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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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द्वितीय विश्वयुद्ध का वो काला सच, जिंदा इंसानों पर होते थे जब ऐसे घिनौने प्रयोग

यह दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त सामने आया था। यह एक प्रयोगशाला थी। दुनिया की सबसे भयानक प्रयोगशाला। इसे बनाया था जापानी सेना ने। यह एकदम गुप्त थी।
Information Anupam Kumari 30 November 2020
द्वितीय विश्वयुद्ध का वो काला सच, जिंदा इंसानों पर होते थे जब ऐसे घिनौने प्रयोग

युद्ध तो बहुत हुए हैं आज तक। युद्ध कभी भी अच्छे नहीं होते। हमेशा नुकसान ही हुआ है इनसे। कुछ युद्ध छोटे रहे तो कुछ बड़े। कई युद्धों में तो लाखों की जान चली गई। युद्ध अपराध भी कई बार हुए हैं। बड़े घिनौने अपराध। सबसे डरावना एक युद्ध अपराध हुआ था। यह था यूनिट 731। आप सोच रहे होंगे यह है क्या?  यह था द्वितीय विश्वयुद्ध।

वह खतरनाक प्रयोगशाला

यह दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त सामने आया था। यह एक प्रयोगशाला थी। दुनिया की सबसे भयानक प्रयोगशाला। इसे बनाया था जापानी सेना ने। यह एकदम गुप्त थी। नहीं मालूम था किसी को इसके बारे में। टाॅर्चर हाउस था यह एक तरह का। इतिहास में ऐसा और कोई लैब नहीं हुआ। प्रयोग होते थे यहां एकदम भयानक। वह भी जिंदा लोगों पर।

सिहर उठेंगे जानकर

जानेंगे इनके बारे में तो सिहर उठेंगे। यह प्रयोगशाला थी चीन में। पिंगफांग जिले में यह बनी थी। इसे चलाती थी जापान की सेना। जैविक हथियार बनाना था मकसद इस लैब को चलाने का। इसे वे दुश्मनों पर इस्तेमाल करना चाहते थे। जिंदा लोगों को यहां वे ले आते थे। उनमें वायरस डाल देते थे। खतरनाक रसायन उन पर डाल देते थे। देखते थे कि क्या होता है इससे। ये बेहद अमानवीय यातनाएं थीं। एक आम व्यक्ति कल्पना तक नहीं कर सकता इसकी।

इन पर होते थे प्रयोग

ब्रिटेन में जो पकड़े गये। जो चीन में हिरासत में लिये गये। या फिर जो अमेरिका से बंदी बनाये गये। इन सभी को यहीं ले आते थे। जानवरों की तरह रखते थे। प्रयोग होता था इन पर। प्रयोग दर्द भरे थे। एकदम जानलेवा। दम निकल जाता था अधिकतर लोगों का। बचने वाले भी मार दिये जाते थे। चीड़ते-फाड़ते थे उन्हें। देखते थे कि जिंदा बच कैसे गया था आखिर।

जमा देते थे हाथ-पैर

प्रयोग करना था, तो मारते गये। कहते तो हैं कि तीन हजार की जान ले ली गई थी इस प्रयोगशाला में। एक प्रयोग का नाम था फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग। ठंडे पानी में डुबो देते थे हाथ-पैर। पानी का तापमान कम करते जाते थे। तब तक जब तक हाथ-पैर जम न जाएं। फिर गर्म करते थे। हाथ-पैर अलग करने के लिए। देखा जाता था कि तापमान का शरीर पर क्या असर होता है। दम तोड़ देते थे बहुत से लोग इस दौरान।

डाल देते थे शरीर में वायरस

कई प्रयोग वीभत्स थे। वायरस डाल दिये जाते थे शरीर के अंदर। उनके असर को परखा जाता था। असर दिखता था तो यह भी कई बार दर्दनाक होता था। किसी अंग पर असर हुआ तो उसकी खैर नहीं। काट डालते थे उस अंग को। देखते थे कि बीमारी आगे भी फैल रही है या नहीं। जरा सोचिए, अंग कटना कितना दर्दनाक होता होगा। जान चली जाती थी बहुतों की इस दौरान। करते तो क्या करते आखिर? बंदी जो होते थे।

गन फायर टेस्ट

कई लोग इस दौरान बच भी जाते थे। मगर इस बचने का क्या फायदा? जान तो अब भी जाती ही थी। गन फायर टेस्ट किया जाता था तब। इनके शरीर पर। इससे भी एक चीज परखते थे। देखते थे कि कितना नुकसान पहुंचता है शरीर को बंदूक की गोली से।

महिलाओं पर प्रयोग

एक और प्रयोग बड़ा ही अमानवीय था। बंदियों में पुरुष और महिलाएं दोनों होते थे। जबर्दस्ती इनके बीच शारीरिक संबंध बनवाये जाते थे। खतरनाक बीमारी वाले वायरस डाल दिये जाते थे एक के शरीर में। इसके बाद उन पर नजर रखी जाती थी। देखते थे कि साइफिल्स कैसे फैल रही है। यह एक यौन संचरण बीमारी है। ये वायरस डाल दिये जाते थे महिलाओं के शरीर में। गर्भवती तक बनाते थे वे लोग उन्हें।

इस तरह से वे देखते थे कि नये पैदा हुए बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है। यह बहुत ही खतरनाक था। दर्द से भरा था। कई महिलाओं की तो जान ही निकल जाती थी शरीर से।

फिर लगी रोक

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ऐसे कई लैब थे। चीन में ही थे सभी। फिर वक्त बीता। द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ। इन लैब को भी बंद किया गया। खतरनाक प्रयोग रोके गये। फिर इन लैब में कोई नहीं रह गया। यहां वीरानगी फैल गई। आज भी कई लैब का अस्तित्व है। आते हैं लोग इन्हें देखने के लिए। न जाने कितनों की चीखें यहां दफन हैं।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान