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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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राम और बाबर के नाम पर जो मर्यादाएं टूटी है वो शर्मसार करती है

हिंदू-मुसलमान के रंग में रंगा अयोध्या जमीन विवाद लोगों की जिंदगी की बलि चढ़ा है। अंत में सब ने एक राय में कहा कि हम वो मानेंगे जो कोर्ट कहेगा। राम-बाबर के नाम पर जो मर्यादाएं टूटी है
Logic Taranjeet 17 October 2019

अयोध्या विवाद भारत के इतिहास में सबसे लंबा, हिंसक और जानलेवा जमीन का मसला है। इस विवाद की वजह से कई नेताओं के राजनीतिक जीवन बन गए और कई हीरो बन गए। मीडिया को हाई टीआरपी मिलती रहती है। लेकिन हिंदू-मुसलमान के रंग में रंगा अयोध्या जमीन विवाद लोगों की जिंदगी की बलि चढ़ा है। अंत में सब ने एक राय में कहा कि हम वो मानेंगे जो कोर्ट कहेगा। राम-बाबर के नाम पर जो मर्यादाएं टूटी है वो शर्मसार करने वाली है।

साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन पर एक फैसला दिया और जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया। लेकिन इससे तीनों पक्षकर यानी की सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम जन्मभूमि ट्रस्ट और निर्मोही अखाड़ा संतुष्ट नहीं थे और चले गए सुप्रीम कोर्ट के पास। जिसमें अब कोर्ट ने इस विवादित जमीन पर फैसला कर लिया है और जल्द बता दिया जाएगा। अभी तक आपने जितना भी पढ़ा उसमें कहीं पर भी आपको राम मंदिर, बाबरी मस्जिद जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता हुआ नहीं दिखा होगा। क्योंकि ये मामला न तो राम मंदिर का है और न बाबरी मस्जिद का है।

मंदिर-मस्जिद का क्या कभी था ये मामला?

दरअसल कोर्ट ने इस अयोध्या जमीन विवाद पर सुनवाई करते हुए ये साफ कर दिया था कि इस मामले को धर्म या आस्था के चश्मे से नहीं देखा जाएगा। ये जमीन का विवाद है और इसे उसी तरह से सुलझाया जाएगा। ये बात कोर्ट को समझ आ गई, काफी हद तक जनता भी सहमत थी, लेकिन हमारी मीडिया और नेता इससे सहमत नजर नहीं आए। मीडिया में इस मसले को आस्था का रूप देकर पेश किया जा रहा है, लेकिन अदालत के सामने यह भूमि विवाद के रूप में है। मामला है कि इस जमीन का मालिक कौन है?

नेशनल ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन ने इस जमीन के मसले पर चैनलों के लिए एक एडवाइजरी जारी की है। जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई या फैसले को लेकर अटकलबाजी नहीं होनी चाहिए। फैसले का नतीजा क्या होगा, इस पर कुछ भी टिप्पणी न हो। बाबरी मस्जिद ध्वंस का कोई पुराना फुटेज नहीं दिखाया जाना चाहिए। फैसले के विरोध या समर्थन में जश्न का कोई फुटेज नहीं दिखाया जाए। भड़काऊ बहसों से बचा जाना चाहिए। लेकिन क्या ऐसा हो रहा है किस तरह के रंगों का इस्तेमाल हो रहा है, कैसे ग्राफिक्स दिखाए जा रहे हैं, धर्मों को सीधा जोड़ दिया। कुछ चैनलों ने तो बड़े बड़े अक्षरों में लिख दिया “जन्मभूमि हमारी, राम हमारे, मस्जिद वाले कहां से पधारे”? हमारा मीडिया इस स्तर पर गिर गया है कि अब वो सीधा बता रहा है कि वो किसके पक्ष में है।

स्वतंत्र मीडिया अब इतिहास हो कर रह गया है

क्या स्वतंत्र मीडिया अब सिर्फ किस्से कहानियों में ही सुनने को मिलेगा। क्या अब हम यही कहेंगे कि एक जमाने में मीडिया सरकार को हिला देता था, लेकिन आज सरकारें मीडिया हिला रही है। हमारे देश में मीडिया अब इस तरह की हेडलाइन चलाने पर मजबूर हो गया है जिसमें लिखा हो मंदिर vs मस्जिद, ये धर्मनिरपेक्ष देश में मंदिर और मस्जिद की लड़ाई पर सब हाथ सेंकने आ जाते हैं, लेकिन ये उत्सुकता भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, शिक्षा, महिला सुरक्षा के लिए नहीं नजर आती है।

हमारे दिमाग में मंदिर मस्जिद का जहर घोला जा रहा है, सालों से यही होता आ रहा है और लगता है कि आगे भी होगा। क्योंकि हम लोग अपनी सोच में इतने छोटे हो गए हैं कि भूल गए हैं इंसान है। सोशल मीडिया पर जिस तरह से लोग इस फैसले पर मंदिर और मस्जिद का दावा पेश कर रहे हैं वो गिरी हुई मानसिकता को दिखा रहा है और उसमें घी डालने का काम ये कुछ मीडिया संस्थान कर रहे हैं। जो रिपोर्टर की पूरी सेना अयोध्या में भेज कर बैठे हैं और वहां से एक एक मिनट का लाइव दिखा रहे हैं और मंदिर vs मस्जिद की जंग में अस्त्र दिए जा रहे हैं।

हंसी आती है कि एक जमीन विवाद को मंदिर मस्जिद का चश्मा पहना दिया गया और ऐसा अंधा कर दिया जनता को, कि आज तक वो चश्मा उतरा नहीं है और लोगों की आंखें खुली नहीं है। लेकिन डर लगता है क्योंकि इस जमीन के विवाद पर दंगे, केस, मारपीट का सिलसिला चलता जा रहा है। भगवान और अल्लाह को चार दीवारों में कैद करने की जिस होड़ में सब लगे हैं उससे ये मोक्ष प्राप्त करेंगे या भगवान ही घुटन में रहेगा। खुदा इंसान को कटता देख अपनी मस्जिद बनवा कर खुश होगा? या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम इन लोगों को अमर्यादित होता देख ऐसे मंदिर में रहना चाहेंगे जिस पर खून के धब्बे हैं?

ये कैसी आस्था है, ये कैसा धर्म है, ये कैसी श्रद्धा है? लोगों में ये जहर घोलने का काम कर कौन क्या हासिल करना चाहता है? खुदा की इबादत, या भगवान की पूजा, नमाज या आरती किसी जगह पर नहीं बल्कि सच्चे दिल से सिर झुका कर की जाती है। न कि सैंकड़ों के सिर काट कर। इस मंदिर vs मस्जिद की जंग को जो लोग बढ़ावा दे रहे हैं वो कभी यहां पर स्कूल, कॉलेज बनाने के लिए नहीं बोलेंगे। क्योंकि वो जानते हैं अगर भारत में लोग ज्यादा पढ़ लिख जाएंगे तो वो नौकरी मांगेंगे, सवाल करेंगे, मुद्दों पर बात होगी जिससे इन सियासतदारों की रोटियां सिकनी बंद हो जाएगी। मीडिया की टीआरपी गिर जाएगी, नेता को मु्द्दों पर वोट मांगना पड़ेगा, धर्म के ठेकेदारों की फर्जी दुकानें बंद हो जाएंगी। जो वो कभी होने नहीं देना चाहेंगे।

Taranjeet

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.