Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

क्या चल रहा है तमिलनाडु की राजनीति में, मोदी या राहुल ?

Politics Tadka Sandeep 20 April 2019
tamilnadu-poll-rajniti-modi-or-rahul-who-wins-election-2019

दक्षिण भारत के बड़े राज्यों में से एक तमिलनाडु का सियासी तौर पर बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है. इस राज्य में लोकसभा की कुल 39 और पुडुचेरी की सीट मिला लें तो 40 लोकसभा सीटें आती हैं. राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस यहां कोई बड़ी भूमिका में नहीं है, हां कांग्रेस, भाजपा के मुकाबले ज्यादा मजबूत है. इस बार ये दोनों दल यहां की दोनां प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ रहे हैं.

द्रमुक और अन्नाद्रमुक

तमिलनाडु की राजनीति में दो बड़े दल हैं. जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक और करुणानिधि की पार्टी द्रमुक. दोनों ही नेता अब इस दुनिया में नहीं है. तमिलनाडु की नई पीढ़ी के लिए ये पहला चुनाव है जब यहां कोई चुनाव इन दोनों नेताओं की अनुपस्थिति में हो रहा है. द्रमुक का यहां कांग्रेस के साथ गठबंधन है तो अन्नाद्रमुक को भाजपा का साथ मिल गया है.

राहुल गांधी को मिलेगी संजीवनी

तमिलनाडु की राजनीति में इस बार बड़ा उलटफेर होने वाला है. पिछली बार यहां द्रमुक का खाता भी नहीं खुल पाया था, इस बार अन्नाद्रमुक और भाजपा गठबंधन का खाता खुलने में सस्पेंस है. ऐसा माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी में से तमिलनाडु की जनता राहुल गांधी के नाम पर मुहर लगा सकती है और आराम से द्रमुक कांग्रेस गठबंधन को 40 में 35 सीटें मिल सकती है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह अन्नाद्रमुक में हुई टूट और बिखराव है.

राहुल के दक्षिण से चुनाव लड़ने का असर

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का दक्षिण भारत के केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का असर यहां की राजनीतिक फिजाओं में साफ साफ देखा जा सकता है. तमिलों को ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी हिंदुत्ववादी और हिंदीवादी हैं. उनसे तमिल हितों का नुकसान हो सकता है. द्रमुक की बड़ी ताकत उनके नेताओं का एक होकर चुनाव लड़ना है जबकि भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाली अन्नाद्रमुक में सिर फुटौव्वल बंद होने का नाम नहीं ले रहा.

तमिलनाडु की राजनीति की खूबी मानी जाती है कि यहां के मतदाता जिसे भी देते हैं, दिल खोल कर देते हैं. पिछली बार यहां से अन्नाद्रमुक को लोकसभा की कुल 37 सीटें मिली थी. चूंकि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल गया था, इसलिए अन्नाद्रमुक किसी विशेष भूमिका में नहीं आ पाई थी.