राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है। आरएसएस अपने अनुशासन के लिए जाना जाता है। RSS से जुड़े कई संगठन भी चल रहे हैं। इसकी शाखाएं देशभर में लगती हैं। जब भी कोई आपदा या विपदा आती है, तो आरएसएस के स्वयंसेवक वहां सबसे पहले नज़र आ ही जाते हैं। फिर भी आरएसएस कई बार परेशानी में पड़ चुका है। कई ऐसे मौके आए हैं, जब इसे प्रतिबंध भी झेलना पड़ा है।
महात्मा गांधी की हत्या से पूरा देश हिल गया था। नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या की थी। यह 30 जनवरी, 1948 का दिन था। दिल्ली के बिरला हाउस में गांधी जी को गोली मार दी गई थी। घटना में आरएसएस का हाथ होने का शक जताया गया।
सरकार ने इसके खिलाफ बड़ा कदम उठाया था। आरएसएस को 4 फरवरी, 1948 को प्रतिबंधित कर दिया गया था। उस वक्त एमएस गोलवलकर RSS के सरसंघचालक हुआ करते थे। उन्हें जेल में डाल दिया गया था। इसके और भी बहुत से कार्यकर्ता जेल भेज दिए गए थे। यहां तक कि बाला साहब देवरस को भी हिरासत में ले लिया गया था, जबकि गांधी जी की हत्या के दिन वे चेन्नई में थे। गांधी जी की हत्या की जानकारी मिलने के बाद वे तुरंत नागपुर लौट गए थे।
संघम शरणम गच्छामि नाम से विजय त्रिवेदी ने एक किताब लिखी है। वे एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने सरदार पटेल की एक चिट्ठी का भी जिक्र अपनी किताब में किया है। बताया जाता है कि गांधीजी की हत्या के बाद संघ में अंदरूनी मतभेद भी उभरने लगे थे। संघ टूट भी सकता था। तब बाल साहब देवरस ने सरदार पटेल से बात की थी। उन्होंने साफ कर दिया था कि बैन नहीं हटाने पर आरएसएस अपनी राजनीतिक पार्टी बना लेगी।
सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री नेहरू को तब एक चिट्ठी लिखी थी। दरअसल पुलिस की जांच में RSS को गांधी जी की हत्या में शामिल नहीं पाया गया था। हालांकि, इस रिपोर्ट को उस वक्त सार्वजनिक नहीं किया गया था। अपनी चिट्ठी में पटेल ने कई अहम बातें लिखी थीं। उन्होंने यह लिखा था कि आरएसएस गांधी जी की हत्या में शामिल नहीं था। हालांकि, गांधी की हत्या वाली विचारधारा को जन्म देने का जिम्मेवार परोक्ष रूप से उन्होंने आरएसएस को ही बताया था।
यही नहीं, श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी सरदार पटेल ने एक चिट्ठी लिखी थी। यह चिट्ठी उन्होंने करीब 5 महीने बाद लिखी थी। इसमें उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी से कहा था कि RSS और हिंदू महासभा को लेकर मामला कोर्ट में है। ऐसे में गांधी जी की हत्या में उनके शामिल होने को लेकर वे कुछ नहीं कहना चाहेंगे। हालांकि, उन्होंने एक और बात कही थी। उन्होंने लिखा था कि देश का अस्तित्व आरएसएस की गतिविधियों की वजह से खतरे में है।
आरएसएस के खिलाफ सरकार को कुछ मिला नहीं तो ऐसे ही में 11 जुलाई, 1949 को आरएसएस पर लगा प्रतिबंध खत्म कर दिया गया था। कुछ शर्तें रखी गई थीं। जैसे कि RSS अपना संविधान बनाएगा। संगठन में चुनाव कराने की भी शर्त रखी गई थी। उसके सांस्कृतिक गतिविधियों तक खुद को सीमित रखने की शर्त थी। राजनीतिक गतिविधियों में वह हिस्सा नहीं ले सकता था।
संघ ने हालांकि राजनीति में हिस्सा नहीं लिया। फिर भी जनसंघ नाम की एक पार्टी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अगुवाई में उसने जरूर बनवा दी। बाद में भारतीय जनता पार्टी का गठन जनसंघ के ही लोगों द्वारा 1980 में हुआ था।
इंदिरा गांधी ने जब 25 जून, 1975 की रात को इमरजेंसी लगाया था, तब उन्होंने भी आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया था। यह प्रतिबंध 4 जुलाई, 1975 को लगाया गया था। इंदिरा गांधी ने कहा भी था कि असल खतरा मुझे RSS वालों से ही है। वह इसलिए कि उनका सांगठनिक आधार बहुत ही मजबूत है। हालांकि, जब जनता पार्टी की सरकार बनी और 23 मार्च, 1977 को मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने आरएसएस से प्रतिबंध हटा दिया।
बाबरी विध्वंस के दौरान भी 10 दिसंबर, 1992 को आरएसएस पर कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि, जांच में आरएसएस के खिलाफ कुछ भी नहीं मिला था। ऐसे में 4 जून, 1993 को आरएसएस से सरकार को प्रतिबंध उठाना पड़ा था।
इस तरह से आरएसएस पर प्रतिबंध दो-तीन बार लगे, लेकिन जांच में RSS हमेशा ही बेदाग होकर सामने आया।