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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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मोदी सरकार के हर काम की तरह उनका राहत पैकेज भी आधा अधूरा है!

किसानों के लिए एक सही राहत ये होती कि सरकार सीधे गांवों या उनके समूहों से फसल खरीदती। प्रति परिवार दो हजार रुपये की मदद, फसल के दाम की तुलना में कुछ भी नहीं
Logic Taranjeet 28 March 2020

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में कोरोना वायरस के फैलने को देखते हुए भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान किया था। ये वायरस पूरी दुनिया के 175 देशों में फैल गया है और इससे लगभग 5 लाख लोग संक्रमित हुए हैं, जिनमें से लगभग 30 हजार लोगों की जान चली गई है। इसी महामारी को देखते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राहत पैकेज की घोषणा की थी, जिसके जरिये गरीब और वंचित लोगों को राहत देने की कोशिश की गई। इस पैकेज में 1.7 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसमें 80 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा और इसे तुरंत लागू किया जाएगा।

इस पैकेज के तहत मनरेगा की मजदूरी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई, सभी किसानों को 2000 रुपये दिए जाएंगे, जन धन योजना अकाउंट होल्डर महिला को तीन महीने तक 500 रुपये प्रति महीने के हिसाब से पैसा दिया जाएगा, गरीब विधवा-विकलांगों और बुजुर्ग लोगों को एक हजार रुपये दिए जाएंगे, उज्जवला का लाभ लेने वालों को फ्री सिलेंडर उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके अलावा कुछ दूसरे उपाय भी किए गए हैं। निर्मला सीतारमण ने अपनी घोषणा में कहा कि गरीबी रेखा से नीचे के राशन कॉर्ड धारकों को अगले तीन महीने तक प्रति व्यक्ति के हिसाब से पांच किलो चावल और प्रति परिवार एक किलो दाल उपलब्ध कराई जाएगी।

किसानों को तो भूल ही गए

देश के अलग-अलग हिस्सों में गेहूं, सरसों और विभिन्न दालों की फसल पक कर कटने के लिए तैयार हैं या अगले कुछ दिनों में तैयार हो जाएंगी। लॉकडॉउन का मतलब है कि किसान मजदूरों से काम नहीं ले पाएंगे, न ही अपने दोस्तों और परिवारों को फसल काटने के लिए ले जा पाएंगे। ऐसी खबरें आना शुरू हो गई हैं कि किसान लॉकडॉउन को फसल काटने के लिए तोड़ रहे हैं। तो किसान क्या करें? तैयरा फसल को सड़ने के लिए छोड़ दे? वो ऐसा कभी नहीं होने देंगे, फसल उनके खून से उपजाई हुई होती है। प्रति परिवार दो हजार रुपये की मदद, फसल के दाम की तुलना में कुछ भी नहीं है। ऐसी अफवाहें चल रही हैं कि सरकार कृषि कार्यों की छूट दे सकती है। लेकिन अब तक कुछ भी साफ नहीं हो पाया है। ये आपको नोटबंदी की याद नहीं दिलाता? उसमें भी ऐसे ही विघटनकारी प्रभाव सामने आए थे।

अगर किसान फसल काट भी लेते हैं, तो उन्हें आगे थ्रेसिंग और फटकने जैसी क्रियाएं भी करनी होंगी। इसके बाद उन्हें स्थानीय मंडियों या व्यापारियों तक पहुंचाना होगा। वो लॉकडॉउन में ऐसा कैसे करेंगे? किसानों के लिए एक सही राहत ये होती कि सरकार सीधे गांवों या उनके समूहों से फसल खरीदती। ऐसा नहीं है कि ऐसा नहीं हो सकता। पंजाब में कई बार इसी तरीके से गेंहू की खरीद की जाती है। लेकिन सरकार को इस पूरी प्रक्रिया का ठीक ढंग से प्रबंधन करना होता है। इससे किसानों को मंडियों तक आने की जरूरत नहीं पड़ेगी, ना ही वो कोरोना वायरस के फैलाव में हिस्सेदार बनेंगे। लेकिन सरकार सोचती है कि दो हजार रुपये खर्च करने से उसकी ज़िम्मेदारी खत्म हो गई।

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मनरेगा में मजदूरी

मनरेगा के तहत मजदूरी में महज 20 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई। जब निर्मला सीतारमण ने दावा किया कि ग्रामीण इलाकों में हर मजदूर को इससे दो हजार रुपये मिलेंगे, तब दरअसल उन्होंने फर्जी तस्वीर बनाने की कोशिश की। ये 2000 रुपये तब मिलेंगे, जब पूरे 100 दिनों तक काम मिलता रहेगा। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल औसतन एक मजदूर को 48 दिन का काम मिल रहा है। पिछले साल ये औसत 51 था। पिछले कुछ सालों से ये आंकड़ा इसी के आसपास घूमता है। इसलिए ये संभव ही नहीं है कि मजदूरों को दो हजार रुपये की अतिरिक्त आय होगी।

क्या 500 रुपये परिवार चलाने के लिए काफी हैं?

महिला जन धन अकाउंट होल्डर को 500 रुपये दिया जाना एक अजीब फ़ैसला है। क्या वो 500 रुपये प्रति महीने में अपना घर चला पाएगी? क्या हम बीसवीं सदी के मध्य में रह रहे हैं? केवल किसानों के परिवारों को ही 2 हजार रुपये मिल सकते हैं? गेंहू, चावल और दाल तो उपलब्ध रहेगा। लेकिन परिवारों की दूसरी जरूरतों का क्या? खाना बनाने के तेल से लेकर सब्जी तक, किराये से लेकर दवाईयों तक, दूध से लेकर मसालों तक, क्या इन सब चीजों का पांच सौ रुपये में प्रबंध किया जा सकता है।

बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए सिर्फ 1000 रुपये

जैसे महिलाओं को 500 रुपये दिए जा रहे हैं, ये उसी तरीके की बात है। अंतर इतना है कि ये हजार रुपये एक बार दिए जा रहे हैं, हर महीने नहीं। इतने कम पैसे में कोई परिवार से बेघर विधवा या शारीरिक तौर पर अक्षम व्यक्ति, जो दयादान पर जिंदा रहता है, वो अगले तीन महीने तक कैसे जिंदा रहेंगे? चाहे उन्होंने भीख मांगी हो या नौकरानी के तौर पर घरों में काम किया हो या फिर उनका गुजारा परिवारों को भलमनसाहत पर निर्भर करता रहा हो, दरअसल इस लॉकडॉउन में ये सभी खत्म हो जाएंगे। इन लोगों में कोरोना वायरस फैलने की सबसे अधिक गुंजाइश होगी। ये लोग बुजुर्ग हैं, लगातार एक दूसरे से मिलते हैं और शायद दूसरी बीमारियों से भी ग्रस्त हो सकते हैं। लेकिन इस तरह का पैकेज मजाक है।

Taranjeet

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.