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कब खुलेंगे सोन गुफा के दरवाजे, कोशिश करते-करते बीत गये हजारों साल

शोध बहुत हो चुके, लेकिन राज अब तक राज है। सोन गुफा का दरवाजा अब तक नहीं खुल पाया है। पुरातत्व विभाग की कोशिशें अब भी जारी हैं।
Information Anupam Kumari 26 November 2020
कब खुलेंगे सोन गुफा के दरवाजे, कोशिश करते-करते बीत गये हजारों साल

यह भारत है। कोने-कोने में यहां रहस्य छिपा है। रोमांच इसके कण-कण में बसा है। इस धरती की माटी अद्भुत है। सोना छिपा है इसके अंदर। खजाना छिपा है इसके अंदर। सदियों से। रहस्यों से जुड़ीं ढेरों कहानियां हैं। लोगों को ये बहुत रोमांचित करती हैं। देश के कोने-कोने में ऐसी जगहें मौजूद हैं। इन जगहों पर छिपे खजाने के किस्से खूब सुनने को मिलते हैं। जैसे की सोन गुफा 

रहस्यों से हैं भरी पड़ी

बिहार में भी सोन गुफा  हैं। रहस्यों से ये भरी पड़ी हैं। रोंगटे खड़े कर देते हैं ये हर किसी के। बिहार के राजगीर में हैं ये गुफाएं। देखकर हैरान रह जाएंगे। साफ नजर आती हैं इन गुफाओं में सोने की परतें। एक विशाल दरवाजा है यहां। खोल नहीं पाया कोई इसे आज तक। खजाना किसका है? अलग-अलग कहानियां हैं इसके पीछे। कहते हैं कि जरासंध का यह खजाना था। महाभारत वाला जरासंध। वही जरासंध, जो कंस का ससुर था।

कुछ मानते हैं

कुछ का अलग मानना है। उनके मुताबिक यह खजाना बिंबिसार का है। ये मगध के शासक हुआ करते थे। राजगीर में पहाड़ियां कई हैं। पहाड़ियों की तलहटी में कई गुफाएं बनी हुई हैं। सोने की परत इनकी दीवारों पर दिख जाती हैं। चंद्रगुप्त मौर्य के शासन से भी सैकड़ों साल पहले की बात है। यह 558 ईसा पूर्व की बात है। मगध पर शासन था एक सम्राट का। नाम था बिंबिसार। बिंबिसार का समृद्ध साम्राज्य था।

राजधानी थी राजगीर

राजगीर इनकी राजधानी हुआ करती थी। महल भी यहां उन्होंने बनवा रखा था। सम्राट तो बिंबिसार सिर्फ 15 साल की उम्र में ही बन गये थे। इन्होंने तब तक शासन किया, जब तक इनकी उम्र 52 साल की नहीं हो गई। मगध तब बहुत संपन्न था। इतना कि इसकी संपत्ति से दुनिया के कई देश लाभान्वित हो सकते थे। आराम से 50 वर्षों तक इनकी अर्थव्यवस्था भी चल सकती थी। इसमें कोई बाधा आती ही नहीं। कई राजाओं ने बिंबिसार के आगे घुटने टेक दिये थे। अपनी संपत्ति उन्हें सौंप दी थी।

दुश्मन भी नहीं थे कम

दुश्मन भी बिंबिसार के कई थे। इनसे बचना था। इसलिए उन्होंने पर्वत में कई गुफाएं बनवा ली थीं। इसमें उन्होंने महल का खजाना रख दिया था। इनमें हीरे थे। सोने थे। जवाहरात थे। खजाना की सुरक्षा भी बड़ी मजबूत था। सबसे उत्तम सैनिक दल इनकी रखवाली करता था। सिर्फ भरोसेमंद सैनिक ही इस खजाने के बारे में जानते थे।

जब बेटा ही बना दुश्मन

गौतम बुद्ध से बिंबिसार ने राजगीर में ही ज्ञान ले लिया था। सोच लिया था कि वे बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान करेंगे। यह बात उनके बेटे अजातशत्रु को अच्छी नहीं लगी। राजा जितनी जल्दी हो सके, उसकी बनने की ख्वाहिश थी। किसी तरीके से पूर्वजों के खजाने को भी वह पाना चाहता था। फिर क्या था, बना लिया उसने अपने पिता बिंबिसार को बंदी। नहीं दिया उन्हें भोजन उनके अंतिम दम तक। खजाने का राज उसे जानना था। राज अपने दिल में दबाये ही बिंबिसार की जान चली गई।

दफन हो गया राज

इस तरह से यह राज हमेशा के लिए दफन ही रह गया। कोई और नहीं जानता था बिंबिसार के अलावा इस खजाने का राज। दरवाजे के पीछे का रहस्य क्या है, यह आज तक दबा ही रह गया है। पुरातत्व विभाग ने गहनता से गुफा की पड़ताल की है। पता तो यही चलता है कि बिंबिसार की कहानी में दम है।

जरासंध की कहानी

फिर भी जरासंध से भी इस सोन गुफा का संबंध बताया जाता है। इसे भीम ने मारा था। मगध का वह राजा हुआ करता था। दो मांओं से वह जन्मा था। अलग-अलग हिस्सों में। कहा जाता है कि राक्षसी जरा ने उसे मिला दिया था। इस तरह से नाम उसका जरासंध पड़ गया। बड़ा ही अत्याचारी राजा था जरासंध। शिव का वह बड़ा भक्त था। ख्वाहिश थी उसकी चक्रवर्ती सम्राट बनने की।

उसे हराना था 100 राजाओं को। देनी थी उनकी बलि। परास्त कर भी दिया था उसने 86 राजाओं को। कैद कर रखा था पहाड़ की एक गुफा में। सबके खजाने भी उसने लूट कर जमा कर रखे थे। पर्वत की तलहटी में स्थित इस सोन गुफा में ही खजाने को उसने रख दिया था। युद्ध के लिए फिर पांडवों ने उसे चुनौती दे दी। श्रीकृष्ण की मदद से भीम ने जरासंध को मार डाला। सभी राजा आजाद हो गये। युधिष्ठिर को उन्होंने अपना राजा मान लिया। गुफा में ही खजाने रह गये।

एक ही चट्टान को काटकर

सिर्फ एक चट्टान को काटकर बनी हैं ये गुफाएं। सदियों से इसी कारण से सुरक्षित भी हैं। दो कमरे हैं यहां। एक में सैनिक रहते हैं। एक में छिपा है खजाना। बड़ा सा पत्थर है यहां। इसे आज तक हटाया नहीं जा सका है। अंग्रेजों ने भी कोशिश की। तोप से गोले दागे। फिर भी नहीं हुआ कोई असर। हार मानकर वे पीछे हट गये। सोने की परत तक है दीवारों पर। शंख लिपि में राज लिखा है, लेकिन कोई पढ़ नहीं पाया आज तक।

अवशेष इशारा करते हैं

अवशेष मिले हैं यहां जैन धर्म के। भगवान विष्णु की एक मूर्ति भी मिली है गुफा के बाहर। शायद वैष्णव संप्रदाय वालों ने भी किया होगा कभी इसका संरक्षण। शोध बहुत हो चुके, लेकिन राज अब तक राज है। सोन गुफा का दरवाजा अब तक नहीं खुल पाया है। पुरातत्व विभाग की कोशिशें अब भी जारी हैं।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान