कोरोना के बढ़ते संकट की वजह से लोगों के काम लगातार ठप हो रहे हैं। पहले से ही अर्थव्यवस्था बीमार थी अब और ज्यादा हो गई है। कोरोना में बड़ी बड़ी कंपनियां तो अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की सुविधा दे रही हैं, लेकिन मजदूर लोगों का क्या? उन लोगों का क्या जो दिहाड़ी पर काम करते हैं। वो लोग जिनकी रोजी रोटी रोजाना की कमाई पर टिकी होती है उनका गुजारा कैसे होगा? भारतीय रेलवे ने कई ट्रेनें रद्द कर दी हैं। कई कंपनियां अपने कर्चारियों को वर्क फ्रॉम होम दे रही हैं, साथ ही कई राज्य सरकारें लगातार कामबंदी करने में लगी हुई है। इन सबके बावजूद सरकारों की तरफ से मजदूरों और दिहाड़ी रोजगार वालों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
संगठित क्षेत्र के कर्मचारी और मजदूर तो फिर भी थोड़े सुरक्षित हैं लेकिन असंगठित बहुत बड़ा क्षेत्र है, जिसमें करोड़ों मजदूर काम करते हैं और उनके पास किसी भी तरह की कोई सुरक्षा नहीं है। आम आदमी पार्टी ने पहले स्कूल, जिम, सिनेमा, स्पा, नाइट क्लब, वीकली मार्केट बंद किए और फिर रेस्तरां भी बंद हो गए हैं। शादी, पार्टियां पहले से ही कैंसिल हो रही थी। आप कह सकते हैं कि दिल्ली शटडाउन ही है।
दिल्ली के सप्ताहिक बाजार बंद हो गए हैं, जिससे इन बाजारों में दुकान लगाने वाले हजारों लोगो के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। क्योंकि ये लोग कहीं न कहीं जाकर बाजार लगाते हैं और रोज ही कमाई करते हैं जिससे इनका गुजरा होता है। इनके पास वर्क फ्रॉम होम की कोई सुविधा नहीं है। सरकार ने बिना सोचे समझे फैसला ले लिया और जो लोग रोज कमाते और खाते हैं उनके लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है। ये लोग दिन का 200-500 रुपया कमाते हैं और उसी से गुजारा करते हैं लेकिन अब इन लोगों के पास खाने के लिए शायद पैसा नहीं है।
दिल्ली सरकार ने दिल्ली को शटडाउन तो कर दिया है, इस वजह से सैंकड़ों लोगों की आजीविका मुश्किल में आ गई है। क्योंकि सड़कें सुनसान हैं, सवारी नहीं मिल रही हैं और ऊपर से मालिक को तो पूरा पैसा देना होता है। कैब से लेकर रिक्शा वाले तक खाली बैठे हैं और अपनी कमाई के लिए तरस रहे हैं। पहले दिल्ली में दंगों की वजह से इन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा और अब कोरोना ने इन्हें मार ही दिया है। इन लोगों में ज्यादातर लोग बाहर के शहरों से आए हुए हैं और दिल्ली में अपने अच्छे जीवन के लिए आए थे, लेकिन पिछले कुछ वक्त से तो इसका उलट हो रहा है।
कोरोना वायरस के चलते कई अफवाहों के कारण लोगों ने चिकन और अंडे खाने भी छोड़ दिए हैं। जिससे इनकी कीमतें काफी गिर गई है। पहले जो चिकन 160 का मिलता था वो अब गिरकर 80 पर आ गया है। ऐसा ही कुछ अंडे की कीमतों में भी हुआ है। लेकिन इसके बाद भी बिक्री में भारी गिरावट आई है। जिसके कारण इन दुकानदारों का खर्च निकलना भी मुश्किल हो रहा है। वहीं ठेला लगा कर खाना बेचने वालों के पास तो कोई इसलिए नहीं जा रहा क्योंकि उसके पास सैनेटाइजर नहीं होगा।
केटरिंग से लेकर टेंट वाले, वेटर से लेकर जेनरेटर वाले तक सब बेबस और लाचार बैठे हैं क्योंकि दिल्ली में न तो शादी हो रही हैं और न कोई पार्टी। न तो कोई सरकारी कार्यक्रम हो रहा है और न कोई इवेंट। जिस कारण इन लोगों का धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया है। इन इवेंट के जरिये कई लोगों का दिन का खर्चा चलता था जो अब बंद हो गया है।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार खुद को मजदूरों और आम जनता की सरकार बताते नहीं थकती है, लेकिन उसकी तरफ से दिहाड़ी मजदूरों को राहत देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सरकार ये बंद करो वो बंद करो का आदेश तो दे रही है लेकिन इस बंद में बहुत से लोगों का चुल्हा बंद हो जा रहा है। क्या सिर्फ लोगों को घर में बंद करने से इस महामारी से बचा जा सकता है?