आज यूपी के पूर्व सीएम अखिलेख यादव और बीएसपी प्रमुख मायावती ने साफ कर दिया है कि एसपी और बीएसपी साथ में मिलकर चुनाव लड़ेगी….
इस साझा प्रेस कांफ्रेंस ने लोकसभा की 80 सीटों का फार्मूला साफ कर दिया गया है. लोकसभा चुनाव में एसपी बीएसपी की 38-38 सीटें होंगी. और 2 सीटें अन्य पार्टी के लिए छोड़ी गई है. इसके अलावा 2 सीट रायबरेली और अमेठी के लिए छोड़ दी गई.
लेकिन इसमें दोगलेपन की राजनीति भी साफ दिखती नजर आ रही है. मप्र में कांग्रेस को गठबंधन दिया. क्योकिं तब बीजेपी को हराने का श्रेय जो लेना था. लेकिन जब बात अपने पर आई तो कांग्रेस किनारे कर दिया.
यूपी की दोनों बड़ी पार्टी का एक होना राजनीति में हड़कंप तो मचाता ही है. लेकिन पहले बीजेपी को रोकने के लिए सारी पार्टी एकसाथ आते दिख रहे थे. लेकिन जब अपने पर आई तो अखिलेश यादव और मायावती ने गेम खेल लिया. और इस गेम में कांग्रेस को भी बाहर कर दिया. मतलब अब मोदी सरकार को हराना तो लक्ष्य है. लेकिन कांग्रेस को भी नहीं जिताना रणनीति शामिल है. दो सीटें अमेठी और रायबरेली के लिए छोड़कर कांग्रेस को ये साफ कर दिया है कि आप अपना देखे. हमने तो साथ-साथ खेलने का मन बना लिया है.
इस गठबंधन के बाद यदि किसी पार्टी में हलचल मची हुई है तो वो कांग्रेस पार्टी है. क्योकिं तीनों खास पार्टी का जब मकसद एक, तो दो अलग-अलग राह चुनने का क्या मतलब? लेकिन अब इसके बाद कांग्रेस ऐसी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी जहां उसे जीतने की पूरी उम्मीद हो यानि की पिछली बार जहां कम वोटों से हारे थे तो वहां कांग्रेस जीतने की उम्मीद लिए अपने उम्मीदवार उतारेगी.
यूपी में मोदी लहर के बावजूद भी वोट प्रतिशत के मामले में एसपी-बीएसपी काफी मजबूत रही है. इसका उदाहरण उपचुनाव से मिल गया. जहां बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. 2014 में एसपी बीएसपी 41 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही थी. और बीजेपी को 43.80 फीसदी वोट मिले थे. जाति की राजनीति के नजरिए से देखा जाए तो यूपी में 12 फीसदी यादव, 22 प्रतिशत दलित औऱ 18 प्रतिशत मुस्लिम है. जो कि कुल आबादी का 52 फीसदी हिस्सा है. ऐसे में एसपी-बीएसपी का गठबंधन एक मजबूत पारी खेलने के लिए तैयार है. और इसमें दोनों पार्टियों की कोशिश रहेगी की वो इन वर्गो को अपने हक में ले. क्योंकिं यही वो फार्मूला होगा जो इस गठबंधन का मीठा फल देगा.
यूपी की राजनीति में ये बड़ा गठबंधन इसलिए माना जा रहा है क्योकिं एसपी बीएसपी यूपी की दोनों की बड़ी पार्टी है. और इनके बीच का तनाव किसी से छिपा नहीं है. लेकिन अब दोनों का साथ आना साफ तौर पर बयां करता है कि यूपी में तीसरी पार्टी की कोई जगह नहीं. चाहे हमें एक ही क्यूं न होना पड़े. लेकिन यकीन मानिए इसके परिणाम बड़े दिलचस्प होने वाले है.