Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

राहगीर से पेन लिया, सिगरेट का डिब्बा पलटा और कवि प्रदीप ने लिख डाला ये गाना

Information Anupam Kumari 26 January 2021
राहगीर से पेन लिया, सिगरेट का डिब्बा पलटा और कवि प्रदीप ने लिख डाला ये गाना

देश हमारा अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ। न जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। न जाने कितने लोगों ने आजादी के लिए कुर्बानी दी। इनकी कुर्बानी को, इनकी शहादत को देश याद करता है। स्वतंत्रता दिवस पर याद करता है। गणतंत्र दिवस पर याद करता है। देश के वीर जवानों को यह देश याद करता है। उन जवानों को, जिन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

सुनकर चौड़ा हो जाता है सीना

देश भक्ति गीत बजते हैं। ढेरों देशभक्ति गीत बन चुके हैं। देशभक्ति गीतों को सुनकर हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। देशभक्ति गीतों की संख्या कम नहीं है। फिर भी एक गीत बहुत ही खास है। इसे गाया है लता मंगेशकर ने। बोल हैं इसके ‘ऐ मेरे वतन के लोगों।’ लगभग हर भारतीय इससे परिचित है। हर भारतीय की आंखें इसे सुनकर नम हो जाती हैं। लिखा था इसे कवि प्रदीप ने।

पहली बार जब गाया गया

बेहद खास है यह गीत। देशभक्ति गीतों में जो कमी रह गई थी, उसे इस गीत में पूरा कर दिया गया। पहली बार इसे गाया गया था 1963 में। यह दिन था 27 जनवरी का। नेशनल स्टेडियम में यह गाया गया था। भावुक हो गए थे तब लोग। यह गीत अपने आप में बहुत खास है। जवानों के बलिदान को यह गीत याद करता है। जवानों की याद दिलाता है, जो सीमा पर खड़े हैं। जिनकी बदौलत हम अपने घरों में सुरक्षित बैठे हैं। इस गीत से हम सैनिकों के भाव को समझ पाते हैं।

कवि प्रदीप जिन्होंने इसे लिखा था, उनका नाम था रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी। इनका जन्म हुआ था 6 फरवरी, 1915 को। मध्यप्रदेश के बड़नगर ने भारत को यह सपूत दिया था।

1962 के युद्ध के बाद

भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ था। इस युद्ध का बहुत बड़ा प्रभाव देश पर पड़ा था। आर्थिक मदद की देश के जवानों को जरूरत थी। आर्थिक रूप से तब देश इतना सशक्त नहीं था। हर कोई अपनी तरह से मदद के लिए आगे आ रहा था। फिल्मी दुनिया के लोग भी मदद कर रहे थे। फिल्म निर्देशक महबूब खान ने तब इसके लिए एक अनूठा तरीका अपनाया था।

महबूब खान का आयोजन

महबूब खान ने 1957 में मदर इंडिया फिल्म का निर्देशन किया था। पैसे जमा करने के लिए उन्होंने एक फंड का आयोजन किया था। 27 जनवरी, 1963 को यह हो रहा था। बहुत से अतिथि आने वाले थे। इसकी लिस्ट बहुत ही लंबी थी। बहुत से हाईप्रोफाइल लोग इसका हिस्सा बनने वाले थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसमें पहुंचने वाले थे। राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन इसमें शिरकत करने वाले थे। बॉलीवुड हस्तियां जैसे कि देव आनंद और दिलीप कुमार की भी यहां मौजूदगी रहने वाली थी।

पहुंचे कवि प्रदीप के पास

यह कंसर्ट बहुत ही खास था। इसमें मदन मोहन गाने वाले थे। नौशाद गाने वाले थे। सी रामचंद्र गाने वाले थे। शंकर-जयकिशन गाने वाले थे। रामचंद्र के पास कोई गाना ही नहीं था। गाने के लिए तब उन्होंने कवि प्रदीप को याद किया था। उनसे उन्होंने अनुरोध किया था कि वे एक गाना लिख दें। प्रदीप ने तब उनसे मजाक किया था। उनसे उन्होंने कहा था कि फोकट का काम होने पर वे चले आते हैं। फिर भी प्रदीप ने वादा किया कि वे गाना लिख देंगे।

बीच पर शुरू किया लिखना

कवि प्रदीप एक दिन माहिम बीच पहुंचे हुए थे। गाने की एक लाइन उनके दिमाग में आई थी। लिखने के लिए कुछ था नहीं। वहां से गुजर रहे एक आदमी से पेन मांग लिया। सिगरेट के डिब्बे को उल्टा किया। उस पर कुछ लाइनें लिख दी। इसके बाद वे लिखते चले गए। घर पहुंच कर गाने को उन्होंने पूरा भी कर लिया। काफी पैराग्राफ वे लिख चुके थे। बाद में रामचंद्र को जितना लगा, वे उतना लेकर चले गए।

गाने वाली थीं आशा भोंसले

लता मंगेशकर से उन्हें यह गाना गवाना था। लेकिन लता से बातचीत होती नहीं थी। आशा भोंसले को उन्होंने अभ्यास करने के लिए दे दिया। फिर भी लता से ही उन्हें यह गाना गवाना था। लता से उन्होंने अनुरोध किया। लता मान गईं। लता और आशा भोंसले साथ में गाने वाली थीं। हालांकि, आशा भोसले ने बाद में फोन करके कहा कि तबीयत उनकी ठीक नहीं है। उनका आना मुश्किल है। इसलिए लता का अकेले ही गाना तय हो गया।

गूंज उठा स्टेडियम

लता मंगेशकर ने इस गाने को गाया। सिर्फ जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना हर ओर गूंज रहा था। दर्शक भावविभोर हो गए थे। नेहरू जी ने महबूब खान से लता मंगेशकर को बुलवाया। लता ने एक इंटरव्यू में इसके बारे में बताया था। लता के मुताबिक उन्हें लगा था कि कहीं उनसे कोई गलती तो नहीं हो गई। नेहरू जी के पास पहुंचने पर उन्होंने उनकी आंखों में आंसू देखे थे। नेहरू जी ने लता से कहा था कि तुमने तो आज मुझे रुला ही दिया। वाकई ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ का आज भी जवाब नहीं।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान