नेताजी सुभाष चंद्र बोस। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अविस्मरणीय नामम भारत को आजादी दिलाने में इनकी अहम भूमिका रही। सुभाष चंद्र बोस भारत माता के सच्चे सपूत थे। उनके जन्मदिवस 23 जनवरी को भारत सरकार ने पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया है।
सुभाष चंद्र बोस ने अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया। देश को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने पूरी जिंदगी देश के नाम कर दी। अंग्रेजों से देश को आजाद कराना इतना भी आसान नहीं था। सुभाष चंद्र बोस इसे समझ चुके थे। यही कारण था कि दुश्मनों से हाथ मिलाने में भी उन्हें हिचक नहीं हुई। उन्होंने फैसला कर लिया कि वे दुश्मनों से भी मदद मांगेंगे। यही वजह थी कि उन्होंने जापान और जर्मनी से संपर्क भी साधा था।
हालांकि, सुभाष चंद्र बोस के इस कदम को समझना जरूरी है। वे केवल देश की आजादी के लिए अपने इस फैसले को लेकर आगे बढ़े थे। नाजी विचारधारा का उन्होंने बिल्कुल भी समर्थन नहीं किया था। देश को अंग्रेजों के चंगुल से उन्हें बाहर निकालना था। उन्होंने जापान की मदद ली। इस तरह से आजाद हिंद फौज की उन्होंने स्थापना की।
इससे दक्षिण पूर्व एशिया में मित्र राष्ट्रों की सेना से वे युद्ध कर पाए। जापानी सेना की उन्हें मदद मिली। अंडमान निकोबार को उन्होंने आजाद करवा लिया। इनकी सेना बढ़ती चली गई। मणिपुर तक यह पहुंच गई थी। हालांकि, अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिरा दिया था। इस वजह से जापानी सैनिकों की ताकत कम पड़ गई थी। ऐसे में आजाद हिंद फौज को अपने पांव पीछे खींचने पड़े थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ भी उन्होंने काम किया था। महात्मा गांधी उन्हें बहुत पसंद करते थे। हालांकि, उनकी विचारधारा के वे विरोधी थे। फिर भी गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस को ‘देशभक्तों का देशभक्त’ कह कर संबोधित किया था। वर्ष 1938 और 1939 में सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गए थे।
पूर्ण स्वराज्य की नीति पर गांधी जी और कांग्रेस धीरे-धीरे बढ़ना चाहती थी। सुभाष चन्द्र बोस को यह पसंद नहीं था। इस वजह से उन्होंने कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ दिया। उन्होंने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन कर लिया था।
बचपन से ही सुभाष चंद्र बोस पढ़ाई में अव्वल रहे थे। उड़ीसा के एक बड़े परिवार में उनका जन्म हुआ था। देशभक्ति तो उनके खून में बचपन से ही दौड़ रही थी। उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की थी। यहां उन्होंने प्रोफेसर ओटेन के बोल पर आपत्ति जताई थी। प्रोफेसर ओटेन ने देश के खिलाफ कुछ कहा था। सुभाष चंद्र बोस इसे बर्दाश्त नहीं कर सके थे। इसके बाद उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था।
सुभाष चंद्र बोस के पिता चाहते थे कि वे आईसीएस की परीक्षा दें। सुभाष चंद्र बोस को अंग्रेजों के साथ नौकरी करना पसंद नहीं था। उन्होंने पिता के कहने पर आईसीएस की परीक्षा दे दी। उन्होंने उत्तीर्ण होकर भी दिखाया। इस परीक्षा में उन्हें चौथा स्थान मिला था। अंग्रेजी सरकार के साथ तो उन्हें काम करना नहीं था। यही नहीं, जालियांवाला बाग नरसंहार से वे अंदर से हिल गए थे। वे 1921 में इंटर्नशिप कर रहे थे। इसी वक्त उन्होंने आईसीएस से त्यागपत्र दे दिया था।
बोस की मौत आज तक रहस्य बनी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। हालांकि, उनका शव कभी नहीं मिला। बहुत बार उनके जिंदा रहने की भी बातें सामने आई हैं। कहा जाता है कि दुर्घटनाग्रस्त हुए विमान का कोई रिकॉर्ड ताइवान के पास मौजूद नहीं है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ीं कई गोपनीय फाइलें हैं। राष्ट्रीय अभिलेखागार को प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से 33 फाइलें सौंपी गई हैं।
सुभाष चंद्र बोस के बारे में कई बातें कही जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में भी वे कई वर्षों तक भगवान जी के नाम से रहे थे। उन्हें गुमनामी बाबा भी कहा गया। कहा जाता है कि 1985 में गुमनामी बाबा के रूप में उनकी मौत हुई थी। हालांकि, इसकी कभी पुष्टि नहीं हो पाई।