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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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सवर्ण आरक्षण पर जरा गौर करिए, कुछ मायने में हास्यप्रद प्रतीत होता बिल

Politics Tadka Nikita Tomar 11 January 2019
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सवर्ण आरक्षण बाकई में किसी जादू की भांति प्रतीत होता है. कल तक इसके लिए सिर्फ विरोध पर विरोध, आंदोलन पर आंदोलन किए जा रहे थे. लेकिन एक मूवमेंट आया फटाफट पेश हुआ और पास. इस बिल के पास होने के पीछे काफी सारे सवाल ऐसे हैं जो इस बिल की राजनीति को समझने में हमारी मदद करते है….

इस बिल के लिए सबसे पहले आवाज 28 साल पहले उठी थी. जब कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आर्थिक रूप से पिछड़े ऊंची जाति वालों के लिए आरक्षण का ऐलान किया था. वो बात अलग है कि जब ये मुद्दा सुप्रीम के पास पहुंचा तो उसे रद्द कर दिया गया और कांग्रेस पार्टी का सवर्ण आरक्षण लाने का सपना टूट गया. लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि फिर कितने प्रधानमंत्री आए गए लेकिन सबने इसका केवल तमाशा क्यूं देखा. अगर लगातार इसके लिए तत्काल पीएम आवाज उठाते तो सवर्ण वर्ग को इतना इंतजार नहीं करना होता. क्योंकि जिस तरह से इस बिल को वर्तमान बीजेपी के पीएम नरेन्द्र मोदी ने कर दिखाया उससे यहीं लगता है कि किसी ने इसपर जम कर काम करने का साहस ही नहीं किया.

मोदी का मास्टर स्ट्रोक

बाकई यह पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक कहलाने के लायक है. कि उन्होंने इस बिल को 5 साल तक इस दिन के गेम के लिए रखा था. शायद कहीं न कहीं वे इस बात से साफ तौर पर वाकिफ थे कि ये तुरुप का इक्का उन्हें 2019 पार कराने में मदद करेगा. और शायद हो भी ऐसा ही.

कुछ मायने में हास्यप्रद प्रतीत होता बिल

सवर्ण आरक्षण आर्थिक रूप से दिया जा रहा है. लेकिन इसपर अमल कर पाना, इसकी राह इतनी आसान नहीं है जितनी आसानी से ये पास हुआ है. क्योंकि निश्चित तौर पर इसमें सामान्य वर्ग के हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी सभी आते है. तो वर्तमान स्थिति में 8 लाख सालाना आय वाले तो बहुत कम लोग इससे बाहर होंगे यानि की ज्यादा से ज्यादा लोग अब आरक्षण का लाभ लेंगे. मतलब कुछ मायने में ये लॉलीपॉप थमाने जैसा दिख रहा है.

पार्टियों की अपनी मजबूरी

जो विपक्ष है उसकी अपनी मजबूरी हैं क्योंकि सवर्ण आरक्षण वर्तमान में चल रहा एक ऐसा विषय रहा जिसके विरोध में बोलना हर किसी को महंगा पड़ सकता था. लेकिन अब पार्टी में जहां सामान्य वर्ग इससे खुश है वहीं दलित वर्ग हड़कंप मचाए हुए है. जिसको लेकर पार्टी की चिंता जग जाहिर है.

पूरे दौरे में सवर्ण आरक्षण एक ऐसा तीर रहा है जो सही समय पर चलाया गया है. लेकिन केवल राजनीति फायदे के लिए. जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था उसपर अब एक्शन लिया गया. लेकिन सामान्य वर्ग की वर्तमान स्थिति पर यह आरक्षण सहयोगी है. भले ये लॉलीपॉप हो लेकिन इसने आगे की जंग के लिए रास्ता जरूर साफ है. क्योकिं अब समाज का प्रत्येक वर्ग इसमें आता हैं यानि की अब अगर ये खत्म होगा तो जड़ से ही उखाड़ा जाएगा.  

Nikita Tomar

Nikita Tomar

Journalist | Content Writer