कोरोना वायरस ने जो मौत का तांडव मचाया है दुनियाभर में, हर कोई इससे सहम गया है। उम्मीद की कोई किरण भी नहीं नजर आ रही है। न कोई टीका है, न ही कोई दवाई। बस बेबसी ही बेबसी है। दुनियाभर में करीब 9 लाख लोग कोरोना वायरस के संक्रमण का शिकार हो चुके हैं और मरने वालों की तादाद भी 44 हजार के करीब पहुंच चुकी है। भारत भी इससे अछूता नहीं है और यहां भी मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में हम आपको 100 साल पीछे ले चलते हैं, जब कोरोना वायरस की तरह ही स्पेनिश फ्लू (Spanish Flu) नामक एक खतरनाक महामारी ने दुनियाभर में अपने पांव पसारे थे और इसकी वजह से 5 करोड़ से भी अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
स्पेनिश फ्लू के फैलाव की शुरुआत वर्ष 1918 में हुई थी और 1920 तक इसने दुनियाभर में तबाही मचा कर रख दिया था। इन्फ्लुएंजा पैनडैमिक ऑफ 1918 (Influenza pandemic of 1918) का भी प्रयोग इस जानलेवा महामारी के लिए होता है, जिसके फैलने की शुरुआत माना जाता है कि अमेरिका से हुई थी। यह वह वक्त था, जब पहला विश्वयुद्ध (First World War) समाप्त ही हो रहा था। इसी दौरान इस महामारी का फैलाव यूरोप तक अमेरिकी सैनिकों के माध्यम से हो गया था। युद्ध जब खत्म हो गया तो सैनिकों की घर वापसी होने लगी थी। इसी दौरान ये सैनिक स्पेनिश फ्लू को भी अपने साथ जहां-जहां दुनिया में गये, वहां-वहां लेते चले गये।
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इतना खतरनाक इस वायरस का संक्रमण हुआ कि दुनियाभर में लगभग 50 करोड़ लोग इसकी चपेट में आ गये थे। ऐसा लग रहा था कि पूरी दुनिया को खत्म करके ही यह वायरस अब जायेगा। जितने संक्रमित हुए, उनमें से 10 फीसदी की इसने जान ले ली थी। कोरोना वायरस (Corona virus) का भी कहर इस वक्त दुनिया पर टूट रहा है। इसमें देखा जा रहा है कि बुजुर्गों की मौत कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से अधिक हो रही है, मगर स्पेनिश फ्लू एक ऐसी बीमारी थी, जो न तो उम्र देखकर अपना शिकार बना रही थी और न ही सेहत देखकर। कहने का मतलब यह है कि हर उम्र के लोगों को इसने अपना शिकार बनाया और एकदम स्वस्थ नजर आने वाले लोगों को भी। बच्चे-बूढ़े, जवान-बच्चे, पुरुष-महिलाएं हर किसी की इसने जिंदगी लील ली थी।
प्रथम विश्वयुद्ध जब चल रहा था तो इस दौरान स्पेन किसी की ओर भी नहीं था। सैनिक निराश न हों, इसलिए दुनिया के अधिकतर देशों द्वारा स्पेनिश फ्लू की खबरों को दबाने की कोशिश की गई, लेकिन स्पेन ने खुलकर इसके बारे में लोगों को बताया। यही वजह रही कि इस खतरनाक बीमारी का नाम ही स्पेनिश फ्लू पड़ गया। जिस तरह से आज लाॅकडाउन का सहारा पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कहर से बचने के लिए लिया जा रहा है, वैसा ही स्पेनिश फ्लू के समय भी हुआ था और लाॅकडाउन दुनिया के हर हिस्से में देखने को मिल रहा था।
भारत की बात करें तो बॉम्बे फीवर के नाम से यहां इसे लोग जान रहे थे। भारत में भी इस बीमारी ने कम तबाही नहीं मचाई थी। एक अनुमान के अनुसार बताया जाता है कि भारत में भी करीब डेढ़ से दो करोड़ लोगों की जान स्पेनिश फ्लू की वजह से चली गई थी। देश वैसे भी गुलामी का दंश झेल रहा था और ऊपर से इस खतरनाक बीमारी ने देश की कमर तोड़कर रख दी थी।
जिस वक्त स्पेनिश फ्लू फैला था, दुनिया विज्ञान व तकनीक के मामले में बहुत ही पीछे थी। न कोई टीका बन पाया था और न ही कोई एंटीबायोटिक ही था। ऐसे में नियंत्रण में नहीं आ रही इस बीमारी से बचने के लिए दुनियाभर में लोगों को आइसोलेट (Isolate) किया जाना शुरू किया गया था। स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया। लाॅकडाउन ( Lockdown ) हर जगह लगाये जाने लगे। अखबारों में भी लोगों को इसके के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञापन प्रकाशित किये गये।
आज भी जब कोरोना वायरस से बचाव को कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा तो ऐसे में खुद को आइसोलेट करने और साफ-सफाई से काम लेने के अलावा और कोई चारा दुनिया के पास नहीं रह गया है। 100 साल पहले की तुलना में बढ़ी कनेक्टिविटी को ध्यान में रखते हुए लाॅकडाउन का गंभीरता से पालन और सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing) के सिवा इस वक्त इस खतरनाक वायरस से अपने जान बचाने का दूसरा कोई उपाय नहीं है।