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जय श्री राम के नारे लगा कर शहीद इंस्पेक्टर के हत्यारों के दाग धुल जाएंगे

हमारे देश में सांप्रदायिकता समय समय पर तूल पकड़ती रहती है, इससे देश का माहौल बिगड़ता है। कभी वो लिंचिंग के रूप में होती है तो कभी उसका नजरिया खाने की दिशा में चला जाता है। कभी कोई नेता बढ़ती जनसंख्या के लिए एक विशेष समुदाय पर इल्जाम लगाता है। आजकल एक नजारा काफी ज्यादा दोहराया जा रहा है जिसमें कोई सांप्रदायिक मामले का आरोपी अगर जेल से बाहर आता है तो ऐसे अपराधी का स्वागत किया जा रहा है और लोग जश्न मना रहे हैं।

हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा फैला हुआ हैं, जिसमें बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या मामले के आरोपियों का स्वागत किया जा रहा है। वहां पर भारत माता की जय और जय श्री राम के नारे लगाते हुए लोग नजर आ रहे हैं। ये लिंचिंग केस का आरोपी शख्स हैं जो अभी-अभी बेल पर बाहर आए हैं। लेकिन जिस तरह से इनका स्वागत किया जा रहा है तो ऐसा लग रहा है कि मानो कश्मीर में हालात सामान्य कर के कोई फौजी वापिस लौटा है।

दिसंबर 2018 में सुबोध कुमार सिंह की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। दरअसल बुलंदशहर में कई गौ-गुंडे, गौ-कशी रोकने के नाम पर अराजकता फैला रहे थे। इस हिंसा को रोकने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह गए थे जिसके बाद भीड़ ने उन्हें पीट-पीट कर मार डाला था। उस समय भी इस घटना का एक वीडियो वायरल हुआ था।

बीजेपी का ‘अपराध-प्रेम’

ये ऐसा पहला मामला नहीं है जब किसी मॉब लिंचिंग या सांप्रदायिक हिंसा के मामले में आरोपियों का इस तरह से स्वागत किया गया हो। आपको याद होगा कि झारखंड में पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा अलीमुद्दीन अंसारी के हत्या के आरोपियों को जमानत मिलने पर किस तरह फूल-मालाओं से स्वागत किया गया था।

इस मामले में तो शिखर अग्रवाल सहित 2 अन्य आरोपी बेल पर बाहर हुए हैं, लेकिन ऐसे भी मामले देखे गए हैं जब हत्या जैसे मामलों में आरोपियों को छोड़ दिया गया है। हाल ही में पहलू खान की हत्या के सभी आरोपियों को कोर्ट ने निर्दोष बता दिया है। जिससे कोर्ट का कहना है कि नो वन किल्ड पहलू खान।

मौजूदा बीजेपी सरकार के पहले कार्यकाल की शुरुआत 2014 में हुई थी और उस चुनाव से ऐन पहले 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगे हुए थे जिसमें कई मुसलमानों पर हिंसा की गई थी। हिंदुवादी संगठनों के लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन हाल ही में उन सब आरोपियों को भी छोड़ दिया गया है।

इतना ही नहीं दंगे के आरोपी विधायक संगीत सोम से सब मुकदमे वापस लेने की तैयारी की जा रही है तो एक दूसरे आरोपी सुरेश राणा को राज्यमंत्री से प्रमोशन कर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ की रैली में दादरी में अखलाक की हत्या के आरोपी को भी देखा जा चुका है। इसके अलावा प्रज्ञा सिंह ठाकुर जो कि खुद ही एक आतंकवादी मामले में आरोपी हैं, उन्हें संसद में पहुंचाने के लिए चुनाव में उतारा गया था और वो कितने भारी मतों से चुनाव जीती भी थी।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान दिया था जिसमें कहा गया था कि हिन्दू कभी धर्म के नाम पर हिंसा नहीं करते। वो अगर 2014 से अब तक की हिंसा का आंकड़ा देख लेते तो उनका ये भ्रम शायद दूर हो जाता।ल लेकिन खैर वजीर-ए-आजम को सेल्फी और मैन वर्सेस वाइल्ड से फुर्सत नहीं मिली होगी।

पुलिस भी सुरक्षित नहीं

देश में बढ़ रहे इन सांप्रदायिक और लिंचिंग के मामलों से बचने के लिए लोग पुलिस के पास जाने की भी नहीं सोच सकते हैं क्योंकि अब तो इस देश में लगता है पुलिस को भी पुलिस की जरूरत है। सुबोध कुमार सिंह जो कि एक पुलिस इंस्पेक्टर थे, उन्हें भीड़ ने मार दिया और उनके आरोपी का स्वागत किया गया। सुबोध एक इंस्पेक्टर थे और नहीं बच सके। हाल ही में गुजरात के एक मुसलमान हवलदार की कुछ लड़कों ने दाढ़ी खींची, जय श्री राम बोलने को कहा और उन्हें पीटा गया। पुलिस, सुरक्षा बल जिनसे उम्मीद होती है सुरक्षा की, वो खुद ही आज इन जय श्री राम के नारे पेटेंट करवा कर भगवाधारियों से असुरक्षित और लाचार नजर आ रही हैं।

ये नारों का दौर है

जब कोई इतिहासकार कई साल बाद हिंदुस्तान में इस दौर की कहानी लिख रहा होगा तो उसे काले शब्दों में ये लिखना पड़ेगा कि ये दौर वंदे मातरम और भगवान के नारों के नाम पर कत्ल करने का दौर था। शायद ये दौर किसी भी हुकुमती ताकत से बुरा होगा।

भारत माता की जय, जय श्री राम, वंदे मातरम, ये सब नारे आजकल भक्ति और देशप्रेम का नहीं, बल्कि हिंसा का प्रतीक बन चुके हैं। लोगों को जय श्री राम न बोलने पर मारा जा रहा, भारत माता की जय न बोलने पर देशद्रोही करार दिया जा रहा है। कुछ नेता तो उनको पाकिस्तान जाने की सलाह दे रहे हैं उनके बस में नहीं आ रहा वो उनका वीजा भी लगवा कर दे दे। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जहां पर एक नारा न लगाने के नाम पर अल्पसंखयकों पर हमले किए गए हैं, यहां तक कि उनकी हत्या भी की गई है। अब तो इन मामलों को गिनना भी छोड़ दिया गया है। ये एक आम सी बात लगने लगी है।

लेकिन ये नारे शुरू कहां से होते हैं? दंगे, सांप्रदायिक हिंसा और सांप्रदायिक नफरत के बारे में एक आम सी बात ये है कि इस सभी मसलों की शुरुआत सड़क पर नहीं होती, संसद में होती है। यानी ये उन नेताओं, उन संगठनों द्वारा शुरू किए जाते हैं जिन्हें इससे कोई निजी राजनीतिक फायदा है। ये नेता इन सब नारों, इस नफरत को अपने बयानों, अपनी रैलियों से प्रचलन में लाने का काम करते हैं, वहीं से होता हुआ ये सब कुछ सड़क तक पहुंचता है और कोई राम किसी अली को मारने लगता है। इसी का तो नमूना इस बार संसद में जब नए सांसदों ने शपथ ली तो मुसलमान सांसदों, या फिर उनकी पैरवी करने वाले दलों के सांसदों ने जब शपथ ली तो पीछे से बहुमत वाले सांसदों ने जय श्री राम के नारे लगाने शुरु कर दिए।

इस दौर में मीडिया का जितना पतन देखा गया है उतना किसी भी देश में कभी नहीं देखा गया होगा। आज एंकर अपने चैनल पर हिंदुवादी संदेश फैलाने का काम कर रहा है और लोगों को उकसाता हुआ नजर आ रहा है। इस समय नफरत है जिसे फैलाना सबसे आसान काम है। और जो इस काम को करने से मना कर देता है वो एंकर या तो देशद्रोही हो जाता है या फिर उसे चैनल से बाहर निकाल दिया जाता है।

नफरतों के दौर का होगा अंत?

मोदी सरकार बने हुए 6 साल हो गए हैं, इसके अलावा देश के 70 प्रतिशत राज्यों में भी बीजेपी की सरकार है। बीजेपी की सरकार है मतलब हिंदुवादी संगठन बहुत मजबूत हैं और धर्म के नाम पर गुंडों का भी बोलबाला है। आज अपराधियों का जश्न मनाना सामान्य सा हो गया है। सुबोध कुमार सिंह की हत्या के आरोपियों को बेल मिलना, पहलू खान के आरोपियों का छूट जाना, एक बहुत बड़ा सवाल पैदा करता है कि क्या इन सरकारों से पुलिस भी डरी हुई है और असुरक्षित महसूस कर रही है? ये सवाल निराश करने वाला है, लेकिन जरूरी है कि क्या नफरतों के इस दौर का अंत हो सकेगा?