तिब्बत के रहवासी संत श्री मिलारेपा जी ने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई की थी। ऐसा कहा गया है कि वे इस यात्रा में सफल रहे। मिलारेपा जी महान संतो की श्रेणी में आते है। ऐसा कहा जाता है कि मिलारेपा जी ने अपनी साधना को पूर्ण करने के लिए कैलाश पर्वत की यात्रा की थी। मिलारेपा एक ऐसी हस्ती है जो आज पूरी दुनिया लिए एक प्रेरणा प्रतिक बन चुके है। तिब्बत की नगरी इनके जैसे संत को पाकर धन्य हो गई है। नहीं केवल तिब्बत के लेकिन पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी हस्ती के रूप में प्रसिद्ध है।
ऐसा कहा जाता है कि तिब्बत की भूमि पर ऐसे कई संत है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कई महान कार्य किए है। तिब्बत की धरती शिक्षण और मानवीय चेतनाओं कि लिए समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस धरती ने कई महापुरषो को जन्म दिया है। जिन्होंने अपना सारा जीवन केवल अन्य लोगो के लिए समर्पित क्र दिया था। इन्ही महापुरषों मेसे एक थे मिलारेपा जी।
विद्याभ्यास की शुरुआत :
मिलारेपा जी अपना अध्ययन पूज्य गुरु श्री मार्पा जी की छत्रछाया में किया। उन्होंने अपने गुरु जी के कथनानुसार ही अपनी शिक्षा प्राम्भ कि थी। ऐसा कहा जाता है कि मिलारेपा जी ने अपना पूरा शरीर पूज्य गुरु श्री मार्पा को समर्पण कर दिया था। उन्होंने अपने गुरु जी को अर्पण किए शरीर के बलदे में उनसे थोड़ा सा खाना ,कपडे और शिक्षा का दान माँगा। मिलारेपा जी ने अपने चाचा चाची समेत करीबन ८०-९० लोगो को अपनी तांत्रिक विद्या से ओलावृष्टि करके मौत की नींद सुला दिया था।
ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि वे अपने आप को साबित करना कहते थे। उनके अंदर की आग को उन्होंने ऐसा करके बुझा लिया था। ऐसा कहा जाता है कि मिलारेपा जी जब ७ साल के ही थे जब उनके पिता श्री की मृत्यु हो गई थी। और पिता कि मृत्यु के पश्चात् उनके घर में उनकी माता , बहन और वे खुद रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि उनके चाचा जी ने उनके पिता के हिस्से कि सम्पति भी हड़प ली। जिसका बदला उन्होंने अपने चाचा जी से ले लिया था।
उनकी माता जी को कई परेशानियों से जूझना पड़ा। वे अपने बच्चो को बड़ी मुश्किल से संभालती थी। एक दिन मिलारेपा जी मधुर सा कोई गाना गुनगुना रहे थे। और उनकी माता जी को बोहोत ही गुस्सा आया और उन्होंने मिलारेपा जी मारना शुरू कर दिया था । वे मिलारेपा जी को केवल एक बात समझान चाहती थी उन्हें इस तरह बैठना नहीं है। उन्हें अपने पिता की मौत के बाद जो उनके परिवार के साथ गलत हुआ था। उसका उन्हें बदला लेना था उन्हें आगे अपने परिवार को संभलना था। जबकि उन सभी चीजों का बदला वो ले चुके थे।
कैलाश यात्रा :
कैलाश पर्वत की यात्रा के लिए उन्हें उनके गुरु जी मार्पा ने आज्ञा दी थी। वे चाहते थे कि मिलारेपा जी अपनी पूरी शिक्षा प्राप्त करें। मिलारेपा जी ने अपने गुरु जी आज्ञा लेकर वहां से अपनी कैलाश यात्रा शुरू कर दी। ऐसा कहा गया कि उनकी इस यात्रा में कुछ अनुयायी भी उनके उनके साथ थे।
उन्होंने कैलाश पर्वत पर पश्चिम की और से चढ़ाई की। उनकी ये यात्रा शुरू हुई थी ईस्वी १०९३ में। इस यात्रा में उन्हें एक बोन-धर्म के प्रचारक नरोवान जी मिल। नरोवान जी अपने धर्मसम्प्रदाय को बड़ी ही महत्वता देते है। वे अपने धर्म के जानेमाने विशेषज्ञ माने जाते थे। जब वे मिलारेपा जी से मिले तब उन्होंने मिलारेपा जी से उनका धर्म पूछे तब उन्हें पता चला कि मिलारेपा जी बौद्धधर्म के थे।
नरोवान जी ने मिलारेपा जी के सामने एक शर्त रख दी ।जो इस शिखर पर पहले पहुँच गया उसका कैलाश पर्वत पर वर्चस्व होगा। मिलारेपा जी ने नरोवान जी कि शर्त मान ली।
अब हुआ यह कि नरोवान जी तो आगे बढ़कर चढ़ाई की और बढ़ने लगे और वे काफी दूर तक जा चुके थे। यहाँ तक कि वे पर्वत के शिखर के काफी नजदीक पहुंच चुके थे। और मिलारेपा जी यहाँ अभी तक आराम ही कर रहे थे।
तब उनके किसी अनुयायी ने उन्हें जगाया और उन्हें बताया कि नरोवान जी पर्वत के शिखर के काफी नजदीक पहुंच चुके थे। मिलारेपा जी ने काफी तेजी से पर्वत पर चढ़ाई करना शुरू कर दी अब मिलारेपा जी भी करीबन शिखर के पास पहुँच चुके थे।
नरोवान जी शिखर की ओर आगे बढ़ने लगे तभी सूर्योदय कि पहली किरण उनके चेहरे पर पड़ी और इसकी तीव्रता इतनी तेज थी कि वे कुछ पीछे हैट गई । और तब तक मिलारेपा जी कैलाश पर्वत के शिखर पर पहुँच गए।
नारोवान जी को अपनी गलती का एहसास हो गया ।उन्होने अपराधभाव से मिलारेपा जी से माफ़ी मांगी और मिलारेपा जी ने उन्हें माफ़ भी कर दिया।
कैलाश पर्वत पर की कई साल तक साधना :
मिलारेपा जी ने पर्वत का शिखर प्राप्त कर लिया है। उनके अंदर इस शिखर को पाना जिद हो चुकी थी। मिलारेपा जी ने कैलाश पर्वत से कुछ बर्फ गिरा दिया। जिससे एक छोटे से पर्वत का निर्माण हुआ । जो छोटे कैलाश पर्वत के नाम से जाना जाने लगा। वह पर्वत उन्होंने नारोवान जी को भेट स्वरूप दिया था।
मिलारेपा जी ने कैलाश पर्वत पर कई साल तक साधना की। फिर वापस लौटकर अपने गुरुजी मार्पा जी के पास आये और अपनी साधना पूर्ण की । ऐसा कहते है कि मार्पा जी ने मिलारेपा जी को एक अँधेरी कोठरी में बंद कर दिया था। वहाँ उन्होंने अपनी तंत्र विद्या पूर्ण की।तंत्र कीदेवी माता डाकिनी के अनुसार मिलारेपा जी की विद्या अभी सम्पूर्ण नहीं थी, अभी उन्हें और अभ्यास करना था। मिलारेपा जी ने ये बात अपने गुरु से बताई तब ऋषि मार्पा उनको अपने गुरु श्री नरोपा जी पास ले गए और उन्होंने मिलारेपा जी अपनी सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर ली।
ऐसा कहा गया है की मिलारेपा जी अब भी जीवित है और वे आज भी कैलाश पर्वत पे किसी भी दिशा में गुफा में बैठकर तपस्या कर रहे है।