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महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव नतीजों से बीजेपी और कांग्रेस को सीख लेने की जरूरत

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे आ गए हैं। इन नतीजों ने बहुत से Congress और BJP के राजनीतिक पंडितों की दुकानें बंद कर दी है।
Politics Tadka Taranjeet 25 October 2019
महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव नतीजों से बीजेपी और कांग्रेस को सीख लेने की जरूरत

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे आ गए हैं। इन नतीजों ने बहुत से Congress और BJP के राजनीतिक पंडितों की दुकानें बंद कर दी है। सबसे पहले तो ये समझने की जरूरत है कि इस चुनाव में कोई दल नहीं जीता है बल्कि लोकतंत्र जीता है। अब न कोई EVM पर सवाल उठाएगा, न कोई ये कहेगा कि मुद्दों पर वोट नहीं मिले और न कोई ये कहेगा कि विरासत में सत्ता मिली है। विधानसभा चुनाव नतीजों ने बहुत से दलों को बहुत कुछ सिखा दिया है। सबसे बड़ी बात तो ये सीखने को मिल गई कि जनता से बढ़कर कुछ नहीं है।

ये लोकतंत्र की जीत वाला चुनाव

हर चुनाव में हार जीत तो होती रहती है, जैसे एक खेल में एक टीम जीत जाती है और दूसरी हारती है वैसे ही चुनाव में भी एक पार्टी जीतती है और दूसरी हारती है। लेकिन नेताओं को, मीडिया को इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि जनता मुर्ख नहीं है। वो सही वक्त पर सही बटन दबा कर जवाब देती है। ये चुनाव नतीजे जो आए हैं उन्होंने साबित कर दिया कि देश किसी एक पार्टी का नहीं है। बीजेपी, कांग्रेस के उन नेताओं को भी जवाब मिल गया है जो कहते थे कि हमारे मुकाबले में कोई नहीं है। क्योंकि दोनों ही राज्यों में बहुमत के साथ ये सरकार बनाने की हालत में नहीं है।

सबसे पहले नजर डालते हैं कि विधानसभा चुनाव के नतीजों का क्या हाल रहा है। तो हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा है, बीजेपी 40, कांग्रेस 31, जेजेपी 10, अन्य 9 सीटों के साथ है। जबकि 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में बहुमत के लिए 46 सीटें चाहिए। साफ है कि अब सरकार गठबंधन के आधार पर ही बनेगी और किंगमेकर बनेगी जेजेपी या फिर निर्दलीय तो ऐसे में सरकार बिना सोचे समझे कोई फैसला नहीं ले सकती है क्योंकि उसे हर पल समर्थन चले जाने का डर लगा रहेगा। वहीं महाराष्ट्र में भी बीजेपी का गठबंधन तो है शिवसेना के साथ और ये गठबंधन सरकार बना भी रहा है लेकिन बहुत ही चुनौतियां सामने है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे देखें तो 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी को 105, कांग्रेस को 44, शिवसेना को 56 औऱ एनसीपी को 54 सीटें मिली है। जबकि बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए जो कि बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को मिलती नजर आ रही है। लेकिन शिवसेना के तेवर बहुत अलग है। ऐसे में दोनों राज्यों में बीजेपी की राह सरकार बनाने में कठिन होने वाली है।

बीजेपी को क्या सीख मिली?

इस चुनाव नतीजों से सीख मिलती है कि दोनों दलों को जनता के मुद्दे उठाने होंगे। सबसे पहले बात करते है बीजेपी को क्या सीख मिली है। तो बीजेपी के लिए सीख यही है कि अनुच्छेद 370, पाकिस्तान बैशिंग, और NRC के मुद्दों से बाहर निकलो। आप सोचेंगे कि जमीनी मुद्दों को जमीन पर छोड़कर ऊपर-ऊपर से ही निकल जाएंगे, तो नहीं साहब ये जनता है ये सब जानती है। आप कहेंगे कि पाकिस्तान को पटक दिया, तो क्या इससे किसी को नौकरी मिलेगी? उसके लिए तो मंदी भगानी होगी न और इकनॉमी की ग्रोथ बढ़ानी होगी। आप कहिए कश्मीर से 370 को हटा दिया, लेकिन इससे मानेसर में एक ऑटो कंपनी में नौकरी करने वाले का क्या होगा, जो अपनी नौकरी मंदी के कारण खो चुका है। आप कहिए NRC ले आए हैं। लेकिन कथित अवैध विदेशियों के चले जाने से महाराष्ट्र के सूखे खेतों में पानी तो नहीं आ जाएगा? वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी पर राष्ट्रवाद पर सवाद लेना और चुनाव में लोकल मुद्दों की बात और होती है। आपकी सरकार थी तो वोटर आपसे ही हिसाब मांगेगा वो नहीं जाएगा नेहरू के पास हिसाब मांगने। हरियाणा और महाराष्ट्र में भी बीजेपी के साथ वही हुआ है।

कांग्रेस को क्या सीख मिली?

तो वहीं अब बात करते हैं कांग्रेस की तो कांग्रेस के लिए सीख है कि अपनी पार्टी के उन जयचंदों को बाहर करो, जो हर बात में जीजा जी की तरह मुंह फुला कर बैठ जाते हैं और वोटर को गुमराह करते हैं। जैसे अशोक तंवर, संजय निरुपम, अगर ये नेता चाहते तो नतीजे आपके पक्ष में हो सकते थे। आपके नेता इन चुनावों में नजर ही नहीं आए, राहुल गांधी की रैलियां कहां गुम थी। जमीनी मुद्दों को सामने लाइए और नई पीढ़ी के साथ जुड़ने का काम करना आपके लिए बेहद जरूरी है। ये परिणाम आपकी डूबती नईया के लिए सहारा है। एक संजीवनी है ये मुर्छिट पड़ी कांग्रेस के लिए, अगर इसका सही इस्तेमाल कर गए तो दिल्ली और झारखंड में कुछ कमाल कर सकते हैं। नहीं तो फिर EVM का राग अलापना पड़ेगा। कांग्रेस के लिए तसल्ली की बात ये है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से हटने के बाद पार्टी में भले उठापटक का माहौल रहा हो, लेकिन जनता ने अभी उसे पूरी तरह से खारिज नहीं किया है। साथ ही सोनिया गांधी का भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कमान सौंपने का फैसला भी असरदार साबित हुआ है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.