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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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ऐसा क्या हुआ जो सोनू सूद से इतनी खफा हो गई मोदी सरकार!

क्या ये इशारा है कि गरीबों का मसीहा कहलाने वाले सोनू सूद अपनी निजी साख को किसी दूसरी राजनीतिक पहचान से जोड़ने की कोशिश नहीं कर सकते हैं?
Politics Tadka Taranjeet 30 September 2021
ऐसा क्या हुआ जो सोनू सूद से इतनी खफा हो गई मोदी सरकार!

साल 2002 में गुजरात दंगों के बाद अपनी आईएएस अफसरी से इस्तीफा देने वाले हर्ष मंदर शुरु से ही भाजपा को खटकते रहे हैं। कई बार पहले भी उनके खिलाफ पुलिस और सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल किया गया है। इस देश में बच्चों के अधिकार के संरक्षण में बुरी तरह नाकाम बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग सबकुछ छोड़ कर उनके चिल्ड्रेन होम में ये देखने के लिए पहुंच जाता है कि कहीं इस होम में रह रहे बच्चों को नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में चल रहे आंदोलनों का हिस्सा तो नहीं बनाया जा रहा है? आयोग अपनी रिपोर्ट में भी आधे-अधूरे शब्दों में ये बात कहता है और इसी आधार पर दिल्ली पुलिस उनके खिलाफ केस दर्ज कर लेती है। उनके यहां प्रवर्तन निदेशालय छापा मारने पहुंच जाता है।

कैसे बर्दाश्त होंगे हर्ष जैसे लोग

लेकिन यह सब जितना भी अन्यायपूर्ण हो, अप्रत्याशित नहीं है। जो आदमी हिंसा की आग में झुलसे लोगों और परिवारों को राहत देने की कोशिश करता हो, जो कारवान-ए-मोहब्बत जैसा कार्यक्रम करता हो, वो इस सरकार को कैसे स्वीकार्य हो सकता है? जो आदमी भूख और रोजगार का मसला उठाता हो, जो मानवाधिकारों को याद करता हो, जो धार्मिक आधारों पर भेदभाव को खारिज करता हो, जो एक तरह से ठोस लोकतांत्रिक माहौल बनाने की कोशिश करता हो, वो इस सरकार और इस पार्टी को कैसे रास आ सकता है। जिस पार्टी और सरकार का मकसद ही लोकतंत्र खत्म कर जनादेश का हरण कर लेना है वो सरकार ऐसे इंसान को कैसे बर्दाश्त कर सकती है।

यही बात पिछले दिनों न्यूजलॉन्ड्री, न्यूजक्लिक पोर्टलों के साथ ही हुई थी, जब इन मीडिया कार्यालयों पर आयकर विभाग ने छापे मारे थे। ये बात कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि इन पोर्टलों पर बस इसलिए कार्रवाई की गई है कि ये सरकार विरोधी हैं। इनको इनके अपराध की सजा दी जानी थी और फिलहाल तो बस चेतावनी दी गई है। इशारा किया गया है कि सरकार जब चाहेगी तब सजा दे देगी।

आखिर सोनू सूद की क्या गलती थी?

लेकिन एक बात बिलकुल समझ से परे है कि आखिर सोनू सूद के घर पर आयकर की टीम क्यों पहुंच गई? सोनू सूद ने ऐसा क्या कर दिया कि सरकार को अपनी एजेंसियां उसके घर पर भगानी पड़ गई। क्या सच में दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के एक कार्यक्रम में ब्रांड अंबैसडर के तौर पर सोनू सूद का जुड़ना सरकार को इतना बुरा लग गया कि उसने तुरंत ही उन्हें सबक सिखाने की सोच ली? क्या ये इशारा है कि गरीबों का मसीहा कहलाने वाले सोनू सूद अपनी निजी साख को किसी दूसरी राजनीतिक पहचान से जोड़ने की कोशिश नहीं कर सकते हैं? इसमें कोई संदेह नहीं है कि सोनू सूद के ठिकानों पर छापेमारी जैसी कार्रवाई फिलहाल राजनैतिक तौर पर सरकार के लिए नुकसानदेह होगी। कोविड के संकट के दौरान अभिनेता से नायक बनने वाले सोनू सूद ने बिल्कुल बेमिसाल काम किया है। वो जैसे आज के गांधी हो गए थे और  मजदूरों के लिए भोजन का इंतजाम करना हो या फिर उनको घर भेजने की व्यवस्था करनी हो, इसके बाद उनके लिए फिर से रोजगार जुटाना हो, या फिर कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों के लिए ऑक्सीजन का इंतजाम करना हो सोनू सूद जैसे हर मोर्चे पर सबसे आगे लगे रहे हैं और जितना ज्यादा कोरोना वायरस फैला है उतनी उनकी महानता बढ़ी है। उनके खिलाफ ऐसी संदिग्ध कार्रवाई दरअसल सरकार को ही संदिग्ध बना रही है।

क्यों इस सरकार में ज्यादा चिंताजनक है एजेंसियों का दुरुपयोग

यहीं से एक नया खयाल आता है कि सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है। दुनिया भर की सरकारें अपने विरोधियों की जासूसी करवाती हैं और इंदिरा गांधी पर भी ये आरोप लगा था। लेकिन जब सत्ता का अहंकार चरम पर चला आता है तो उसके भीतर ये विवेक नहीं बचता कि वो एजेंसियों को कैसे काम में ले। वो हर विरोधी लगने वाले शख्स के पीछे आइटी, सीबीआई, ईडी जैसी संस्थाओं को लगा डालती है।

मौजूदा सरकार के संदर्भ में ये बात ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि इस इस्तेमाल की वजह से इन एजेंसियों की कार्यक्षमता प्रभावित होने लगी है। एक वक्त था जब दिल्ली पुलिस देश की सबसे सक्षम और पेशेवर पुलिस मानी जाती थी। लेकिन आलम ये हो चला है कि पिछले कई मामलों में वो सिर्फ अदालतों की फटकार ही खा रही है और ये मामले कौन से हैं? नागरिकता-विरोधी कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों को जबरन दिल्ली के दंगों से जोड़ने के, दिल्ली दंगों की जांच के नाम पर बेगुनाह लोगों पर फर्जी मामले लगाने के। ये साफ दिख रहा है कि अपने आकाओं को खुश करने की मजबूरी में वो अजीबोगरीब सी दलीलों और बेबुनियाद सबूतों की मदद लेती जा रही है। दिल्ली पुलिस के पुराने अधिकारी इस हाल पर शर्मिंदा से नजर आते हैं।

यही स्थिति दूसरी एजेंसियों की भी है। हालत ये है कि सरकार खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश में देश को असुरक्षित बना रही है, उसके नागरिक अधिकारों को, लोगों की नागरिकता को दांव पर लगा रही है। उसकी एजेंसियां दूसरों पर देशद्रोह के जितने मामले जड़ रही हैं, उतना ही उनका और उनके आकाओं का अपना देशद्रोही चरित्र सामने आ रहा है। जो कि इस देश के लिए बेहद खतरनाक माहौल बनाता जा रहा है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.