वर्ष 1970 में एक कमाल की घटना बिहार में घटी थी। उस वक्त दारोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री थे। एक आदिवासी कंडक्टर को निलंबित कर दिया गया था। वह बिहार राज्य पथ परिवहन में काम करता था। झारखंड पार्टी के नेता बागुन सुम्बरई उसके समर्थन में थे।
वे मुख्यमंत्री के पास उसकी पैरवी करने के लिए गए थे। मुख्यमंत्री ने टाल दिया था। बाद में बागुन ने 11 विधायकों के साथ सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। दरोगा प्रसाद ने सोचा कि कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हालांकि, फ्लोर टेस्ट में उन्हें बड़ा झटका लगा। उनकी सरकार गिर गई।
दारोगा राय के पिता उन्हें पुलिस वाले के रूप में देखना चाहते थे। यही वजह है कि उन्होंने उनका नाम ही दारोगा रख दिया था। हालांकि, बाद में वे सर्वोदयी संघ में बड़े ही सक्रिय हो गए थे। बाबू जगजीवन राम ने उनकी प्रतिभा को पहचाना था। उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट भी दिलवा दिया था।
दूसरी बार वे विधायक बने तो मंत्री भी बन गए। इस तरह से 1967 सदस्य तक वे मंत्री बनते रहे। हरिहर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकारों 1969 में बनी थी। दारोगा राय तब मुख्यमंत्री बनने से रह गए थे। बाद में कांग्रेस का विभाजन हुआ। विधायकों के दो गुट बन गए थे।
फरवरी, 1970 में दरोगा राय के लिए बहुत बड़ा मौका आया। उस वक्त हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस के महासचिव थे। वे दिल्ली से पटना आए थे। मुख्यमंत्री के लिए कई नेताओं ने अपने नाम उनके सामने रखे थे। इंदिरा गांधी दारोगा प्रसाद राय को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। किसी तरह से सरकार बन गई। दरोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बन गए।
विधानसभा चुनाव 1972 में हुए थे। परसा से दरोगा राय की जीत हो गई थी हालांकि, इस बार इंदिरा गांधी ने केदार पांडे को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना था। दरोगा राय को तब कृषि मंत्री बनाया गया था। उन्हें वित्त मंत्री की भी जिम्मेवारी मिली थी। कृषि मंत्री रहने के दौरान उन पर घोटाले का आरोप भी लगाया था।
लोकायुक्त द्वारा इसकी जांच भी शुरू कर दी गई थी। जांच को लेकर तब बड़ी उठापटक हुई थी। दारोगा राय ने अपनी ही सरकार के लिए तब बड़ी परेशानी खड़ी कर दी थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी काफी हद तक हस्तक्षेप करना पड़ा था। खूब नाटक चला था। आखिरकार किसी तरह से दारोगा राय का मामला दबा दिया गया था। हालांकि, इसके बाद उनका करियर भी धीरे-धीरे ठंडा ही पड़ता चला गया।
इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया था। इसे लेकर लोगों में बहुत गुस्सा था। वर्ष 1977 में चुनाव हुए थे। इस वक्त जनता लहर थी। पहली बार ऐसा हुआ था कि दारोगा प्रसाद राय को हार का मुंह देखना पड़ा था। परसा विधानसभा सीट उन्होंने गंवा दी थी। जनता पार्टी के रामानंद प्रसाद यादव जीत गए थे।
अंतिम बार 1980 के चुनाव में परसा से दारोगा राय विधायक बने थे। दरोगा राय का निधन 15 अप्रैल, 1981 को हो गया था। वे चले गए तो उनके बेटे चंद्रिका राय ने राजनीति में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए। ये वही चंद्रिका राय हैं, जो लालू यादव के समधी हैं। परसा से चंद्रिका राय छह बार विधायक बने। लालू यादव ने उन्हें अपनी सरकार में मंत्री भी बनाया।
लालू यादव पटना विश्वविद्यालय की राजनीति में ऐसे ही खड़े नहीं हो गए थे। चंद्रिका राय के पिता दारोगा राय ने इसमें उनकी बड़ी मदद की थी।
दारोगा प्रसाद राय की सरकार को बागुन सुम्बरई ने गिरा दिया था। बिहार के एक कंडक्टर का मुद्दा इतना हावी हो गया था कि सरकार गिर गई थी। दारोगा राय की कुर्सी चली गई थी। इसके बाद सरकार बनी थी। कर्पूरी ठाकुर इसके मुखिया बने थे। बागुन इसमें मंत्री भी बनाए गए थे। उन्हें बिहार परिवहन विभाग दिया गया था। सबसे पहला निर्णय उन्होंने वही लिया था, जिसकी उम्मीद थी। जी हां, कंडक्टर को बहाल कर दिया गया था। उसका निलंबन वापस ले लिया गया था।
बागुन भी कमाल के नेता थे। एक धोती बस वे अपने शरीर पर पहने हुए दिखते थे। चार बार विधायक भी रहे थे और पांच बार सांसद भी। उन्हें झारखंड का पहला बड़ा आदिवासी नेता माना जाता है।