा जमा होने लगा, पता किया गया तो मुंबई के एक ट्रैफिक हवलदार का खाता था
Troll Ambresh Dwivedi 22 November 2019

नई दिल्ली: बचपन में पढ़े रहे कि रिज़र्व बैंक को बैंकों का बैंक कहा जाता है. यानी कि जो सबको कर्जा देता है वो बैंक. लगता है इससे अमीर कोई नहीं लेकिन भाईसाब एक दिन भ्रम टूट गया. पता चला कि रिज़र्व बैंक से भी अमीर कोई है. और वो है ट्रैफिक हवलदार. सरकार ने रिज़र्व बैंक से जब से 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये लिए हैं तब से रिज़र्व बैंक खुद कर्जा ढूंढ रहा है और उसे पता चला है कि नए ट्रैफिक नियमों के बाद हवलदारों की कमाई बढ़ गई है. तो रिज़र्व बैन अब पैसा मांग रहा है.

दस साल के लिए दे दो कर्जा

नए यातायात नियम आते ही अचानक से कुछ खातों में बहुत अधिक पैसा जमा होने लगा. पता किया गया तो मुंबई के एक ट्रैफिक हवलदार का खाता था. रिज़र्व बैंक को पूरा मसला समझ आया तो गवर्नर चल दिए “अखिल भारतीय ट्रैफिक हवलदार एसोसिएशन” के अध्यक्ष से मुलाक़ात करने. पहुचे तो सिग्नल के यहाँ मिले नहीं फिर पता चला कि पान की दुकान में खड़े हैं. गए बातचीत हुई और बात आगे बढ़ी. हवलदार मिश्रा ने कहा “देखिए गवर्नर साहेब वैसे तो हम सीधे किसी से बातचीत और लेन-देन नहीं करते. हमारा सारा ऐसा काम इन-डायरेक्ट ये पान वाले गुप्ता जी देखते हैं और पहिले पैसा इनके पास ही आता है. लेकिन आप बड़े आदमी तो बात कर ली जाए. हवलदार ने सीटी मारते हुए कहा. देखिये कर्जा मिल जाएगा फॉर्म भर दीजिए. गवर्नर साहब ने हांथों हाँथ फॉर्म भर दिया और बोले की भाई कितना साल में वापिस लीजिएगा. मिश्रा ने एक और पान बनाने का इशारा करते हुए कहा कि “देखिए सर हम कोई रिज़र्व बैंक तो है नहीं की नियम बनाए, दे दीजिएगा दो चार साल में”. तो गवर्नर साहब बोले भाई बड़ी रकम है कम से कम दस साल तो दीजिए. ट्रैफिक हवलदार बेचारा शांत आदमी निकला और हामी भर दी. बोला “चलिए कोई बात नहीं, दे दीजिएगा दस साल में घर की ही तो बात है. लेकिन ध्यान रखिएगा दस साल मतलब दस साल. और गर इस बीच आपकी जगह कोई और आया तो फिर”. इतना सुनते ही गवर्नर साहेब ने सोचा की अब तो मामला बिगड़ता दिखाई दे रहा है. बोले भाई राजनेता तो हमको मानो नहीं, कर्जा मांग रहे हैं दे दो सलीके से ब्याज समेत लौटा देंगे. हवलदार बोला आप तो सेंटी हो गए.

वैसे कितना कमाए

कर्जा लेने गए गवर्नर साहेब से रहा ना गया और उन्होंने पुछा लिया कि आखिर कितना पैसा कमा लेते हो. हवलदार ने हँसते हुए कहा “अरे कहाँ सरजी कमाई-वमाई. बस गुजारा हो जाता है. मिसरा जी पान खिला देते हैं और काम चल रहा है. लेकिन जब से ये नया वाला नियम आया तो थोडा ठीक हो जाता है. कोहनी मारते हुए गवर्नर साहेब ने कहा “फिर भी कितना”. हवलदार बोला “यही कोई बीस पचीस हजार सर”. अच तो ये सब अकेले खाते हो. हवलदार बोला अरे नहीं सर खाने के मामले में आप लोगों से बेहतर कौन जान सकता है की सारी चीजें बांटनी पड़ती है. खैर अब एक पार्टी भी चुनाद लड़ने के लिए उधार पैसा मांग रही है. तो हमें उनसे बात करने जाना है. आपका पैसा पहुच जाएगा. इतना कहकर हवलदार चला गया. गवर्नर साहेब देश की इकॉनमी को कोसते हुए वापिस लौट आए.

Ambresh Dwivedi

Ambresh Dwivedi

एक इंजीनियरिंग का लड़का जिसने वही करना शुरू किया जिसमे उसका मन लगता था. कुछ ऐसी कहानियां लिखना जिसे पढने के बाद हर एक पाठक उस जगह खुद को महसूस करने लगे. कभी-कभी ट्रोल करने का मन करता है. बाकी आप पढ़ेंगे तो खुद जानेंगे.