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आरएसएस के शिविर में शामिल होने के लिए किसने किया था महात्मा गांधी को मजबूर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर महात्मा गांधी ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने संघ के द्वितीय सरसंघचालक एमएस गोलवलकर से अपनी मुलाकात का जिक्र किया था।
Information Anupam Kumari 31 August 2020
आरएसएस के शिविर में शामिल होने के लिए किसने किया था महात्मा गांधी को मजबूर

प्यारेलाल महात्मा गांधी के सचिव रहे थे। उन्होंने ‘महात्मा गांधी: द लास्ट फेज’ नामक एक किताब लिखी थी। उन्होंने आरएसएस को लेकर महात्मा गांधी द्वारा कही गई एक बात का जिक्र इसमें किया है। उनके मुताबिक गांधी जी ने आरएसएस के अनुशासन की तारीफ की थी। उन्होंने संगठन के साहस और कठिन परिश्रम से काम करने की इसकी क्षमता की भी सराहना की थी। मगर गांधी जी ने एक और चीज कही थी। उन्होंने हिटलर के नाजी और मुसोलिनी के फासीवादियो का जिक्र किया था।

उन्होंने कहा था कि इनमें भी ऐसा ही अनुशासन हिम्मत और कार्यक्षमता दिखती थी। प्यारेलाल के मुताबिक आरएसएस को महात्मा गांधी ने सर्वाधिकारवादी दृष्टिकोण वाला सांप्रदायिक संगठन कहा था। कहा जाता है कि महात्मा गांधी आरएसएस के खिलाफ थे। यह भी कहा जाता है कि आरएसएस महात्मा गांधी को पसंद नहीं करता था। वैसे, इतिहास उठाकर देखें तो कुछ अलग ही जानने को मिलता है।

वर्धा में क्या हुआ था उस दिन?

महात्मा गांधी 1934 में वर्धा गए हुए थे। उन्होंने 16 सितंबर, 1947 को खुद इसके बारे में बताया था। जमना लाल बजाज के निमंत्रण पर तब वे वर्धा गए थे। महात्मा गांधी के मुताबिक वहां घर के सामने वाले मैदान में आरएसएस का शिविर लगा हुआ था।

वे इस शिविर में भी गए थे। स्वयंसेवकों का अनुशासन और उनकी सादगी देखकर वे चकित रह गए थे। उन्होंने यह भी देखा था कि छुआछूत उनके बीच में बिल्कुल भी नहीं था। दूर से ही स्वयंसेवकों के अनुशासन ने उन्हें आरएसएस के शिविर में पहुंचने के लिए मजबूर कर दिया था।

सरसंघचालक का गांधी को आश्वासन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर महात्मा गांधी ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने संघ के द्वितीय सरसंघचालक एमएस गोलवलकर से अपनी मुलाकात का जिक्र किया था। गांधी ने कहा था कि आरएसएस को लेकर मुझे बहुत सी शिकायतें मिली थीं। गुरु जी से मुलाकात के दौरान मैंने इनका जिक्र किया था। तब गुरुजी ने मुझे आश्वासन दिया था।

उन्होंने कहा था कि हिंदुओं की सेवा करना और हिंदू धर्म की रक्षा करना संघ का उद्देश्य है। फिर भी वे इसके लिए किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। गांधी के मुताबिक गोलवलकर ने कहा था कि आक्रमण में संघ का विश्वास नहीं है। अहिंसा में भी वह भरोसा नहीं करता। संघ आत्मरक्षा करना सिखाता है। बदला लेना संघ ने कभी नहीं सिखाया।

गांधी जी का संघ को संदेश

महात्मा गांधी ने वैसे संघ को चेताया भी जरूर था। उन्होंने बड़ा गहरा संदेश संघ के स्वयंसेवकों को दिया था। गांधी जी ने कहा था कि सेवा और आत्मत्याग के आदर्श संस्था की ताकत बढ़ाते हैं। फिर भी त्याग की भावना के साथ ध्येय का पवित्र होना भी जरूरी है। इसके अलावा सच्चे ज्ञान का संयोजन भी होना चाहिए। ये दो चीजें नहीं हों तो समाज के लिए संस्था बड़ी अनर्थ होगी।

स्वयंसेवक के सवाल और जवाब

महात्मा गांधी से संघ के एक स्वयंसेवक ने दो सवाल पूछे थे। उसने पहला सवाल पूछा था कि पापियों को मारे जाने की इजाजत हिन्दू धर्म में है या नहीं? महात्मा गांधी ने हां में जवाब दिया था। साथ में उन्होंने एक और बात कही थी। निर्णय कौन करेगा कि पापी कौन है? एक पापी दूसरे पापी को सजा कैसे दे सकता है? सबसे पहले खुद को हर तरह के दोष से मुक्त करना पड़ेगा।

आरएसएस के इस स्वयंसेवक ने गीता के दूसरे अध्याय का जिक्र करके दूसरा सवाल पूछा था। उसने कहा था कि कौरवों का नाश करने का उपदेश भगवान कृष्ण ने दिया था। महात्मा गांधी ने बड़ा सटीक जवाब दिया था। उन्होंने कहा था केवल सही तरीके से गठित सरकार के पास यह अधिकार है। देश के जाने-माने सेवक को यह करने दीजिए। सरदार पटेल और पंडित नेहरू का नाम महात्मा गांधी ने लिया था। उन्होंने कानून हाथ में लेने से मना किया था। दोनों के प्रयासों में बाधा डालने का भी अनुरोध किया था। अप्रत्यक्ष रूप से महात्मा गांधी ने यहां भी संघ को चेताया था।

इंसानियत है तो आजादी है

आरएसएस की शिकायतों से गांधीजी क्षुब्ध हो गए थे। 15 नवंबर, 1947 को उन्होंने एक बड़ी बात कही थी। उन्होंने कहा था कि रक्तपात और हत्या से हिंदू धर्म की रक्षा नहीं होगी। लोकमत में हजारों तलवारों से भी ज्यादा ताकत है। आजादी तभी कायम रहेगी, जब आपमें इंसानियत रहे। नहीं तो इतना सुंदर उपहार एक दिन आप खो देंगे। अपने सुसंगत कामों से संघ अपने ऊपर लगे आरोपों को झुठला सकता है।

Anupam Kumari

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