भारत के दक्षिण में हिंद महासागर में स्थित एक छोटा सा देश है श्रीलंका। श्रीलंका के साथ भारत के रिश्ते भी बहुत ही अच्छे हैं। आज छिटपुट घटनाओं को छोड़कर श्रीलंका ज्यादातर शांति में ही रहता हुआ नजर आता है। मगर आज से करीब तीन दशक पहले श्रीलंका में इतनी शांति नहीं हुआ करती थी। यहां के घरेलू आतंकी संगठनों ने अपने ही देश की नाक में दम कर रखा था। उस वक्त यहां इतनी अशांति थी कि जिंदगी का कोई भरोसा ही नहीं रहता था। जब श्रीलंका में विद्रोह अपने चरम पर पहुंच गया और सरकार बेहद परेशान हो गई तो उसने भारत से मदद मांगी। भारतीय सेना ने तुरंत कार्रवाई की। भारतीय सेना की ओर से ऑपरेशन पवन चलाया गया। 11 अक्टूबर, 1987 को भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। भारतीय सेना को इस ऑपरेशन में कामयाबी तो जरूर मिली, मगर भारतीय सेना को इसमें खासा नुकसान भी उठाना पड़ा था। यहां हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं।
एक छोटे से टापू पर स्थित देश श्रीलंका के छोटे से शहर पलाली में भारतीय शांति रक्षक सेना ने अपना सैन्य अड्डा बना रखा था। यहीं से वे विद्रोहियों पर नजर रखते थे। श्रीलंका के जाफना क्षेत्र और मुख्य भूमि के बीच संपर्क का यह आर्मी कैम्प महत्वपूर्ण माध्यम था। विद्रोही संगठन लिट्टे, जिसका आतंक श्रीलंका में बोल रहा था, इस लिट्टे के सदस्यों के बारे में बारे में कहा जा रहा था कि ये लोग जाफना यूनिवर्सिटी के जरिये अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। इसी दौरान भारतीय सेना को यह खुफिया जानकारी मिली कि 11 अक्टूबर, 1987 को जाफना विश्वविद्यालय में लिट्टे के बहुत से आतंकी एक मीटिंग के लिए जमा हो रहे हैं। भारतीय सेना ने अब ठान लिया कि जो भी आतंकी यहां पर जमा हो रहे हैं, इन सब को यहीं पर मार गिराना है।
ऐसे में भारतीय सेना ने इसके लिए ऑपरेशन पवन का प्लान किया। अपने इस प्लान में भारतीय सेना ने शांति सैनिकों को शामिल किया, जो किसी भी देश में जाकर कितने भी विषम हालात में युद्ध लड़ पाने में सक्षम थे। इस दौरान तेरहवीं सिख लाइट इन्फेंट्री के भी 60 जवानों को बैकअप के तौर पर श्रीलंका भेज दिया गया था। कहा जाता है कि भारतीय सेना द्वारा सबसे कम समय में सबसे तेजी से अंजाम दिया गया यह ऑपरेशन था। हालांकि, रेडियो सिग्नल पकड़ लेने की वजह से लिट्टे के आतंकियों को भारतीय सेना के प्लान की जानकारी हो गई थी। उस वजह से मिशन कमजोर पड़ गया था और गलत भी साबित हो गया। रेडियो सिग्नल के जरिए जब लिट्टे के आतंकियों को भारतीय सेना के प्लान की जानकारी हो गई, तो उसने भी अपनी ओर से तैयारी शुरू कर दी। फर्क बस इतना था कि भारतीय सेना के प्लान की जानकारी लिट्टे को थी, मगर भारतीय सेना को यह नहीं पता था कि लिट्टे को सब पता चल गया है और वह जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है।
लिट्टे ने रातों-रात जाफना यूनिवर्सिटी को एक सुरक्षित किले में तब्दील कर दिया था। घात लगाकर बैठे लिट्टे के आतंकवादियों ने अब भारतीय सेना का इंतजार शुरू कर दिया। रात के वक्त जैसे ही भारतीय और श्रीलंका की सेना के 40 पैरा कमांडो यहां पोजीशन लेने के लिए पहुंचे, उधर से उन्होंने ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी। इन पैरा कमांडो को भारतीय सेना के अगले हेलीकॉप्टर के उतरने के लिए सुरक्षित जगह भी ढूंढनी थी, जिसकी भी वे तलाश इस वजह से नहीं कर पाए। इसके बाद भारतीय सेना का हेलीकॉप्टर वहां पहुंचा तो पायलट को नीचे हो रही गोलीबारी का आभास हो गया। उसे जब यहां उतरने की कोई सुरक्षित जगह नहीं मिली तो उसने हेलीकॉप्टर की लैंडिंग ही नहीं कराई और हेलीकॉप्टर में सवार जवानों को वापस सैन्य बेस पर लेकर पहुंच गया।
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इधर ये 40 बहादुर पैरा कमांडो आतंकियों का सामना कर रहे थे। उन्होंने इस दौरान लिट्टे के कई आतंकवादियों को मार गिराया। हालांकि, बैकअप नहीं मिल पाने के कारण भारतीय सेना के कमांडो को और नुकसान उठाना पड़ा। फिर भी अंतिम सांस तक इन्होंने अपनी बहादुरी दिखाई। आतंकियों को मालूम था कि बैकअप के तौर पर सेना की अगली खेप जरूर यहां पहुंचेगी। ऐसे में वे पूरी तैयारी के साथ उनके आने का इंतजार करने लगे। आखिरकार भारतीय सेना का हेलीकॉप्टर वहां पहुंच गया। पहले से ही घाट लगाकर बैठे आतंकवादियों ने इस हेलीकॉप्टर पर मशीनगन से हमला करने की योजना बना रखी थी।
हेलीकॉप्टर के पहुंचते ही मशीनगन से उन्होंने फायर करना शुरू कर दिया। फायरिंग में हेलीकॉप्टर का पायलट घायल जरूर हो गया, मगर बहादुरी दिखाते हुए उसने हेलीकॉप्टर से जवानों को यहां उतार दिया। जवानों के नीचे उतरते ही उन्होंने मशीनगन से हमला शुरू कर दिया। फिर भी लिट्टे के आतंकवादियों और भारतीय सेना के जवानों के बीच कई घंटे तक लड़ाई चलती रही। इस दौरान भारतीय सेना के सात पैरा कमांडो शहीद हो गए। साथ ही इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के 35 जवानों को भी अपनी शहादत देनी पड़ी थी। भारतीय सेना के इतिहास में यह अब तक का सबसे महंगा और नुकसान पहुंचाने वाला ऑपरेशन साबित हुआ।
भले ही इस ऑपरेशन में भारत को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा, मगर कहा जाता है कि ऑपरेशन पवन की वजह से श्रीलंका में लिट्टे बहुत कमजोर पड़ गया। उसने बदला लेने की ठान ली थी और यही वजह रही कि 4 साल बाद उसने 1991 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी। इस तरह से ऑपरेशन पवन श्रीलंका की धरती पर भारतीय सेना का सबसे घातक ऑपरेशन साबित हुआ।