महाराष्ट्र में सियासत का खेल बहुत ही निराला है। शिवसेना और भाजपा के बीच मुख्यमंत्री पद की खींचतान के चलते दोनों एक दूसरे से अलग हो गए हैं। दोनों के बीच में लगभग 30 सालों का साथ था, जो कुर्सी की वजह से छूट गया। भाजपा ने सरकार बनाने से मना कर दिया है, जिसके बाद शिवसेना और एनसीपी के ऊपर सरकार बनाने का जिम्मा आ गया है। हालांकि ये भी सरकार बनाते नजर तो नहीं आ पा रहे हैं, लेकिन सत्ता किसी को भी दोस्त और दुश्मन बना देता है। ऐसे में भाजपा अभी के लिए फिलहाल महाराष्ट्र में सत्ता से दूर हो गई है। लेकिन उसके लिए कई रास्ते खुल गए हैं। भाजपा के लिए फिलहाल नतीजे नकारात्मक हैं, लेकिन दूर के लिए देखें तो आने वाले कल में महाराष्ट्र में भाजपा के पास पूरा फायदा उठाने का मौका है। क्योंकि अब वो खुलकर अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ेगा।
महाराष्ट्र में पहले तो शिवसेना और भाजपा के गठबंधन को बहुमत मिला था, जिसके बाद शिवसेना ने लालच में आकर 50-50 का फॉर्मुला रख दिया। अब ऐसे में भाजपा इसके लिए राजी नहीं हुई और शिवसेना भी इसी पर अड़ी रही। शिवसेना सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के पास भी गई, वो कांग्रेस जो उनकी कट्टर विरोधी रही है। दोनों की मानसिकता और राजनीति काफी अलग है। ऐसे में भाजपा शिवसेना को बदनाम करने के लिए ये बात बड़ी ही आसानी से उठा सकती है कि कट्टर हिंदूत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना सेक्यूलर कांग्रेस के पास जाती है। सत्ता के लालच, कुर्सी के लालच जैसी कई बातें उठनी है।
आपको बता दें कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से भाजपा का देश में सत्ता की बढ़ोत्तरी ही हुई है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक किसी न किसी तरह से भाजपा सरकार का हिस्सा है। भाजपा की नजरें हमेशा से यूपी, बिहार और महाराष्ट्र पर रहती है। 2014 से पहले तक हमेशा शिवसेना गठबंधन में बड़े भाई का काम करती रही है। लेकिन साल 2014 के बाद से पूरी राजनीति बदली है और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों ने अलग अलग चुनाव लड़ा था। इसका नतीजा रहा था कि देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में शिवसेना को छोटा भाई बनना पड़ा था। साल 2014 में अकेले दम पर भाजपा ने 120 सीटें जीती थी। ऐसे में भाजपा चाहेगी की सरकार न बने और दोबारा चुनाव हो, ताकि वो अकेले उठ सके।
महाराष्ट्र में शिवसेना उग्र हिंदुत्व, मुसलमान विरोध और पाकिस्तान पर हमलावर विचारधारा को लेकर चली थी, भाजपा उससे ज्यादा उग्र तेवर अपनाकर और नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेताओं को आगे करके शिवसेना के सामने खड़ी हुई थी। महाराष्ट्र में शिवसेना का बालासाहेब ठाकरे के दिनों वाला जलवा खत्म हो चुका है। इसी का नतीजा था कि 2019 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन में भाजपा को 164 और शिवसेना को 124 सीटों पर किस्मत आजमानी पड़ी थी। वैसे भी भाजपा को अगर महाराष्ट्र की सत्ता में अपने दमपर आना है तो उसे शिवसेना का साथ तो छोड़ना ही था। ऐसे में शिवसेना का लालक उनके लिए खराब साबित हो सकता है।
शिवसेना का कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के लिए झुकना ये दर्शाता है कि महाराष्ट्र में अब उग्र हिंदूत्व वाली एक ही पार्टी बची है। इसी के साथ भाजपा के लिए अब महाराष्ट्र में मैदान पूरी तरह से खुला है और भविष्य में होने वाले सियासी संग्राम में भाजपा बनाम विपक्ष ही होगा। ऐसे में भाजपा ये उम्मीद करेगी कि वो केंद्र की नीतियों को लेकर अकेले चुनाव लड़ें और सरकार बनाएं। जिससे भाजपा की स्थिति महाराष्ट्र में काफी मजबूत हो सकती है, क्योंकि शिवसैनिक नाराज हो सकते हैं और इसे बाला साहब से जोड़ कर भी देख सकते हैं। क्योंकि कट्टर हिंदुत्व को छोड़ना शिवसेना को भारी पड़ सकता है।