बिहार की राजनीति का क्या कहा जाए? एक स एक दिग्गज नेता हुए हैं। इन्हीं में से एक नाम था कर्पूरी ठाकुर का। बड़े ही लोकप्रिय नेता रहे बिहार के। आज भी इन्हें याद किया जाता है। बड़े ही सम्मान से इनका नाम लिया जाता है। देश के सबसे बड़े समाजवादी नेताओं में कर्पूरी ठाकुर गिने जाते हैं।
कर्पूरी ठाकुर के आदर्श की दुहाई आज भी दी जाती है। सभी दलों के नेता कपूरी ठाकुर का नाम लेते हैं। कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही था। बिहार की राजनीति उनके बिना अधूरी थी। बिहार में विधानसभा चुनाव का 1985 का यह वक्त था। ठीक एक साल पहले लोकसभा चुनाव हुए थे। कर्पूरी ठाकुर ने भी चुनाव लड़ा था।
लोकसभा चुनाव में हार
इस चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। समस्तीपुर लोकसभा सीट से वे चुनाव मैदान में थे। उन्हें टक्कर दे रहे थे कांग्रेस के रामदेव राय। रामदेव के हाथों कर्पूरी ठाकुर को मुंह की खानी पड़ी थी। फिर एक साल बीता तो बिहार में विधानसभा चुनाव आ गया।
मिला यह प्रस्ताव
रामचंद्र पूर्वे कर्पूरी ठाकुर के बहुत ही करीब थे। उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को एक सलाह दी। उन्हें कहा कि आप विधानसभा चुनाव लड़िये। सोनबरसा सीट का उन्होंने सुझाव दिया। सीतामढ़ी जिले की यह सीट थी। प्रस्ताव कर्पूरी ठाकुर को मिल गया था। बहुत सोच-समझकर यह प्रस्ताव उन्होंने दिया था। सामाजिक बनावट को उन्होंने देखा था। वे जान रहे थे कि यहां से कर्पूरी जीत जाएंगे। यह सीट उनके लिए अनुकूल दिख रही थी।
मान गए आखिरकार
फिर यह पक्का हो गया। समर्थकों ने जिद की तो कर्पूरी ठाकुर को भी मानना पड़ा। तैयार हो गए सोनबरसा से चुनाव मैदान में उतरने के लिए। बन गए उम्मीदवार दलित मजदूर किसान पार्टी के। चुनाव बड़ा दिलचस्प हुआ। वैद्यनाथ प्रसाद कर्पूरी ठाकुर को चुनौती दे रहे थे। कांग्रेस ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया था। चुनाव प्रचार में सभी ने बड़ी मेहनत की। कांग्रेस की लहर थी। वैद्यनाथ प्रसाद सोच रहे थे कि वे जीत जाएंगे।
चखा जीत का स्वाद
कांग्रेस ने बहुत कोशिश भी की थी। फिर भी परिणाम आया तो कांग्रेस को बड़ी निराशा हुई। इस सीट से कांग्रेस हार गई थी। जी हां, वैद्यनाथ प्रसाद को हार का सामना करना पड़ा था। कर्पूरी विजयी हुए थे। भारी अंतर से जीते थे। उन्हें मिलने वाले वोटों की संख्या 52 हजार 82 थी। वैद्यनाथ प्रसाद को तो साढे सात हजार से थोड़ी ज्यादा वोट मिले थे। ऐसे में वे तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे।
वैद्यनाथ प्रसाद की टिप्पणी
कर्पूरी ठाकुर को किसी ने टक्कर दी तो वे थे अनवारुल हक। ये निर्दलीय प्रत्याशी थे। चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे। इन्हें मिलने वाले वोटों की संख्या 27 हजार 135 थी। इस तरह से चुनाव बहुत ही रोचक रहा। लंबे अंतर से कर्पूरी ठाकुर जीते थे। वैद्यनाथ प्रसाद हार गए थे। फिर भी उन्होंने कर्पूरी को लेकर एक उल्लेखनीय टिप्पणी की थी। सोनबरसा के सामाजिक समीकरण को लेकर उन्होंने बात की थी। उन्होंने कहा था कि यह कर्पूरी के हिसाब से था। जीतना तो उन्हें था ही। इसलिए उन्हें चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया गया था।
अच्छा नहीं हुआ साबित
जीत तो गए कर्पूरी ठाकुर, लेकिन आगे कुछ अच्छा नहीं हुआ। चीजें उनके हिसाब से नहीं हुईं। विधानसभा में विपक्ष के नेता वे बने थे। परिस्थितियां बड़ी बिगड़ गई थीं। बहुत उथल-पुथल चल रहा था। दबाव उन पर बहुत बन रहा था। विधानसभा में बड़ा गतिरोध था। विपक्ष के नेता का पद उन्हें कुछ ही दिनों में छोड़ देना पड़ा।
यूं ही चीजें आगे बढ़ती रहीं। राजनीति अपने चरम पर थी। हालांकि चीजें बहुत तेजी से बदल रही थीं। फिर आया वर्ष 1988। कर्पूरी पटना में थे। वे दुनिया से तब चल बसे।
पहले चुनाव से
आजादी के बाद देश में पहला विधानसभा चुनाव कर्पूरी ठाकुर ने लड़ा था। इसमें वे जीत भी गए थे। विधायक चुन लिए गए थे। समस्तीपुर के ताजपुर से विधायक बने थे। इसके बाद वे जीतते रहे। वर्ष 1972 के विधानसभा चुनाव तक उन्हें जीत मिली। यहां से वे विधायक बने रहे। कद तो इनका बढ़ता ही जा रहा था।
बन गए मुख्यमंत्री
फिर समस्तीपुर से इन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा था। यह 1977 का चुनाव था। इसमें उन्हें विजय मिली थी। कर्पूरी सांसद बन गए थे। समस्तीपुर के वे सांसद थे। फिर उनके जीवन का एक बड़ा मौका आया। बिहार के मुख्यमंत्री बनने का अवसर उन्हें मिल गया। मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल उल्लेखनीय रहा।
मुख्यमंत्री बनने के बाद वे उपचुनाव लड़े थे। मधुबनी जिले की यह फुलपरास सीट थी। इसमें वे जीत भी गए थे। विधायक चुन लिए गए थे। आज भी कर्पूरी ठाकुर याद किए जाते हैं। चर्चा अक्सर उनकी निकल ही जाती है।