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सियाचिन में हमेशा हारा है पाकिस्तान, प्रतिकूल मौसम में भी भारत पड़ता रहा है भारी

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। यह एक ऐसी जगह है, जहां आपको घास का एक पत्ता भी नजर नहीं आता। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 19 हजार फीट की है। इसे दुनिया की सबसे ऊंची युद्धभूमि आप कह सकते हैं। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

कब्जा करने की योजना

करीब 70 के दशक तक न तो भारत सियाचिन के महत्व को आंक रहा था और न ही पाकिस्तान। फिर 70 के दशक के बीतते-बीतते पाकिस्तान की ओर से अपने नक्शे में इस क्षेत्र को दिखाना शुरू कर दिया गया। पाकिस्तान की सेना अब योजना बनाने लगी कि ग्लेशियर पर किस तरह से कब्जा कर लिया जाए। इधर भारतीय सेना को भी पाकिस्तान के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त हुई कि ग्लेशियर पर पाकिस्तान की सेना ने कब्जा कर रही है।

पाकिस्तान ने सैन्य बल का इस्तेमाल करते हुए ग्लेशियर पर कब्जा करने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। साल्टोरो रिज एवं इसके नजदीक स्थित बिलफोंड ला, सिया ला और गियोंग ला की ऊंचाई वाली जगहों पर पाकिस्तान अपना कब्जा जमाना चाह रहा था।

पाकिस्तान के नापाक इरादों की मिली जानकारी

सियाचिन में सैन्य बल से अपना कब्जा जमाने के लिए पाकिस्तान को आर्कटिक मौसम गियर की आवश्यकता थी। इसकी आपूर्ति का आदेश उसने लंदन की एक कंपनी को दिया था। संयोग से भारतीय सेना को भी आर्कटिक मौसम गियर इसी कंपनी द्वारा प्रदान किए गए थे। ऐसे में इस कंपनी ने भारत को इसके बारे में सूचना दे दी। भारत समझ गया कि सियाचिन में पाकिस्तान कुछ बड़ा करने की योजना बना रहा है। भारत ने भी जमकर आर्कटिक मौसम गियर उपकरण खरीद लिए थे।

इन्हें मिली जिम्मेवारी

भारत को अपने खुफिया सूत्रों से यह पता लगा था कि 17 अप्रैल को पाकिस्तान की सेना सियाचिन में कब्जा जमाने के लिए पहुंचने वाली है। ऐसे में भारत ने भी योजना बना ली कि 13 अप्रैल को वह सियाचिन में पहुंचकर यहां अपना कब्जा जमा लेगी। भारतीय सेना की ओर से इसके लिए वैशाखी का दिन चुना गया था। भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन के लिए पर्वतीय क्षेत्रों से सैनिकों का चुनाव किया था। 4 कुमाऊं और लद्दाख स्काउट्स के सैनिक इस ऑपरेशन के लिए चुने गए थे।

तीन टीमों का गठन

तीन टीमें बना दी गई थीं। पहली टीम को बिलफोंड ला पर कब्जा जमाना था। दूसरी टीम को जिम्मेदारी दी गई थी सिया ला पर कब्जा जमाने की। वही गियोंग ला की ओर तीसरी टीम कूच कर गई थी।

साल्टोरो रिज में जो ऊंचे मैदान थे, वहां पर भारतीय सेना ने कब्जा करने की योजना बनाई थी। वह इसलिए कि यह बहुत ऊंचाई पर स्थित था। सामरिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व था। यदि पाकिस्तान इस पर अपना कब्जा जमा लेता तो ऐसे में उसे यहां से हटा पाना लगभग नामुमकिन हो जाता। इस मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए जिस आर्कटिक उपकरण की आवश्यकता थी, वह मिलने में देरी हुई। फिर भी भारतीय सैनिकों ने बड़ी जांबाजी दिखाई।

लगा दी छलांग

12 अप्रैल तक वे आधार शिविर तक पहुंच चुके थे। 13 अप्रैल को मेजर आरएस संधू ने इस ऊंचाई पर चढ़ने के लिए टीम का नेतृत्व किया। दूसरी ओर स्क्वॉड्रन लीडर एसएस बैंस ने भी चीता हेलीकॉप्टर रवाना कर दिया। केवल 2 लोग हेलीकॉप्टर में सवार होकर जा सकते थे। बर्फ से ढकी इस जगह पर हेलीकॉप्टर का उतरना संभव नहीं था।

जमीन से थोड़ी ऊंचाई करें चीता हेलीकॉप्टर उड़ रहा था। कैप्टन कुलकर्णी जो कि हेलीकॉप्टर में सवार थे, उन्होंने प्रार्थना की और नीचे छलांग लगा दी। करीब 30 सैनिक इस वक्त बिलफोंड ला पर तैनात थे। बर्फीला तूफान तक आया हुआ था, लेकिन भारत का तिरंगा पहली बार यहां लहरा दिया गया।

घुटने तक बर्फ में बढ़े आगे

प्रतिकूल परिस्थितियों का सफलतापूर्वक मुकाबला करते हुए भारतीय सेना यहां आगे बढ़ती रही। यहां तक कि घुटने भर बर्फ में भी उसे चलना पड़ा। पाकिस्तान की ओर से 23 अप्रैल को बिलफोंड ला पर पर हमला भी किया गया, लेकिन ऊंचाई पर होने का लाभ भारत को मिला। पाकिस्तान के 26 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसी तरह से 27 अप्रैल को हुए हमले को भी नाकाम कर दिया गया। मई और जून में भी हमले हुए, लेकिन भारत को ऊंचाई का लाभ मिलता रहा।

पाकिस्तान की ओर से 1987, 1989 और 1995 में भी यहां हमले किए गए, लेकिन हमेशा उसे मुंह की खानी पड़ी। दुश्मनों के साथ प्रतिकूल मौसम भी यहां भारतीय सेना की जान का दुश्मन बना रहता है, लेकिन फिर भी भारतीय सेना के बहादुर जवान हमेशा यहां दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहते हैं।