राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश में घृणा फैला रहा है। देशभर में फैली हिंसा में इसका हाथ है। देश को मिली आजादी इससे प्रभावित हो रही है। देश का नाम इसकी वजह से खराब हो रहा है। देश से घृणा और हिंसा को समाप्त करने के लिए आरएसएस को बैन किया जा रहा है। ये बातें 4 फरवरी, 1948 को केंद्र सरकार के एक बयान में सामने आई थी।
तब सरदार वल्लभभाई पटेल देश के गृहमंत्री थे। उन्होंने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। वर्ष 1948 में उन्होंने इसके बारे में संघ को चिट्ठी लिखी थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद पटेल हर हाल में आरएसएस को बैन करना चाहते थे। लौह पुरुष ने ऐसा किया भी।
संघ को उसे बैन किए जाने को लेकर लिखी गई चिट्ठी में कई बड़ी बातें लिखी गई थीं। इसमें कहा गया था कि संघ की वजह से देश में भाईचारा खतरे में पड़ गया है। देश की गरिमा को इससे ठेस पहुंच रही है। देश के कई इलाकों में आरएसएस के स्वयंसेवक हिंसा में लिप्त पाए गए हैं। यहां तक कि लूट, डकैती और हत्या जैसी आपराधिक गतिविधियों में भी संलिप्त मिले हैं। आरएसएस के स्वयंसेवक अवैध तरीके से शस्त्र जमा कर रहे हैं।
चिट्ठी में और भी कई सारी बातें लिखी गई थीं। इसमें बताया गया था कि संघ आपत्तिजनक गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। इसकी घृणा और हिंसा का शिकार खुद गांधीजी भी हो गए हैं। ऐसे में सरकार का कर्तव्य है कि वह इस दिशा में ठोस कदम उठाए। हिंसा को रोकने के लिए वह कार्रवाई करे। इसके अंतर्गत पहला कदम उठाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बैन किया जा रहा है।
गांधी जी की हत्या से पहले संघ के प्रति सरदार पटेल नरम थे। गांधी जी की हत्या के बाद वे बड़े गुस्से में आ गए थे। उन्होंने हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को 18 जुलाई, 1948 को एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने बताया था कि बैन होने के बावजूद आरएसएस कैसे अपनी गतिविधियां को अंजाम देने में लगा हुआ है।
चिट्ठी में पटेल ने लिखा था कि गांधी जी की हत्या की साजिश बड़े पैमाने पर हुई थी। हिंदू महासभा का उग्र पक्ष भी इसमें शामिल था। सरकार और राज्य के लिए आरएसएस का होना स्पष्ट खतरा है। हमारी रिपोर्ट बताती है कि बैन के बावजूद उनकी गतिविधियां जारी हैं। वे पहले से भी अधिक विद्रोही हो गए हैं और द्वेष फैलाने का काम कर रहे हैं।
गोलवलकर को सरदार पटेल का पत्र
सरदार पटेल ने सितंबर, 1948 में आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर को भी एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने आरएसएस को बैंक किए जाने के अपने निर्णय की वजह बताई थी। उन्होंने लिखा था कि हिंदुओं को संगठित करने के बहाने बदले की कार्रवाई की जा रही है। निर्दोष और निस्सहाय पुरुष महिलाएं और बच्चे इसका अधिक शिकार हो रहे हैं। देश में सांप्रदायिक जहर भाषणों के जरिए संघ के स्वयंसेवक घोलते जा रहे हैं। हिंदुओं को संगठित करने या उनकी रक्षा करने के लिए जहर फैलाना जरूरी नहीं है। इसी की वजह से गांधीजी की बहुमूल्य जिंदगी भी खत्म हो गई।
सरदार पटेल ने लिखा था कि इसकी वजह से संघ पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। छः महीने का समय बीत चुका है। वे उम्मीद करते हैं कि संघ के स्वयंसेवक अब सही पथ पर आ चुके हैं। हालांकि, मेरे पास आ रही रिपोर्ट कुछ और ही बता रही है। इनसे पता चल रहा है कि अब भी उन्हीं गतिविधियों को पुनर्जीवित करने की कोशिश संघ कर रहा है, जिसकी वजह से उसे प्रतिबंधित किया गया है।
संघ प्रमुख ने तत्कालीन प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को एक चिट्ठी लिखी थी। उसमें लिखा गया था कि धर्मनिरपेक्ष भारत का संघ समर्थन करता है। राष्ट्रीय ध्वज को भी वह अपनाने की घोषणा करता है। इसलिए संघ से प्रतिबंध हटा लेना चाहिए। गोलवलकर के आश्वासन के बाद 11 जुलाई, 1949 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भारत सरकार ने बैन हटा लिया था।