लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार तुम्हारा है, तुम झुठ को सच लिख दो अखबार तुम्हारा है… इस दौर के फरियादी जायें तो कहा जायें… कानून तुम्हारा है, दरबार तुम्हारा है…राहत इंदौरी की ये पंक्तियां भारत की आज की स्थिति को बखूबी दर्शाती है। अब तक तो सिर्फ कहा जा रहा था कि भारत में पत्रकारिता अब स्वतंत्र नहीं रह गई है। लेकिन अब इसके सबूत भी आने लगे हैं। भारत जिसे विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, अब वो सिर्फ कहने की बात हो गई है। असलियत अब कुछ और ही है। लंबे वक्त से कहा जाता था कि पत्रकारिता के मूल सिद्धांत खत्म हो गए हैं, अब खबरें सिर्फ दिखाई नहीं जाती है बल्कि बनाई भी जाती है। आज मीडिया सिर्फ चिंगारी नहीं लगा रहा है, बल्कि खुद ही असला भी लाया है, खुद ही आग भी लगा रहा है और उस लगी हुई आग को दिखा कर पूछ भी रहा है कि ओ माई गॉड ये क्या हो रहा है।
मीडिया के सवाल बहुत कड़वे होते हैं, बस गलत इंसान से होते हैं
सांप्रदायिकता से लेकर जातिवाद तक की जड़ें भारत में बहुत गहरी थी और अब तो ये इतनी गहरी हो गई है या फिर कहें कि कर दी गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पत्रकारिता के मूल सिद्धांत को छोड़कर सब कुछ कर रहा है। मीडिया का काम सबसे अहम है कि देश में जो गलत हो रहा है उसे दिखाना और गलत करने वाले से या फिर जो उसे रोक सकता है यानी की सरकार से सवाल करना। हां मीडिया सवाल करता है, कड़वे… बहुत कड़वे… नीम जैसे कड़वे सवाल करता है लेकिन विपक्ष से। सवाल पूछे जाते हैं कांग्रेस के प्रवक्ताओं से जबकि जवाबदेही होती है सरकार की यानी की भाजपा के प्रवक्ताओं की।
ये सारी बातें अब तक महज कही जाती थी, लेकिन अब तो विश्व की रिपोर्ट में भी ये छपना शुरु हो गया है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के सर्वे के मुताबिक 180 देशों की सूची में भारत 142 नंबर पर है। इस सूची के तहत बताया गया है कि किस देश में मीडिया कितना स्वतंत्र है। मीडिया की स्वतंत्रता दर्शाने वाली इस सूची में भारत 142वें नंबर पर है। हालांकि ये अच्छी बात है कि हम 180वें पर नहीं है वहां पर अभी भी नॉर्थ कोरिया ही बैठा है।
इस रिपोर्ट में भारत की ये हालत दरअसल कश्मीर की वजह से हुई है। महीनों तक इंटरनेट बंद, नेता बंद होने की वजह से जो कश्मीर में तनाव था, उसका इस रिपोर्ट पर गहरा असर है। सरकार ने राज्य में अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती की, इंटरनेट और फोन बंद कर दिए और मनमाने ढंग से हजारों कश्मीरियों को हिरासत में ले लिया, जिनमें राजनीतिक नेता, कार्यकर्ता, पत्रकार, वकील और बच्चों सहित संभावित प्रदर्शनकारी शामिल थे। और हमारी मीडिया लड्डू बांटती नजर आई, लोगों को बताया गया कि अब वो कश्मीर में घर खरीद सकते हैं। अंबानी साहब तो शायद निकल भी गए होंगे वहां पर कारखाना खड़ा करने के लिए।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भी कही कई बातें
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सरकार ने ऐसे हालात खड़े किए कि,जर्नलिस्ट के लिए उस जगह को कवर करना असंभव सा हो गया। दरअसल रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संगठन है, जो कि प्रेस की स्वतंत्रता की वकालत करता है। ये सार्वजनिक हित में UN, UNESCO और EU जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन और मानव अधिकारों पर सलाहकार की भूमिका निभाता है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार हमारे देश में निरंतर मीडिया की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। पत्रकार पुलिस की हिंसा के शिकार हो रहे हैं। आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत में एक विशेष विचारधारा के समर्थक अब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे सभी विचारों का दमन करने की चेष्टा कर रहे हैं, जो उनके विचारों से अलग हैं। भारत में उन समस्त पत्रकारों के विरुद्ध एक देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है, जो सरकार और राष्ट्र के बीच के अंतर को समझते हुए अपने कर्तव्यों पर काम कर रहे हैं। सरकार से असहमति को राजद्रोह माना जाने लगा है। जब महिला पत्रकारों को इस तरह के अभियानों का निशाना बनाया जाता है तो प्रेस की स्वतंत्रता का परिदृश्य और अंधकारमय दिखने लगता है।
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ये साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि भारत में आपराधिक धाराओं का प्रयोग उन व्यक्तियों विशेषकर पत्रकारों के विरुद्ध किया जा रहा है, जो अधिकारियों की आलोचना कर रहे हैं। पिछले दिनों देश में पत्रकारों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (राजद्रोह) के प्रयोग के अनेक प्रकरण सामने आए हैं। भारत की रैंकिंग में गिरावट का कारण हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा को प्रश्रय देने वाली सरकार के पक्ष में कार्य करने वाली मीडिया पर दबाव बनाने की कोशिशों को माना जा सकता है। जरूरी मुद्दों पर बोलने का साहस करने वाले अनेक पत्रकारों के विरुद्ध हिंदुत्व की विचारधारा के समर्थकों द्वारा अभियान चलाया गया और उन पर अभद्र टिप्पणियां करते हुए उनके विरुद्ध घृणा फैलाने की कोशिश की गई।
सरकार का काम भी मीडिया ही कर रही है
अब सरकार को सेंसरशिप जैसे कदम उठाने की आवश्यकता ही नहीं है। सरकार का काम सरकार समर्थक मीडिया समूहों द्वारा किया जाता है जो एजेंडा सेट करने, विमर्श को इच्छित दिशा में ले जाने और सरकार विरोधी पत्रकारों पर आक्रमण करने जैसे कार्यों को संपादित करते हैं। इसके लिए हिंसक एंकरों की एक फौज तैयार की जाती है जो शाब्दिक हिंसा और वैचारिक मॉब लिंचिंग में दक्ष होती है। इन्हें विरोधी विचारधारा की हत्या के लिए लाइसेंस टु किल मिला होता है। वैचारिक बहसों को गैंग वार का स्वरूप दे दिया गया है। रही सही कसर सोशल मीडिया पर सक्रिय कार्यकर्ताओं और ट्रोल समूहों द्वारा पूरी कर दी जाती है जो फेक न्यूज आदि के जरिये लोगों का ब्रेन वाश करने में निपुण हैं।