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इनकी यदि चलती तो इस देश में 35 वर्षों तक लगी रहती इमरजेंसी

इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी का एहसास पहले किसी को नहीं होने दिया था। अचानक 25 जून, 1975 की आधी रात को उन्होंने देश में इमरजेंसी लगाने की घोषणा कर दी थी।
Information Anupam Kumari 3 January 2020
इनकी यदि चलती तो इस देश में 35 वर्षों तक लगी रहती इमरजेंसी

भारत की राजनीति की बात होती है तो संजय गांधी का भी नाम जरूर सामने आता है। भले ही संजय गांधी का निधन हो गया, लेकिन जब तक वे जिंदा रहे तब तक राजनीति में उनकी भी तूती बोल रही थी। इंदिरा गांधी को यदि कोई टक्कर दे रहा था तो वह संजय गांधी ही थे। उन्हें तो इंदिरा गांधी के राजनैतिक उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जा रहा था। जब उनका निधन हो गया तो इसके बाद इस देश की राजनीति की तस्वीर ही एकदम बदल गई। उनकी मौत के करीब 4 वर्षों के बाद इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। इसके बाद इस देश की विरासत इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के हाथों में चली गई। राजीव गांधी को उस वक्त बताया जाता है कि मजबूरी में सियासत में कदम रखना पड़ा था।

यदि 70 के दशक में किसी नेता की सबसे ज्यादा भारतीय राजनीति में चर्चा हो रही थी तो वह संजय गांधी ही थे। उन्होंने इस दशक को यादगार बनाने का काम किया, क्योंकि उन्होंने जो तेजी दिखाई और जो उनकी सोच रही, उसकी वजह से देश के युवा उनके कायल हो गए थे। उनकी सादगी कमाल की थी। कमाल के वे भाषण दिया करते थे। प्लेन से वे सफर करते थे, लेकिन कोल्हापुरी चप्पल पहन कर जाते थे। राजीव गांधी तो कई बार उन्हें चेतावनी भी दे देते थे कि वे चप्पल नहीं, पायलट वाले जूते पहन कर जाएं, लेकिन संजय गांधी क्या उनकी सलाह मानने वाले थे। हमेशा वह चप्पल पहनकर ही प्लेन में भी निकल जाया करते थे।

राजनीति के केंद्र

संजय गांधी की उम्र उस वक्त कुछ ज्यादा नहीं थी। वे केवल 33 वर्ष के ही थे। फिर भी राजनीति में वे एक केंद्र जरूर बन गए थे। कहते हैं कि संजय गांधी का रुतबा इतना अधिक बढ़ गया था कि कैबिनेट तक उनके सामने बौना पड़ जा रहा था। इंदिरा गांधी के लिए संजय गांधी यदि कभी ताकत बनकर उभरे तो यही संजय गांधी उनके लिए कई बार मजबूरी भी बन गए। इंदिरा गांधी ने जो भी निर्णायक फैसले किए हैं, उनमें संजय गांधी की दखल जरूर मानी जाती थी। यह भी कहा जाता है कि देश में इमरजेंसी लगाने का जो फैसला इंदिरा गांधी ने किया था, इसमें संजय गांधी की भी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही थी।

वो काला दिन

इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी का एहसास पहले किसी को नहीं होने दिया था। अचानक 25 जून, 1975 की आधी रात को उन्होंने देश में इमरजेंसी लगाने की घोषणा कर दी थी। उनकी इस घोषणा के साथ ही देशभर में हड़कंप मच गया था। भारतीय राजनीति के इतिहास का इसे सबसे काला दिन बताया गया था। करीब 2 वर्षों तक इस देश में आपातकाल लगा रहा। इस दौरान देश में बहुत से राजनीतिक घटनाएं भी घटीं। संजय गांधी चाह रहे थे कि इमरजेंसी 2 साल नहीं, बल्कि 35 साल तक लागू रहे। देश में इमरजेंसी लगाए जाने के फैसले में संजय गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। ऐसा कई मीडिया रिपोर्ट में बताया जा चुका है। इमरजेंसी के दौरान भी जिस तरह के फैसले देश में लिए जा रहे थे, उनके बारे में कहा जाता है कि वे संजय गांधी के नियंत्रण में ही लिए जा रहे थे।

मिली करारी हार

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी एक बार बताया था कि जब इमरजेंसी के बाद वे संजय गांधी से मिले थे तो उन्होंने उनसे इस पर बात भी की थी। इस पर संजय गांधी ने उन्हें बताया था कि वे तो देश में कम-से-कम 35 वर्षों तक आपातकाल को लागू रखे जाने के पक्ष में थे, लेकिन उनकी मां ने उस वक्त चुनाव करवा दिए। इमरजेंसी की वजह से देश में बहुत ही गुस्सा था। यही कारण था कि जब 1977 में चुनाव हुए तो इस दौरान कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी बुरी तरह से हार गई थीं। ऐसे में संजय गांधी ने राजनीति कैसे करनी चाहिए यह तो सीख ही ली थी।

करा दी वापसी

उन्होंने इंदिरा गांधी की इमेज को जनता के बीच फिर से चमकाने के लिए बहुत सारे उपाय किए। जमीनी स्तर पर उन्होंने जमकर काम किया। युवाओं का तो उन्होंने पूरा ब्रिगेड ही बना लिया था। संजय गांधी की जरा राजनीति तो देखिए, चौधरी चरण सिंह को उन्होंने प्रधानमंत्री क्या बनवाया कि जनता पार्टी ही टूट गई। फिर से एक बार 1980 में जनवरी में कांग्रेस की सरकार बन गई। यही नहीं 8 राज्यों में भी कांग्रेस की सरकार चुनकर आई। इस दौरान करीब सौ ऐसे युवा चुनाव जीते थे, जो संजय गांधी के बताए अनुसार राजनीति कर रहे थे। वर्ष 1980 में जो 23 जून को विमान दुर्घटना में उनकी मौत हुई, उसे भी विवादास्पद ही अब तक माना जाता रहा है।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान