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लॉकडाउन के वक्त में जरूरतमंदों की मदद करने वाले ये आम लोग!

लॉकडाउन के वक्त में गरीबों के लिए कई बड़ी-बड़ी कंपनियों ने और केंद्र और राज्य सरकारों ने मदद का ऐलान किया है जो सुर्खियां बन गई हैं
Information Taranjeet 19 April 2020
लॉकडाउन के वक्त में जरूरतमंदों की मदद करने वाले ये आम लोग!

लॉकडाउन के वक्त में गरीबों के लिए कई बड़ी-बड़ी कंपनियों ने और केंद्र और राज्य सरकारों ने मदद का ऐलान किया है जो सुर्खियां बन गई हैं, लेकिन उन लोगों के बारे में जानना भी जरूरी है जो शायद उतने मशहूर नहीं है। लेकिन उन्होंने अपनी दरियादिली से लोगों की मदद ही नहीं की है बल्कि वो एक मिसाल बन गए हैं। दरअसल एक तो कोरोना का डर सता रहा है और दूसरा लॉकडाउन ने काम बंद करवा दिया है। दफ्तर बंद, बाजार बंद, फैक्ट्री बंद, शहर बंद, घर में बंद, लेकिन लाखों ऐसे हैं जिनके लिए इसका मतलब है घर छिन जाना, रोजी छिन जाना। ये लोग हैं मजदूर, डोमेस्टिक हेल्प, छोटी-मोटी नौकरियां करने वाले लोग। जब शहर बंद हुआ तो इन्हें गांवों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन इनके पास न आने-जाने का साधन और न ही राशन। ऐसे में इस देश के आम लोगों ने इन लोगों मदद करने की ठानी।

हसीरू दाला ने की मदद

तमाम एनजीओ जो लॉकडाउन के वक्त गरीबों के लिए खाने-पीने का इंतजाम कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें आम लोग पैसे दे रहे हैं। बेंगलूरू का एक NGO है हसीरू दाला। इस NGO ने सिर्फ 17 दिन में डोनेशन के जरिए 38 लाख से ज्यादा की रकम जुटाई है जबकि इन्होंने टारगेट रखा था 36 लाख रुपये जुटाने का, लेकिन लोगों ने उम्मीद से बहुत ज्यादा दान दिया। खास बात है कि इस NGO को औसतन लोगों ने 3 हजार रुपए का दान दिया। साफ है कि दान देने वाले ज्यादातर लोग बड़े पूंजीपति नहीं, आम लोग हैं। इस NGO ने इस रकम से साढ़े चार हजार गरीब लोगों तक जरूरी राशन पहुंचाया। इनमें से ज्यादातर कचरा बीनने वाले और दिहाड़ी मजदूर हैं। हसीरू दाला ने केटो नाम की क्राउडफंडिंग साइट के साथ भी टाइअप किया और केटो ने भी इन्हें मुफ्त में अपनी सर्विसेज दीं।

बिहार में भी दिखा असर

इसी तरह की पहल बिहार में भी देखने को मिली। यहां प्रोजेक्ट पोटेंशियल नाम के संगठन ने चाय बागानों से लौटे दिहाड़ी मजदूरों को मदद की पहल की। इसने भी एक क्राउड फंडिंग साइट गिव इंडिया का सहारा लिया और गिव इंडिया ने भी इसके लिए कोई चार्ज नहीं लिया। प्रोजेक्ट पोटेंशियल ने अपनी पहल में एक अनोखी चीज शामिल की। गरीबों के लिए उन्होंने जो राशन पैकेट तैयार किया इसमें उन्होंने लूडो गेम भी शामिल किया। जिससे की बच्चों को घर के अंदर ही मनोरंजन मिले और वो घर से बाहर न निकलें। ताकि सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन रह सके।

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इन सिविल संगठनों के अलावा भी लोगों ने खुद से पहल करते हुए गरीबों की मदद करने के लिए कदम बढ़ाए। दिल्ली के वसंत कुंज की रहने वाली अमीना तलवार लोगों से पैसा जुटा रही हैं, जिससे कि इन इलाकों में रहने वाली घरेलू सहायक, गार्डनर वगैरह की मदद की जा सके। अमीना ने अपने पड़ोसियों से 2 लाख रुपये जुटाए और गरीब लोगों में राशन के पैकेट बांटे। अमीना बताती हैं कि लोगों ने उनकी मदद करने के लिए अपने घरों के बाहर लिफाफे में डालकर पैसे रख दिए। अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने प्रभाव फाउंडेशन नाम के एनजीओ से टाईअप कर लिया है।

मदद करने वाले में वो भी हैं जो कमा रहे हैं और वो भी जो नहीं कमा रहे

कोलकाता प्रेसीडेंसी और जाधवपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों ने मिलकर क्वारंटाइन्ड स्टूडेंट नेटवर्क नाम से संगठन बनाया और गरीबों को खाना बांटने के काम की शुरुआत की। इसके एक सदस्य ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि उन्होंने सिर्फ एक दिन में डेढ़ लाख रुपए जुटा लिए और ऐसे ही दिल्ली से सटे गुरुग्राम के एक समाजसेवी संगठन गुड़गांव नागरिक एकता मंच लॉकडाउन में रोजाना 25 हजार लोगों गरीबों को खाना खिला रहा है।

खालिदा बेगम बनी मिसाल

युवाओं की कहानी आपने सुनी, लेकिन जम्मू कश्मीर की रहने वाली बुजुर्ग खालिदा बेगम ने अपने हज जाने के लिए जमा की गई 5 लाख की रकम को RSS के NGO सेवा भारती को दान दे दिया। कोरोना की वजह से उनकी हज यात्रा टल गई थी। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के एक अनुमान के मुताबिक कोरोना वायरस के संकट के चलते लॉकडाउन के वक्त से भारत के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ लोग मुफलिसी का और ज्यादा दंश झेल सकते हैं। लेकिन इस देश के अनगिनत लोगों ने गरीबों और असहाय लोगों की भोजन, राशन जैसी जरूरी चीजों के जरिए मदद करके ये दिखाया है कि कोरोना के काले बादलों के बीच भी उम्मीद की एक किरण निकल रही है।

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Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.